मेरा नाम कामना है और मुझे कामवासना में बहुत रूचि है तथा मुझे उससे जुड़ी अच्छी रचनाएँ पढ़ने की बहुत कामना भी रहती है। चार वर्ष पहले मेरी शादी बंगलौर वासी अजय रस्तोगी के साथ हुई थी और मैं अपने पति और विधुर ससुरजी के साथ हंसी-ख़ुशी बंगलौर में ही रहती थी।
मेरे पति एक आई टी इंजिनियर हैं और वह बंगलौर में एक आई टी कंपनी में कार्य करते थे तथा मेरे ससुरजी भी वहीं पर एक बैंक में उच्च अधिकारी लगे हुए थे।
एक वर्ष के बाद मेरे पति को अमरीका की एक कंपनी में नौकरी मिल गई तब वह तो तुरंत वहाँ चले गए और मुझे अमरीका का वीसा मिलने में छह माह लग गए।
उन्हीं छह माह के शुरुआत में ही जो घटना मेरे साथ घटी मैं उसी का विवरण आप से साझा कर रही हूँ।
पति को अमरीका गए अभी तीन सप्ताह ही हुए थे की एक दिन जब मैं अपने ससुरजी के साथ मार्किट में खरीदारी कर के घर आ रहे थे तब हमारे ऑटो का एक्सीडेंट हो गया और वह पलटी हो गया।
उस एक्सीडेंट में मेरे ससुरजी को तो कुछ खरोंचे ही आई थी लेकिन मुझे बहुत चोटें लगी थी जिसमें मेरे दोनों बाजुओं की हड्डियों में फ्रैक्चर हो गए थे और उन पर आठ सप्ताह के लिए प्लास्टर चढ़ा दिया गया था।
मेरी टांगों और घुटनों पर भी काफी चोंटें आई थी जिस के कारण मेरा उठाना बैठना भी मुश्किल हो गया था और डॉक्टर ने मुझे दो सप्ताह के लिए बिस्तर पर ही लेटे रहने की सलाह दे दी थी।
मेरी यह हालत देख कर ससुरजी ने मेरी देख-रेख एवं घर के काम के लिए पूरे दिन के लिए एक कामवाली रख दी।
वह कामवाली सुबह छह बजे आती थी और पूरा दिन मेरा और घर का सभी काम करती तथा रात को नौ बजे डिनर खिला कर अपने घर चली जाती थी।
अंगों पर लगी चोट और बाजुओं पर बंधे प्लास्टर के कारण मैं अधिक कपड़े नहीं पहन पाती थी इसलिए मैं दिन-रात सिर्फ गाउन या नाइटी ही पहने रहती थी!
मैं नहा तो सकती नहीं थी इसलिए काम वाली बाई दिन में मेरे पूरे शरीर को गीले तौलिये से पोंछ कर मुझे गाउन या नाइटी पहनाने में मदद कर देती थी।
क्योंकि मुझे बाथरूम में जाकर पेशाब आदि करने में कोई परेशानी नहीं हो इसलिए मैं पैंटी भी नहीं पहनती थी।
इस तरह दुःख और तकलीफ में एक सप्ताह ही बीता था की मेरे ऊपर एक और मुसीबत ने आक्रमण कर दिया।
उस रात को लगभग ग्यारह बजे जब मैं सो रही थी तब मुझे मेरी जाँघों के बीच में गीलापन महसूस हुआ और मेरी नींद खुल गई।
मेरी परेशानी और भी अधिक बढ़ गई क्योंकि मेरे दोनों बाजुओं में प्लास्टर लगे होने के कारण मैं अपने हाथों से वह गीलापन क्यों और कैसा है इसका पता भी नहीं लगा पा रही थी।
वह गीलापन नीचे की ओर बह कर मेरी नाइटी और बिस्तर को भी गीला करने लगा था जिस के कारण मुझे कुछ अधिक असुविधा होने लगी थी।
