दोस्तों मेरा नाम तरुण है। 20 साल का हूँ। कालेज में पढता हूँ। पिछले साल गर्मियों की छुट्टियों में मैं अपने ननिहाल अमृतसर घूमने गया हुआ था। मेरे मामा का छोटा सा परिवार है। मेरे मामाजी रुस्तम सेठ 45 साल के हैं और मामी सविता 42 साल के अलावा उनकी एक बेटी है कनिका 18 साल की। मस्त क़यामत बन गई है, अब तो अच्छे-अच्छो का पानी निकल जाता है उसे देखकर। वो भी अब मोहल्ले के लौंडे लपाड़ों को देखकर नैन मट्टका करने लगी है।
एक बात खास तौर पर बताना चाहूँगा कि मेरे नानाजी का परिवार लाहोर से अमृतसर 1947 में आया था और यहाँ आकर बस गया। पहले तो सब्जी की छोटी सी दूकान ही थी पर अब तो काम कर लिए हैं। खालसा कालेज के सामने एक जनरल स्टोर है जिसमें पब्लिक टेलीफोन, कंप्यूटर और नेट आदि की सुविधा भी है। साथ में जूस बार और फलों की दूकान भी है। अपना दो मंजिला मकान है और घर में सब आराम है। किसी चीज की कोई कमी नहीं है। आदमी को और क्या चाहिए। रोटी कपड़ा और मकान के अलावा तो बस सेक्स की जरूरत रह जाती है।
मैं बचपन से ही बहुत शर्मीला रहा हूँ। मुझे अभी तक सेक्स का ज्यादा अनुभव नहीं था। बस एक बार बचपन में मेरे चाचा ने मेरी गाण्ड मारी थी। जब से जवान हुआ था अपने लण्ड को हाथ में लिए ही घूम रहा था। कभी कभार नेट पर सेक्सी कहानियां पढ़ लेता था और ब्लू फिल्म भी देख लेता था। सच पूछो तो मैं किसी लड़की या औरत को चोदने के लिए मरा ही जा रहा था।
मामाजी और मामी को कई बार रात में चुदाई करते देखा था। वाह… 42 साल की उम्र में भी मेरी मामी सविता एकदम जवान पट्ठी ही लगती है। लयबद्ध तरीके से हिलते मोटे-मोटे नितम्ब और गोल-गोल स्तन तो देखने वालों पर बिजलियां ही गिरा देते हैं। ज्यादातर वो सलवार और कुरता ही पहनती है पर कभी कभार जब काली साड़ी और कसा हुआ ब्लाउज पहनती है तो उसकी लचकती कमर और गहरी नाभि देखकर तो कई मनचले सीटी बजाने लगते हैं।
लेकिन दो-दो चूतों के होते हुए भी मैं अब तक प्यासा ही था। जून का महीना था। सभी लोग छत पर सोया करते थे। रात के कोई दो बजे होंगे। मेरी अचानक आँख खुली तो मैंने देखा मामा और मामी दोनों ही नहीं हैं। कनिका बगल में लेटी हुई है। मैं नीचे पेशाब करने चला गया। पेशाब करने के बाद जब मैं वापस आने लगा तो मैंने देखा मामा और मामी के कमरे की लाईट जल रही है।
मैं पहले तो कुछ समझा नहीं पर हाईई… ओह… या… उईई… की हल्की-हल्की आवाज ने मुझे खिड़की से झांकने को मजबूर कर दिया। खिड़की का पर्दा थोड़ा सा हटा हुआ था। अन्दर का दृश्य देखकर तो मैं जड़ ही हो गया। मामा और मामी दोनों नंगे बेड पर अपनी रात रंगीन कर रहे थे। मामा नीचे लेटे थे और मामी उनके ऊपर बैठी थी। मामा का लण्ड मामी की चूत में घुसा हुआ था और वो मामा के सीने पर हाथ रखकर धीरे-धीरे धक्के लगा रही थी और आह… उन्ह… या… की आवाजें निकाल रही थी। उसके मोटे-मोटे नितम्ब तो ऊपर-नीचे होते ऐसे लग रहे थे जैसे कोई फुटबाल को किक मार रहा हो। उनकी चूत पर उगी काली काली झांटों का झुरमुट तो किसी मधुमक्खी के छत्ते जैसा था।
वो दोनों ही चुदाई में मग्न थे। कोई 8-10 मिनट तक तो इसी तरह चुदाई चली होगी। पता नहीं कब से लगे थे। फिर मामी की रफ्तार तेज होती चली गई और एक जोर की सीत्कार करते हुए वो ढीली पड़ गई और मामा पर ही पसर गई। मामा ने उसे कसकर बाहों में जकड़ लिया और जोर से मामी के होंठ चूम लिए।
“सविता डार्लिंग एक बात बोलूं…”
“क्या?”