दो घंटे तक उस गीलेपन पर लेटे रहने के बाद जब मेरे सयम का बाँध टूट गया तब मैंने ससुरजी को आवाज़ लगा कर बुलाया और उन्हें अपनी समस्या बताई।
मेरी बात सुन कर ससुरजी ने जब मुझे थोड़ा सा सरका कर बिस्तर के गीलेपन को देखा तो अवाक हो कर मेरी ओर देखने लगे थे।
मेरे पूछने पर उन्होंने बताया की मेरी टांगों, नाइटी और बिस्तर पर गीलापन महसूस होने का कारण मेरी योनि में से खून का रिसाव है।
ससुरजी के मुख से मेरी योनि में से खून का रिसाव की बात सुनते ही मेरा माथा ठनका और मैं समझ गई कि मुझे मासिक-धर्म आ गया था और वह गीलापन उसी के कारण था।
लेकिन मेरी दुविधा कम होने के बजाये और भी अधिक बढ़ गई थी क्योंकि मैं यह निर्णय नहीं कर पा रही थी कि मैं अपनी सफाई कैसे करूँ।
तभी ससुरजी ने कहा– तुम्हें बाथरूम तक पहुँचाने के लिए मैं तुम्हारी मदद कर देता हूँ और तुम वहाँ जाकर अपने आप को साफ़ कर लो। तब तक मैं तुम्हारे इस बिस्तर की चादर आदि बदल देता हूँ।
ससुरजी की बात सुन कर अकस्मात मेरे मुख से निकल गया- पापाजी, इन बंधे हाथों से मैं अपनी सफाई कैसे कर सकती हूँ?
मेरी बात सुन कर ससुरजी कुछ देर तो चुप रहे लेकिन फिर बोले- तो तुम ही बताओ क्या करें? क्या कल सुबह काम वाली के आने तक ऐसे ही इसी तरह मैले में ही पड़ी रहोगी?
उनकी बात सुन कर कुछ देर तो मैं संकुचाई फिर हिम्मत कर के बोली- पापाजी, रात भर मैले में तो मैं पड़ी नहीं रह सकती इसीलिए तो आप को आवाज़ लगाईं थी। क्यों नहीं आप ही मेरी सफाई करने में मदद कर देते?
मेरी बात सुनते ही उन्होंने उत्तर दिया- नहीं कामना, यह मुझसे नहीं हो पायेगा और यह ठीक भी नहीं है। एक ससुर और बहु के बीच में जो पर्दा, मर्यादा और दूरी होती है तुम उसे तोड़ने के लिए कह रही हो।
मैंने तुरंत बोला- पापाजी हमारे पास और कोई चारा भी तो नहीं है। मेरे लिए तो आप मेरी सास और ससुर दोनों ही हो इसलिए क्यों नहीं आप मेरा यह काम मेरी सास की तरह फर्ज़ समझ कर निभा दीजिये।
मेरी बात सुन कर ससुरजी पहले तो चुप हो कर खड़े रहे और फिर अपना सिर को नकारात्मक हिलाते हुए मेरे कमरे बाहर चले गए।
पन्द्रह मिनट तक मैं अपने बिस्तर पर चिंतित पड़ी यही सोच रही थी कि अब आगे क्या करूँ तभी ससुरजी कमरे में लौट कर आये और बोले- कामना, मैं तुम्हे मैले में नहीं पड़ा रहने दे सकता, इसलिए तुम्हारी सफाई करने को तैयार हूँ। लेकिन मुझे नहीं मालूम की वह कैसे करते हैं इसलिए तुम्हें मुझे बताना होगा कि मैं क्या और कैसे करूँ…
ससुरजी की बात सुन मेरे शरीर में एक झुरझुरी सी हुई क्योंकि जीवन में पहली बार मेरी मम्मी, पापा और पति के इलावा कोई अन्य इंसान मेरे गुप्तांगों को देखेगा या फिर छुएगा।
लेकिन मैंने अपने मन को संयम में रखते हुए उन्हें मुझे बाथरूम में ले जाने में मदद करने के लिए कहा।
तब उन्होंने मुझे सहारा देकर उठाया और कमर से पकड़ कर बाथरूम ले गए तथा मेरे कहने पर मुझे पॉट पर बिठा दिया।
पॉट पर बैठने के बाद मैंने उन्हें कहा- अब आप मेरी नाइटी उतरवा कर कमरे में लकड़ी की अलमारी में से मेरी एक पैंटी, एक नाइटी तथा ड्रेसिंग टेबल के दराज़ में से सेनेटरी नैपकिन का पैकेट लेते आइये।
मेरे कहे अनुसार उन्होंने मेरी नाइटी को नीचे से पकड़ ऊपर की ओर खींच कर मेरे शरीर से अलग करके धोने वाले कपड़ों में रख कर बाथरूम से बाहर चले गए।
थोड़ी देर में ससुरजी मेरे बिस्तर की चादर बदल कर और मेरी पैंटी, नाइटी और नैपकिन लेकर बाथरूम में आये तब तक मैंने जोर लगा कर अपनी योनि में से खून का सारा रिसाव बाहर निकाल दिया था।
ससुरजी के पूछने पर कि आगे क्या करना है तब मैंने उन्हें मेरी योनि को धोने के लिए कहा।
मेरी बात सुन कर पहले तो वे थोड़ा झिझके लेकिन फिर एक मग में पानी ले कर आये और मेरी टाँगे चौड़ी करके मेरी योनि पर पानी डाल कर धोने लगे।
तब मैंने उनसे कहा- पापाजी, ऐसे पानी डालने से सफाई नहीं होगी। आप अपने हाथ में पानी ले कर मेरी योनि को मल मल कर धोयेंगे तभी खून साफ़ होगा।
मेरी बात को समझ कर उन्होंने मेरी योनि पर अपने हाथ से पानी का छींटा मार कर उसे हाथ से ही मल कर साफ़ करने लगे।
उनका हाथ लगते ही मेरा पूरा शरीर रोमांचित हो उठा और मेरे शरीर के रोयें खड़े होने लगे!
लगभग चार सप्ताह के बाद मेरी योनि पर किसी मर्द का हाथ लगने से उसके अन्दर एक खलबली मच गई और मेरी सोई हुई कामवासना उत्तेजित हो उठी।
इतने में ससुरजी ने मेरी योनि पर पानी के पांच-छह छींटे मार कर उसे मल मल कर साफ़ कर दिया और पूछा- कामना, लो अब यह तो बिलकुल साफ़ हो गई है! अब और क्या करना है।
तब मैंने उन्हें कह दिया- पापाजी, अभी इसके अन्दर खून भरा हुआ है। आप दो तीन बार अपनी बड़ी उंगली की इसके अंदर डाल कर थोड़ा घुमा दीजिये तो वह खून बाहर आ जायेगा, उसके बाद आप इसे बाहर से एक बार फिर धो दीजियेगा।
मेरी बात सुन कर उन्होंने जैसा मैंने कहा था वैसे ही अपनी बड़ी उंगली को कई बार मेरी योनि के अंदर घुमाया और जब उनकी उंगली पर खून लगना बंद हो गया तभी वह रुके।
क्योंकि मैं तो पहले से ही उत्तेजित थी इसलिए ससुरजी द्वारा आठ-दस बार योनि के अन्दर उंगली घुमाने के कारण खून के साथ मेरा योनि रस भी छूट कर बाहर निकल आया था जिसे उन्होंने पानी से धो कर साफ़ कर दिया।
इसके बाद मैं पॉट से उठी और अपनी टाँगे चौड़ी करके खड़े होते हुए ससुर जी से कहा- पापाजी, उस पैकेट में से एक सेनेटरी नैपकिन निकाल कर मेरी पैंटी के अन्दर चिपका दीजिये और फिर वह पैंटी और नाइटी मुझे पहना दीजिये।