“तुम्हारी चूत अब बहुत ढीली हो गई है बिलकुल मजा नहीं आता…”
“तुम गाण्ड भी तो मार लेते हो, वो तो अभी भी टाइट है ना?”
“ओह तुम नहीं समझी…”
“बताओ ना…”
“वो तुम्हारी बहन बबिता की चूत और गाण्ड दोनों ही बड़ी मस्त थी। और तुम्हारी भाभी जया तो तुम्हारी ही उम्र की है पर क्या टाइट चूत है साली की। मज़ा ही आ जाता है चोदकर…”
“तो ये कहो ना कि मुझसे जी भर गया है तुम्हारा…”
“अरे नहीं सविता रानी ऐसी बात नहीं है दरअसल मैं सोच रहा था कि तुम्हारे छोटे वाले भाई की बीवी बड़ी मस्त है। उसे चोदने को जी करता है…”
“पर उसकी तो अभी नई-नई शादी हुई है वो भला कैसे तैयार होगी?”
“तुम चाहो तो सब हो सकता है…”
“वो कैसे?”
तुम अपने बड़े भाई से तो पता नहीं कितनी बार चुदवा चुकी हो अब छोटे से भी चुदवा लो और मैं भी उस क़यामत को एक बार चोदकर निहाल हो जाऊँ…”
“बात तो तुम ठीक कह रहे हो, पर अविनाश नहीं मानेगा…”
“क्यों?”
“उसे मेरी इस चुदी चुदाई भोसड़ी में भला क्या मज़ा आएगा?”
“ओह तुम भी एक नंबर की फुद्दू हो, उसे कनिका का लालच दे दो ना…”
“कनिका… अरे नहीं, वो अभी बच्ची है…”
“अरे बच्ची कहाँ है। पूरे अट्ठारह साल की तो हो गई है। तुम्हें अपनी याद नहीं है क्या? तुम तो केवल सोलह साल की ही थी जब हमारी शादी हुई थी और मैंने तो सुहागरात में ही तुम्हारी गाण्ड भी मार ली थी…”
“हाँ ये तो सच है पर?”
“पर क्या?”
मुझे भी तो जवान लण्ड चाहिए ना। तुम तो बस नई नई चूतों के पीछे पड़े रहते हो मेरा तो जरा भी ख़याल नहीं है तुम्हें…”
“अरे तुमने भी तो अपने जीजा और भाई से चुदवाया था ना और गाण्ड भी तो मरवाई थी ना…”
“पर वो नए कहाँ थे मुझे भी नया और ताजा लण्ड चाहिए बस कह दिया…”
“ओह… तुम तरुण को क्यों नहीं तैयार कर लेती। तुम उसके मजे लो और मैं कनिका की सील तोड़ने का मजा ले लूँगा…”
“पर वो मेरे सगे भाई की औलाद हैं क्या यह ठीक रहेगा?”
“क्यों इसमें क्या बुराई है?”
“पर वो… नहीं, मुझे ऐसा करना अच्छा नहीं लगता…”
“अच्छा चलो एक बात बताओ जिस माली ने पेड़ लगाया है क्या उसे उस पेड़ के फल को खाने का हक नहीं होना चाहिए। या जिस किसान ने इतने प्यार से फसल तैयार की है उसे उस फसल के अनाज को खाने का हक नहीं मिलना चाहिए। अब अगर मैं अपनी इस बेटी को चोदना चाहता हूँ तो इसमें क्या गलत है?”