ससुरजी ने मेरे कहे अनुसार वह सब करके मुझे पैंटी पहनाने के बाद मुझे नाइटी पहनाई और फिर मुझे कमर से पकड़ कर सहारा देते हुए कमरे में लाकर मुझे बिस्तर पर लिटा दिया।
रात का एक बज चुका था और ससुरजी जब मेरे कमरे की लाईट बंद करके अपने कमरे में सोने के लिए जाने लगे तब मैंने उन्हें कहा– पापाजी, रात में मुझे बाथरूम में जाने एवं पैंटी उतरवाने के लिए आपकी ज़रूरत पड़ सकती है इसलिए आप मेरे कमरे में मेरे साथ वाले बिस्तर पर ही सो जाइए।
ससुरजी मेरी बात सुन कर थोड़ा झिझके लेकिन फिर बोले- अच्छा, मैं अपने कमरे की लाईट बंद करके आता हूँ।
लगभग पांच मिनट के बाद वह आ कर मेरे साथ वाले बिस्तर पर मेरी ओर पीठ कर के सो गए।
रात में मुझे दो बार बाथरूम जाना पड़ा जिसके लिए मैंने ससुरजी का सहारा लिया और अपनी वासना की तृप्ति के लिए उनसे हर बार अपनी योनि में उंगली डलवा कर सफाई भी करवाई।
क्योंकि मेरी उत्तेजना एवं वासना की तृप्ति हो चुकी थी इस कारण मैं भी निश्चिन्त हो कर नींद की गोद में खो गई और सुबह बहुत देर तक सोई रही।
ससुरजी मेरे कमरे से कब उठे कर गए मुझे पता ही नहीं चला और मेरी नींद तब खुली जब कामवाली मेरे कमरे की सफाई करने के लिए आई थी!
मुझे इतनी गहरी नींद आई थी कि मुझे कामवाली के आने का और ससुरजी के काम पर जाने का पता भी नहीं चला था।
दिन तो दो-तीन बार कामवाली बाई के सहारे सामान्य रूप से बीत गया लेकिन रात कैसे बीतेगी, मुझे इसकी चिंता सताने लगी थी।
रात को दस बजे जब ससुरजी सोने जाने से पहले मुझे देखने तथा मेरे कमरे की लाईट बंद करने आये तब मुझसे पूछा- कामना, मैं सोने जा रहा हूँ। अगर तुम्हे कुछ चाहिए तो बता दो, मैं अभी दे जाता हूँ।
मैंने कहा- पापाजी, सब कुछ तो कामवाली रख गई है। अभी तो मुझे बाथरूम के लिए आपका सहारा चाहिए है। आप रात की तरह यहीं मेरे साथ वाले बिस्तर पर सो जाइए क्योंकि रात को भी तो बाथरूम जाने के लिए मुझे आपकी ज़रुरत पड़ेगी। एक बार तो अभी ही जाना पड़ेगा।
मेरी बात सुन कर ससुरजी ने मुझे उठा कर खड़ा किया और मेरी कमर को पकड़ कर सहारा देते हुए मुझे बाथरूम में ले गए।
वहाँ मेरे कहे अनुसार उन्होंने मेरी नाइटी को ऊँचा करके मेरी पैंटी को उतरा और मुझे पॉट पर बिठा दिया।
फिर उन्होंने मेरी पैंटी में से सैनिटरी नैपकिन उतार कर डस्ट-बिन में और पैंटी को धोने वाले कपड़ों में डाल दिया।
इसके बाद वह कमरे में जा कर एक साफ़ पैंटी पर नया सैनिटरी नैपकिन चिपका कर ले आये।
उनके आने पर मैंने अपनी टाँगें चौड़ी करके उन्हें मेरी योनि की सफाई के लिए संकेत दिया।
मेरे संकेत को समझ कर वह मग में पानी भर कर ले आये और पानी के छींटे मार कर अपने हाथ से मेरी योनि को मल मल कर साफ़ कर दिया।
फिर मेरे बिना कहे ही उन्होंने अपनी बड़ी उंगली मेरी योनि के अन्दर आठ-दस बार डाल कर उसे साफ़ किया और फिर बाहर से उसे धो कर उसमें से निकला खून और योनि रस भी साफ़ कर दिया।
इसके बाद उन्होंने मुझे सेंट्री नैपकिन लगी हुई साफ़ वाली पैंटी पहना कर मुझे सहारा देते हुए बिस्तर पर लिटा दिया और कमरे की लाईट बंद खुद भी साथ वाले बिस्तर पर सो गए।
पिछली रात की तरह उस रात को भी मैंने दो बार ससुरजी के सहारे से बाथरूम में जा कर अपनी वासना की तृप्ति के लिए उनसे हर बार अपनी योनि में उंगली डलवा कर सफाई भी करवाई।
उस रात भी मुझे बहुत अच्छी नींद आई और मैं सुबह तक एक ही करवट सोती रही तथा कामवाली ने ही मुझे जगाया था।
यही सिलसला अगले तीन दिनों तक यानि की मेरे मासिक धर्म के आखिरी दिन तक चलता रहा और मैं उन सभी दिनों में बहुत ही संतुष्ट एवं खुश रहती थी।
पांचवीं रात यानि की मासिक धर्म बंद होने की आखरी रात को जब ससुरजी ने मेरी योनि की सफाई करी और उन्होंने अपनी उंगली पर खून नहीं लगा पाया तब उन्होंने मुझे वह उंगली दिखाते हुए कहा- कामना, अब तो तुम्हारा मासिक धर्म बंद हो गया है क्योंकि आज तो तुम्हारी योनि से खून नहीं निकला है।
उनकी बात का उत्तर देते हुए मैंने कहा- हाँ पापाजी, मासिक धर्म को होते हुए आज पांच दिन पूरे होने को है इसलिए बंद तो हो जाना चाहिए, लेकिन फिर भी आज की रात तो सफाई करनी ही पड़ेगी।
मेरी बात सुन कर ससुरजी ने अपनी उंगली कई बार मेरी योनि में डाल कर घुमाते रहे जब तक की मेरा रस नहीं निकल गया।
फिर उन्होंने उसे अच्छी तरह से मल मल कर धोया ओर साफ़ करके मुझे पैंटी पहना कर सहारा देते हुए बिस्तर पर ला कर लिटा दिया और मेरे साथ वाले बिस्तर पर सो गए।
जल्द ही ससुरजी के खराटे सुनाई देने लगे लेकिन मुझे नींद नहीं आ रही थी क्योंकि मैं आगे आने वाले दिनों के बारे में सोच रही थी।
मुझे चिंता थी की मेरे मासिक धर्म बंद होने के बाद जब मैं पैंटी पहनना बंद कर दूंगी तब तो मैं बाथरूम आदि के लिए ससुरजी से सहारा भी नहीं मांग सकूँगी और उस स्थिति में मेरी कामवासना की आग की संतुष्टि कैसे होगी?
मेरे मस्तिष्क में अगले दिन से फिर कामवासना की आग में तड़पने का ख्याल आते ही मेरा शरीर काम्प उठा और मैं उठ कर बैठ गई तथा मुझे पसीने आने लगे।
तभी ससुरजी ने करवट बदली और मुझे बैठे हुए पाया तो उन्होंने समझा कि मुझे बाथरूम जाना है इसलिए तुरंत लाईट जला कर मुझे देखने लगे।
मेरे चेहरे और बदन पर पसीना देख कर वह घबरा उठे और चिंतित स्वर में पूछा- क्या हुआ कामना, तुम ठीक तो हो? तुम्हें इतना पसीना क्यों आ रहा है?
मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या कहूँ इसलिए कह दिया- मैं ठीक हूँ पापाजी, ऐसी कोई बात नहीं है! बस थोड़ी गर्मी से परेशान हूँ और समझ नहीं आ रहा कि क्या करूँ।
जब ससुरजी ने पूछा- पंखा चला दूँ क्या?
तब मैं समझ गई कि उनकी तरफ से बात आगे नहीं बढ़ेगी और मुझे ही कुछ कहना तथा करना होगा।
इसलिए मैंने कहा- नहीं, यह गर्मी पंखे की हवा से दूर होने वाली नहीं है। आप सो जाइए क्योंकि मुझे लगता है कि आपसे इसका कोई भी इलाज़ नहीं हो सकता।
ससुरजी ने फिर पूछा- अगर इसका इलाज़ मुझसे नहीं हो सकता तो डॉक्टर तो कर सकता है। मैं अभी डॉक्टर को फ़ोन करके पूछ लेता हूँ।
जब मैंने देखा की वह उठ कर डॉक्टर को फ़ोन करने के जाने लगे थे तब मैं बोल पड़ी- डॉक्टर से पूछ कर क्या मिलेगा? वह अपनी फीस झाड़ने के लिए आ जायेगा और कुछ महंगी दवाइयाँ लिख कर दे जाएगा।
फिर थोड़ा रुक कर अपनी सांस को नियंत्रण में रखते हुए कहा- पापाजी आप तो शादीशुदा रह चुके हो, आपको तो पता ही होगा कि स्त्रियों की गर्मी का इलाज़ कैसे करते हैं। क्या आप मेरा वैसा इलाज़ नहीं कर सकते?
मेरी बात सुन कर ससुरजी का मुख खुला का खुला ही रह गया और धम्म से बिस्तर पर बैठते हुए बोले- कामना, तुम यह क्या कह रही हो? तुम मेरी बहू हो, मैं तुम्हारे साथ ऐसा कुछ भी करने की सोच भी नहीं सकता और ना ही करना चाहूँगा।
मैं रोष दिखाते हुए कहा- जब आप कुछ करना नहीं चाहते तो फिर यह चिंता का ढोंग किस किये कर रहे हैं? मेरे लिए चिंतित दिखने का झूठा नाटक क्यों कर रहे हैं?
मेरी बात सुन कर वह बोले- नहीं कामना, तुम गलत सोच रही हो। मुझे तुम्हारी चिंता है इसीलिए रात के समय तुम्हे इस हालत में देख कर मैं परेशान हो गया था। जो बात तुमने स्त्रियों के बारे में कही है वह मैं जानता हूँ लेकिन तुम्हारे परिपेक्ष में मैं वह सोच ही नहीं सकता हूँ।
मैं भड़क उठी और कह दिया- क्यों नहीं सोच सकते? क्या आप एक पुरुष नहीं हो? क्या आपको पता नहीं की जब एक स्त्री उत्तेजित हो जाती है तब उसकी क्या हालत होती है? जब सासू माँ जिन्दा थी तब क्या उन्हें भी आप इस तरह पसीने में भीगे देख कर डॉक्टर को बुलाने जाते थे?
मेरे कथन के उत्तर में उन्होंने कहा- मैं यह सब जानता और समझता हूँ लेकिन तुम्हारी सास मेरी पत्नी थी।
मैंने तुरंत कह दिया- लेकिन सासू माँ भी एक स्त्री थी इसीलिए तो वह आप की पत्नी बनी थी। आप अपनी पत्नी की नहीं एक स्त्री की कामवासना का इलाज़ करते थे और उसको संतुष्टि देते थे। मैं भी एक स्त्री हूँ जो उसी तरह की गर्मी और जलन से तड़प रही हूँ तो फिर आप मेरी कामवासना का इलाज़ करके मुझे संतुष्ट क्यों नहीं कर देते?