“ओह तुम भी एक नंबर के ठरकी हो। अच्छा ठीक है बाद में सोचेंगे…” और फिर मामी ने मामा का मुरझाया लण्ड अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगी।
मैं उनकी बातें सुनकर इतना उत्तेजित हो गया था कि मुट्ठ मारने के अलावा मेरे पास अब कोई और रास्ता नहीं बचा था। मैं अपना 7 इंच का लण्ड हाथ में लिए बाथरूम की ओर बढ़ गया। फिर मुझे ख़याल आया कनिका ऊपर अकेली है। कनिका की ओर ध्यान जाते ही मेरा लण्ड तो जैसे छलांगें ही लगाने लगा। मैं दौड़कर छत पर चला आया।
कनिका बेसुध हुई सोई थी। उसने पीले रंग की स्कर्ट पहन रखी थी और अपनी एक टांग मोड़े करवट लिए सोई थी। स्कर्ट थोड़ी सी ऊपर उठी थी। उसकी पतली सी पैंटी में फँसी उसकी चूत का चीरा तो साफ नजर आ रहा था। पैंटी उसकी चूत की दरार में घुसी हुई थी और चूत के छेद वाली जगह गीली हो गई थी। उसकी गोरी-गोरी मोटी जांघें देखकर तो मेरा जी करने लगा कि अभी उसकी कुलबुलाती चूत में अपना लण्ड डाल ही दूँ। मैं उसके पास बैठ गया और उसकी जाँघों पर हाथ फेरने लगा।
वाह… क्या मस्त मुलायम संग-ए-मरमर सी नाज़ुक जांघें थी। मैंने धीरे से पैंटी के ऊपर से ही उसकी चूत पर अंगुली फिराई। वो तो पहले से ही गीली थी। आह… मेरी अंगुली भी भीग सी गई। मैंने उस अंगुली को पहले अपनी नाक से सूंघा। वाह क्या मादक महक थी। कच्चे नारियल जैसी जवान चूत के रस की मादक महक तो मुझे अन्दर तक मस्त कर गई। मैंने अंगुली को अपने मुँह में ले लिया। कुछ खट्टा और नमकीन सा लिजलिजा सा वो रस तो बड़ा ही मजेदार था।
मैं अपने आपको कैसे रोक पाता। मैंने एक चुम्बन उसकी जाँघों पर ले ही लिया। वो थोड़ा सा कुनमुनाई पर जगी नहीं। अब मैंने उसके उरोज देखे। वह क्या गोल-गोल अमरूद थे। मैंने कई बार उसे नहाते हुए नंगा देखा था। पहले तो इनका आकार नींबू जितना ही था पर अब तो संतरे नहीं तो अमरूद तो जरूर बन गए हैं। गोरे-गोरे गाल चाँद की रोशनी में चमक रहे थे। मैंने एक चुम्बन उनपर भी ले लिया। मेरे होंठों का स्पर्श पाते ही कनिका जग गई और अपनी आँखों को मलते हुए उठ बैठी।
“क्या कर रहे हो भाई?” उसने उनीन्दी आँखों से मुझे घूरा।
“वो… वो… मैं तो प्यार कर रहा था…”
“पर ऐसे कोई रात को प्यार करता है क्या?”
“प्यार तो रात को ही किया जाता है…” मैंने हिम्मत करके कह ही दिया।
उसकी समझ में पता नहीं आया या नहीं।
फिर मैंने कहा- “कनिका एक मजेदार खेल देखोगी?”
“क्या?” उसने हैरानी से मेरी ओर देखा।
आओ मेरे साथ…” मैंने उसका बाजू पकड़ा और सीढ़ियों से नीचे ले आया और हम बिना कोई आवाज किये उसी खिड़की के पास आ गए। अन्दर का दृश्य देखकर तो कनिका की आँखें फटी की फटी ही रह गईं। अगर मैंने जल्दी से उसका मुँह अपनी हथेली से नहीं ढक दिया होता तो उसकी चीख ही निकल जाती। मैंने उसे इशारे से चुप रहने को कहा।
वो हैरान हुई अन्दर देखने लगी।
मामी घोड़ी बनी फर्श पर खड़ी थी और अपने हाथ बेड पर रखे थे। उनका सिर बेड पर था और नितम्ब हवा में थे। मामा उसके पीछे उसकी कमर पकड़कर धक्के लगा रहे थे। उन 8 इंच का लण्ड मामी की गाण्ड में ऐसे जा रहा था जैसे कोई पिस्टन अन्दर बाहर आ जा रहा हो। मामा उनके नितम्बों पर थपकी लगा रहे थे। जैसे ही वो थपकी लगाते तो नितम्ब हिलने लगते।
और उसके साथ ही मामी की सीत्कार निकलती- “हाईई… और जोर से मेरे राजा और जोर से… आज सारी कसर निकाल लो और जोर से मारो मेरी गाण्ड बहुत प्यासी है ये हाईई…”
“ले मेरी रानी और जोर से ले… या… सविता… आआ…” मामा के धक्के तेज होने लगे और वो भी जोर-जोर से चिल्लाने लगे।
पता नहीं मामा कितनी देर से मामी की गाण्ड मार रहे थे। फिर मामा मामी से जोर से चिपक गए। मामी थोड़ी सी ऊपर उठी। उनके पपीते जैसे स्तन नीचे लटके झूल रहे थे। उनकी आँखें बंद थी और वह सीत्कार किये जा रही थी- “जियो मेरे राजा मज़ा आ गया…”
मैंने धीरे-धीरे कनिका के वक्ष मसलने शुरू कर दिए। वो तो अपने मम्मी-पापा की इस अनोखी रासलीला को देखकर मस्त ही हो गई थी। मैंने एक हाथ उसकी पैंटी में भी डाल दिया। उफ… छोटी-छोटी झांटों से ढकी उसकी बुर तो कमाल की थी, बिल्कुल गीली। मैंने धीरे से एक अंगुली से उसके नर्म नाज़ुक छेद को टटोला। वो तो चुदाई देखने में इतनी मस्त थी कि उसे तो तब ध्यान आया जब मैंने गच्च से अपनी अंगुली उसकी बुर के छेद में पूरी घुसा दी।
“उईई माँ…” उसके मुँह से हौले से निकला- “ओह… भाई ये क्या कर रहे हो?” उसने मेरी ओर देखा। उसकी आँखें बोझिल सी थी और उनमें लाल डोरे तैर रहे था। मैंने उसे बाहों में भर लिया और उसके होंठों को चूम लिया। हम दोनों ने देखा कि एक पुचक्क की आवाज के साथ मामा का लण्ड फिसल कर बाहर आ गया और मामी बेड पर लुढ़क गई। अब वहाँ रुकने का कोई मतलब नहीं रह गया था। हम एक दूसरे की बाहों में सिमटे वापस छत पर आ गए।
“कनिका…”
“हाँ… भाई…”
कनिका के होंठ और जबान कांप रही थी। उसकी आँखों में एक नई चमक थी। आज से पहले मैंने कभी उसकी आँखों में ऐसी चमक नहीं देखी थी। मैंने फिर उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसके होंठ चूसने लगा। उसने भी बेतहाशा मुझे चूमना शुरू कर दिया। मैंने धीरे-धीरे उसके स्तन भी मसलने चालू कर दिए। जब मैंने उसकी पैंटी पर हाथ फिराया।
तो उसने मेरा हाथ पकड़ते कहा- “नहीं भाई… इससे आगे नहीं…”
“क्यों क्या हुआ?”
मैं रिश्ते में तुम्हारी बहन लगती हूँ, भले ही ममेरी ही हूँ पर आखिर हूँ तो बहन ही ना। और भाई और बहन में ऐसा नहीं होना चाहिए…”
“अरे तुम किस ज़माने की बात कर रही हो। लण्ड और चूत का रिश्ता तो कुदरत ने बनाया है। लण्ड और चूत का सिर्फ एक ही रिश्ता होता है और वो है चुदाई का। ये तो केवल तथाकथित सभ्य कहे जाने वाले समाज और धर्म के ठेकेदारों का बनाया हुआ ढकोसला (प्रपंच) है। असल में देखा जाए तो ये सारी कायनात ही इस प्रेम रस में डूबी है जिसे लोग चुदाई कहते हैं…” मैं एक ही सांस में कह गया।
“पर फिर भी इंसान और जानवरों में फर्क तो होता है ना?”
“जब चूत की किश्मत में चुदना ही लिखा है तो फिर लण्ड किसका है इससे क्या फर्क पड़ता है। तुम नहीं जानती कनिका तुम्हारा ये जो बाप है न… वो अपनी बहन, भाभी, साली और सलहज सभी को चोद चुका है और ये तुम्हारी मम्मी भी कम नहीं है। अपने देवर, जेठ, ससुर, भाई और जीजा से ना जाने कितनी बार चुद चुकी है और गाण्ड भी मरवा चुकी है…”
कनिका मेरी ओर मुँह बाईं देखे जा रही थी। उसे ये सब सुनकर बड़ी हैरानी हो रही थी, कहा- “नहीं भाई तुम झूठ बोल रहे हो…”
“देखो मेरी बहना तुम चाहे कुछ भी समझो ये जो तुम्हारा बाप है ना वो तो तुम्हें भी भोगने के चक्कर में है। मैंने अपने कानों से सुना है…”
“क… क्या?” उसे तो जैसे मेरी बातों पर यकीन ही नहीं हुआ। मैंने उसे सारी बातें बता दी जो आज मामा-मामी से कह रहे थे।
उसके मुँह से तो बस इतना ही निकला “ओह… नोऽऽ…”
“बोलो… तुम क्या चाहती हो अपनी मर्जी से प्यार से तुम अपना सब कुछ मुझे सौंप देना चाहोगी या फिर उस 45 साल के अपने खड़ूश और ठरकी बाप से अपनी चूत और गाण्ड की सील तुड़वाना चाहती हो… बोलो?”
“मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा है…”
“अच्छा एक बात बताओ?”
“क्या?”
“क्या तुम शादी के बाद नहीं चुदवाओगी। या सारी उम्र अपनी चूत नहीं मरवाओगी?”
“नहीं पर ये सब तो शादी के बाद की बात होती है…”
“अरे मेरी भोली बहना। ये तो खाली लाइसेंस लेने वाली बात है। शादी विवाह तो चुदाई जैसे महान काम को शुरू करने का उत्सव है। असल में शादी का मतलब तो बस चुदाई ही होता है…”
“पर मैंने सुना है कि पहली बार में बहुत दर्द होता है और खून भी निकलता है…”
“अरे तुम उसकी चिंता मत करो। मैं बड़े आराम से करूँगा। देखना तुम्हें बड़ा मज़ा आएगा…”
“पर तुम गाण्ड तो नहीं मारोगे ना। पापा की तरह…”
“अरे मेरी जान पहले चूत तो मरवा लो। गाण्ड का बाद में सोचेंगे…” और मैंने फिर उसे बाहों में भर लिया।
उसने भी मेरे होंठों को अपने मुँह में भर लिया। वाह… क्या मुलायम होंठ थे, जैसे संतरे की नर्म नाज़ुक फांकें हों। कितनी ही देर हम आपस में गुंथे एक दूसरे को चूमते रहे। अब मैंने अपना हाथ उसकी चूत पर फिराना चालू कर दिया।
उसने भी मेरे लण्ड को कसकर हाथ में पकड़ लिया और सहलाने लगी। लण्ड महाराज तो ठुमके ही लगाने लगे। मैंने जब उसके उरोज दबाये तो उसके मुँह से सीत्कार निकालने लगी- “ओह… भाई कुछ करो ना। पता नहीं मुझे कुछ हो रहा है…” उत्तेजना के मारे उसका शरीर कांपने लगा था साँसें तेज होने लगी थी। इस नए अहसास और रोमांच से उसके शरीर के रोएँ खड़े हो गए थे। उसने कसकर मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया। अब देर करना ठीक नहीं था।
मैंने उसकी स्कर्ट और टाप उतार दिए। उसने ब्रा तो पहनी ही नहीं थी। छोटे-छोटे दो अमरूद मेरी आँखों के सामने थे। गोरे रंग के दो रस कूप जिनका एरोला कोई एक रुपये के सिक्के जितना और निप्पल्स तो कोई मूंग के दाने जितने बिलकुल गुलाबी रंग के। मैंने तड़ से एक चुम्बन उसके उरोज पर ले लिया। अब मेरा ध्यान उसकी पतली कमर और गहरी नाभि पर गया। जैसे ही मैंने अपना हाथ उसकी पैंटी की ओर बढ़ाया
तो उसने मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा- “भाई तुम भी तो अपने कपड़े उतारो ना…”
“ओह… हाँ…”
मैंने एक ही झटके में अपना नाईट सूट उतार फेंका। मैंने चड्डी और बनियान तो पहनी ही नहीं थी। मेरा 7 इंच का लण्ड 120° डिग्री पर खड़ा था। लोहे की राड की तरह बिलकुल सख्त। उसपर प्री-कम की बूँद चाँद की रोशनी में ऐसे चमक रही थी जैसे शबनम की बूँद हो या कोई मोती।
“कनिका इसे प्यार करो ना…”
“कैसे?”