इसके बाद ससुरजी ने बहुत से तर्क दिए लेकिन मैंने उनकी एक भी तर्क को स्वीकार नहीं किया और सरकते हुए उनके पास पहुँच गई तथा उनकी जाँघों पर अपना सिर रखने लगी।
अब चौंकने की बारी मेरी थी…
क्योंकि जैसे ही मैं सिर नीचे रखने के लिए झुकी तभी ससुरजी झटके से उठ कर खड़े हुए और उनकी लुंगी आधी मेरे नीचे बिस्तर पर थी और बाकी की आधी फिसल कर फर्श पर गिर पड़ी थी।
हुआ ऐसे था कि मेरे उनके पास सरकते समय उनकी लुंगी का कुछ अंश मेरे शरीर के नीचे आ गया था और जब ससुरजी झटके से उठे तब उनकी लुंगी की गाँठ खुल गई और वह उनके शरीर से अलग हो गई।
हड़बड़ाते हुए नग्न ससुरजी अपने एक हाथ से अपने तने हुए लिंग को छुपाते हुए और दूसरे हाथ से मेरे नीचे से अपनी लुंगी खींचने लगे।
उनकी झल्लाहट देख कर मैंने उनसे कहा- पापाजी, शायद ऊपर वाला भी यही चाहता है कि आप मेरी कामवासना की संतुष्टि करें। तभी तो उसने आपकी लुंगी को आपके तन से अलग कर दी है।
मैंने आगे कहा- आप इस तने हुए लिंग को अभी बाथरूम में लेजा कर हस्त-मैथुन करके शांत करें लेंगे लेकिन वह नहीं करेंगे जिस एक ही क्रिया से हम दोनों को कामवासना को शांति एवं संतुष्टि मिल जाए।
मेरी दलील सुन कर ससुरजी का ह्रदय परवर्तन हो गया और उन्होंने लुंगी का छोर और अपने लिंग को छोड़ दिया और बनियान उतारते हुए पूर्ण नग्न मेरे नज़दीक आ कर खड़े हो गए।
मेरे दोनों हाथ प्लास्टर में बंधे होने के कारण मैं तो ससुरजी के किसी भी अंग को छू नहीं सकी लेकिन उनके तने हुए लिंग को हसरत भरी नजरों से देखती रही।
उनके लिंग और मेरे पति के लिंग में इतनी समानता थी कि कुछ क्षण के लिए तो मैं समझी कि मेरे पति ही मेरे सामने खड़े है क्योंकि दोनों लिंगों का रंग, रूप, आकार और नाप बिल्कुल समरूप था।
मेरे पति की तरह मेरे ससुर का लिंग भी साढ़े छह इंच लम्बा और ढाई इंच मोटा था तथा दोनों के सुपारे की त्वचा का रंग, रूप एवं आकार भी एक जैसा ही थी।
फिर ससुरजी ने मुझे सहारा देकर बिस्तर पर बिठा दिया और मेरी नाइटी को ऊपर कर के मेरे शरीर से अलग कर दी तथा मेरी टांगों से मेरी पैंटी भी उतर कर मुझे पूर्ण नग्न कर दिया।
इसके बाद वे मेरे बहुत पास आ गये तथा मेरे चेहरे को अपने दोनों हाथों मे ले कर मेरे होंठों पर अपने होंठों को रख दिया।
अगले दस मिनट तक हम दोनों चुम्बन का आदान प्रदान करते रहे और साथ में ससुरजी अपने हाथों से मेरे स्तनों को दबाते और चुचूकों को उँगलियों से मसलते रहे।
दस मिनट के बाद उन्होंने मेरे दोनों स्तनों पर हमला कर दिया और उन्हें बारी बारी चूसने लगे जिसके कारण मुझे अपने शरीर में चींटियाँ रेंगती महसूस होने लगी थी।
मेरे स्तनों और चुचुकों में बहुत तनाव आ गया और वे एकदम सख्त हो गये थे एवं उनका आकार भी बढ़ गया था।