“अरे बाबा इतना भी नहीं जानती। इसे मुँह में लेकर चूसो ना…”
“मुझे शर्म आती है…”
मैं तो दिलोजान से इस अदा पर फिदा ही हो गया। उसने अपनी निगाहें झुका ली पर मैंने देखा था कि कनखियों से वो अभी भी मेरे तप्त लण्ड को ही देखे जा रही थी बिना पलकें झपकाए।
मैंने कहा- “चलो, मैं तुम्हारी बुर को पहले प्यार कर देता हूँ फिर तुम इसे प्यार कर लेना…”
“ठीक है…” भला अब वो मना कैसे कर सकती थी।
और फिर मैंने धीरे से उसकी पैंटी को नीचे खिसकाया, गहरी नाभि के नीचे हल्का सा उभरा हुआ पेड़ू और उसके नीचे रेशम से मुलायम छोटे-छोटे बाल नजर आने लगे। मेरे दिल की धड़कनें बढ़ने लगीं। मेरा लण्ड तो सलामी ही बजाने लगा। एक बार तो मुझे लगा कि मैं बिना कुछ किये-धरे ही झड़ जाऊँगा। उसकी चूत की फांकें तो कमाल की थी। मोटी-मोटी संतरे की फांकों की तरह। गुलाबी रंग की, दोनों आपस में चिपकी हुई। मैंने पैंटी को निकाल फेंका।
जैसे ही मैंने उसकी जाँघों पर हाथ फिराया तो वो सीत्कार करने लगी और अपनी जांघें कसकर भींच ली।
मैं जानता था कि यह उत्तेजना और रोमांच के कारण है। मैंने धीरे से अपनी अंगुली उसकी बुर की फांकों पर फिराई। वो तो मस्त ही हो गई। मैंने अपनी अंगुली ऊपर से नीचे और फिर नीचे से ऊपर फिराई। 3-4 बार ऐसा करने से उसकी जांघें अपने आप चौड़ी होती चली गई।
अब मैंने अपने दोनों हाथों से उसकी बुर की दोनों फांकों को चौड़ा किया। एक हल्की सी पुट की आवाज के साथ उसकी चूत की फांकें खुल गई। आह… अन्दर से बिलकुल लाल सुर्ख… जैसे किसी पके तरबूज की गिरी हो। मैं अपने आपको कैसे रोक पाता। मैंने अपने जलते होंठ उनपर रख दिए। आह… नमकीन सा नारियल पानी सा खट्टा सा स्वाद मेरी जबान पर लगा और मेरी नाक में जवान जिश्म की एक मादक महक भर गई। मैंने अपनी जीभ को थोड़ा सा नुकीला बनाया और उसके छोटे से टीट (मदनमणि) पर टिका दिया। उसकी तो एक किलकारी ही निकल गई।
अब मैंने ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर जीभ फिरानी चालू कर दी। उसने कसकर मेरे सिर के बालों को पकड़ लिया। वो तो सीत्कार पर सीत्कार किये जा रही थी। बुर के छेद के नीचे उसकी गाण्ड का सुनहरा छेद उसके कामरज से पहले से ही गीला हो चुका था।
अब तो वो भी खुलने और बंद होने लगा था। कनिका आह्ह… उन्ह… कर रही थी। ऊईई… माँ… एक मीठी सी सीत्कार निकल ही गई उसके मुँह से।
अब मैंने उसकी बुर को पूरा मुँह में ले लिया और जोर की चुस्की लगाई। अभी तो मुझे दो मिनट भी नहीं हुए होंगे कि उसका शरीर अकड़ने लगा और उसने अपने पैर ऊपर करके मेरी गर्दन के गिर्द लपेट लिए और मेरे बालों को कसकर पकड़ लिया। इतने में ही उसकी चूत से कामरस की कोई 4-5 बूँदें निकलकर मेरे मुँह में समा गई। आह क्या रसीला स्वाद था। मैंने तो इस रस को पहली बार चखा था। मैं उसे पूरा का पूरा पी गया। अब उसकी पकड़ कुछ ढीली हो गई थी। पैर अपने आप नीचे आ गए। 2-3 चुस्कियां लेने के बाद मैंने उसके एक उरोज को मुँह में ले लिया और चूसना चालू कर दिया।
शायद उसे इन उरोजों को चुसवाना अच्छा नहीं लगा था। उसने मेरा सिर एक और धकेला और झट से मेरे खड़े लण्ड को अपने मुँह में ले लिया। मैं तो कब से यही चाह रहा था। उसने पहले सुपाड़े पर आई प्री-कम की बूँदें चाटी और फिर सुपाड़े को मुँह में भरकर चूसने लगी जैसे कोई रस भरी कुल्फी हो।
आह… आज किसी ने पहली बार मेरे लण्ड को ढंग से मुँह में लिया था। कनिका ने तो कमाल ही कर दिया। उसने मेरा लण्ड पूरा मुँह में भरने की कोशिश की पर भला सात इंच लम्बा लण्ड उसके छोटे से मुँह में पूरा कैसे जाता। मैं चित्त लेटा था और वो उकड़ू सी हुई मेरे लण्ड को चूसे जा रही थी। मेरी नजर उसकी चूत की फांकों पर दौड़ गई। हलके हलके बालों से लदी चूत तो कमाल की थी। मैंने कई ब्लू फिल्मों में देखा था की चूत के अन्दर के होंठों की फांकें 1½ या दो इंच तक लम्बी होती हैं पर कनिका की तो बस छोटी-छोटी सी थी। बिलकुल लाल और गुलाबी रंगत लिए।
मामी की तो बिलकुल काली-काली थी। पता नहीं मामा उन काली-काली फांकों को कैसे चूसते हैं। मैंने कनिका की चूत पर हाथ फिराना चालू कर दिया। वो तो मस्त हुई मेरे लण्ड को बिना रुके चूसे जा रही थी। मुझे लगा अगर जल्दी ही मैंने उसे मना नहीं किया तो मेरा पानी उसके मुँह में ही निकल जाएगा और मैं आज की रात बिना चूत मारे ही रह जाऊँगा। मैं ऐसा हरगिज नहीं चाहता था।
मैंने उसकी चूत में अपनी अंगुली जोर से डाल दी। वो थोड़ी सी चिहुंकी और मेरे लण्ड को छोड़कर एक और लुढ़क गई। वो चित्त लेट गई थी। अब मैं उसके ऊपर आ गया और उसके होंठों को चूमने लगा। एक हाथ से उसके उरोज मसलने चालू कर दिए और एक हाथ से उसकी चूत की फांकों को मसलने लगा।
उसने भी मेरे लण्ड को मसलना चालू कर दिया।
अब लोहा पूरी तरह गर्म हो चुका था और हथोड़ा मारने का समय आ गया था। मैंने अपने उफनते हुए लण्ड को उसकी चूत के मुहाने पर रख दिया। अब मैंने उसे अपनी बाहों में जकड़ लिया और उसके गाल चूमने लगा। एक हाथ से उसकी कमर पकड़ ली। इतने में मेरे लण्ड ने एक ठुमका लगाया और वो फिसल कर ऊपर खिसक गया।
कनिका की हँसी निकल गई।
मैंने दुबारा अपने लण्ड को उसकी चूत पर सेट किया और उसके कमर पकड़कर एक जोर का धक्का लगा दिया। मेरा लण्ड उसके थूक से पूरा गीला हो चुका था और पिछले आधे घंटे से उसकी चूत ने भी बेतहाशा कामरज बहाया था। मेरा आधा लण्ड उसकी कुंवारी चूत की सील को तोड़ता हुआ अन्दर घुस गया।
इसके साथ ही कनिका की एक चीख हवा में गूंज गई।
मैंने झट से उसका मुँह दबा दिया नहीं तो उसकी चीख नीचे तक चली जाती। कोई 2-3 मिनट तक हम बिना कोई हरकत किये ऐसे ही पड़े रहे। वो नीचे पड़ी कुनमुना रही थी। अपने हाथ पैर पटक रही थी पर मैंने उसकी कमर पकड़ रखी थी इसलिए मेरा लण्ड बाहर निकलने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता था। मुझे भी अपने लण्ड के सुपाड़े के नीचे जहां धागा होता है जलन सी महसूस हुई। ये तो मुझे बाद में पता चला कि उसकी चूत की सील के साथ मेरे लण्ड की भी सील (धागा) टूट गई है।
चलो अच्छा है अब आगे का रास्ता दोनों के लिए ही साफ हो गया है। हम दोनों को ही दर्द हो रहा था। पर इस नए स्वाद के आगे ये दर्द भला क्या माने रखता था।
“ओह… भाई मैं तो मर गई रे…” कनिका के मुँह से निकला- “ओह… बाहर निकालो मैं मर जाऊँगी…”
“अरे मेरी बहना रानी। बस अब जो होना था हो गया है। अब दर्द नहीं बस मजा ही मजा आएगा। तुम डरो नहीं ये दर्द तो बस 2-3 मिनट का और है उसके बाद तो बस जन्नत का ही मजा है…”
“ओह… नहीं प्लीज बाहर निकालो… ओह। याआ… उन्ह…”
मैं जानता था उसका दर्द अब कम होने लगा है और उसे भी मजा आने लगा है। मैंने हौले से एक धक्का लगाया तो उसने भी अपनी चूत को अन्दर से सिकोड़ा। मेरा लण्ड तो निहाल ही हो गया जैसे। अब तो हालत यह थी कि कनिका नीचे से धक्के लगा रही थी।
अब तो मेरा लण्ड उसकी चूत में बिना किसी रुकावट अन्दर बाहर हो रहा था। उसके कामरज और सील टूटने से निकले खून से सना मेरा लण्ड तो लाल और गुलाबी सा हो गया था।
“उईई माँ… आह्ह… मजा आ रहा है भाई तेज करो ना। आह और तेज या…” कनिका मस्त हुई बड़बड़ा रही थी। अब उसने अपने पैर ऊपर उठाकर मेरी कमर के गिर्द लपेट लिए थे।
मैंने भी उसका सिर अपने हाथों में पकड़कर अपने सीने से लगा लिया और धीरे-धीरे धक्के लगाने लगा। जैसे ही मैं ऊपर उठता तो वो भी मेरे साथ ही थोड़ी सी ऊपर हो जाती और जब हम दोनों नीचे आते तो पहले उसके नितम्ब गद्दे पर टिकते और फिर गच्च से मेरा लण्ड उसकी चूत की गहराई में समा जाता। वो तो मस्त हुई आह्ह… उईई माँ… ही करती जा रही थी।
एक बार उसका शरीर फिर अकड़ा और उसकी चूत ने फिर पानी छोड़ दिया। वो झड़ गई थी। आह… एक ठंडी सी आनंद की सीत्कार उसके मुँह से निकली तो लगा कि वो पूरी तरह मस्त और संतुष्ट हो गई है। मैंने अपने धक्के लगाने चालू रखे। हमारी इस चुदाई को कोई 20 मिनट तो जरूर हो ही गए थे। अब मुझे लगाने लगा कि मेरा लावा फूटने वाला है।
मैंने कनिका से कहा तो वो बोली- “कोई बात नहीं, अन्दर ही डाल दो अपना पानी। मैं भी आज इस अमृत को अपनी कुंवारी चूत में लेकर निहाल होना चाहती हूँ…”
मैंने अपने धक्कों की रफ़्तार बढ़ा दी और फिर गर्म गाढ़े रस की ना जाने कितनी पिचकारियां निकलती चली गई और उसकी चूत को लबालब भरती चली गई। उसने मुझे कसकर पकड़ लिया। जैसे वो उस अमृत का एक भी कतरा इधर-उधर नहीं जाने देना चाहती थी। मैं झड़ने के बाद भी उसके ऊपर ही लेटा रहा। मैंने कहीं पढ़ा था कि आदमी को झड़ने के बाद 3-4 मिनट अपना लण्ड चूत में ही डाले रखना चाहिए इससे उसके लण्ड को फिर से नई ताकत मिल जाती है। और चूत में भी दर्द और सूजन नहीं आती।
थोड़ी देर बाद हम उठकर बैठ गए। मैंने कनिका से पूछा- “कैसी लगी पहली चुदाई मेरी जान?”
“ओह बहुत ही मजेदार थी मेरे भैया…”
“अब भैया नहीं सैंया कहो मेरी जान…”
“हाँ हाँ मेरे सैंया, मेरे साजन मैं तो कब की इस अमृत की प्यासी थी। बस तुमने ही देर कर रखी थी…”
“क्या मतलब?”
“ओह्ह… तुम भी कितने लल्लू हो। तुम क्या सोचते हो मुझे कुछ नहीं पता?”
“क्या मतलब?”
“मुझे सब पता है तुम मुझे नहाते हुए और मूतते हुए चुपके-चुपके देखा करते हो और मेरा नाम ले-लेकर मुट्ठ भी मारते हो…”
“ओह… तुम भी ना… एक नंबर की चुदक्कड़ हो…”
“क्यों ना बनूँ आखिर खानदान का असर मुझ पर भी आएगा ही ना…” और उसने मेरी ओर आँख मार दी। और फिर आगे बोली- “पर तुम्हें क्या हुआ मेरे भैया?”
“चुप साली अब भी भैया बोलती है। अब तो मैं दिन में ही तुम्हारा भैया रहूँगा रात में तो मैं तुम्हारा सैंया और तुम मेरी सजनी बनोगी…” और फिर मैंने एक बार उसे अपनी बाहों में भर लिया। उसे भला क्या ऐतराज हो सकता था।