ससुरजी जब मेरी चुचूकों को चूस रहे थे तब मेरे स्तनों में से उत्तेजना की तरंगें मेरी नाभि से होती हुई मेरी योनि तक पहुँच रही थी जिसके कारण मेरी योनि पूर्व-रस के रिसाव से बिल्कुल गीली हो गई थी।
दस मिनट तक मेरे स्तनों को चूसने के बाद जब ससुरजी ने खड़े हो कर अपने तने हुए लिंग को मेरे ओर बढ़ाते हुए मेरे होंठों के पास लाये
मेरे खुले मुख को देख कर ससुरजी मुस्करा पड़े और उन्होंने बड़े ही आराम से अपने लिंग को उसके अंदर धकेल दिया तथा आहिस्ता आहिस्ता धक्के देकर अंदर बाहर करने लगे।
मुख-मैथुन की क्रिया करते हुए लगभग पांच मिनट ही हुए थे जब मुझे उनके लिंग में से नमकीन पूर्व-रस निकलने का स्वाद आया तब मैंने उन्हें रुकने का संकेत दिया और अपनी दोनों टांगें चौड़ी कर दी।
मेरा संकेत समझ कर वे तुरंत मेरी टांगों के बीच में बैठ गए और मेरी गीली योनि को चूसने एवं चाटने लगे।
कभी वे मेरी योनि के होंटों को अपने मुहं में ले कर चूसते, तो कभी वे मेरे भगनासा को अपने होंटों एवं जीभ से मसलते और कभी अपनी जीभ के योनि के अन्दर डाल कर मेरे जी स्पॉट को भी रगड़ देते।
दस मिनट तक उनकी इस तिकोणी क्रिया के कारण मैं इतनी उत्तेजित हो गई कि मैंने कई बार अपने कूल्हे उछाल कर उनका साथ दिया और दो बार तो उनके मुख पर योनि-रस की बौछार भी कर दी।
मेरे द्वारा दूसरी बार रस की बौछार होते ही वह उठ बैठ गए और अपने लिंग को मेरी योनि के मुख पर स्थिर करके मेरे ऊपर लेट गए तथा हल्का सा धक्का लगा कर अपने लिंग को मेरी योनि के अंदर सरका दिया।
कुछ क्षणों के बाद ससुरजी ने एक धक्का और लगा कर अपने लिंग को जड़ तक मेरी योनि में घुसेड़ दिया और आहिस्ता आहिस्ता उसे अन्दर बाहर करने लगे।
एक माह के बाद लिंग का स्वाद मिलने पर मेरी योनि के अंदर हलचल होने लगी और वह आवेश में आ कर लिंग को जकड़ कर आलिंगन करने लगी।
जब ससुरजी अगले दस मिनट तक योनि की इस जकड़न में फसे अपने लिंग को आहिस्ता आहिस्ता अंदर बाहर करते रहे तब मैंने उन्हें गति को बढ़ाने के लिए कहा।
मेरी बात सुन कर जब ससुरजी ने अपनी गति बढ़ा दी तब मैंने भी उनकी गति के अनुसार अपने चूतड़ उछाल कर उनका साथ देने लगी।
पांच मिनट के बाद मेरा शरीर अकड़ने लगा और मेरी योनि के अंदर सभी मांस-पेशियाँ सिकुड़ने लगी तथा योनि ने ससुरजी के लिंग को जकड़ लिया।
ऐसी हालत में ससुरजी ने अपनी गति को बहुत ही तीव्र कर लिया और खूब जोर लगा कर लिंग को मेरी योनि के अंदर बाहर करने लगे जिससे हम दोनों के गुप्तांगों को बहुत तेज़ रगड़ लगने लगी।
इस तीव्र गति से सम्भोग करते हुए पांच मिनट ही हुए थे कि मैंने बड़े ऊँचे स्वर में सिसकारी ली और तभी ससुरजी भी जोर से चिल्ला उठे तथा हम दोनों ने एक साथ ही अपने अपने रस को स्खलित कर दिया!
हम दोनों के अकड़े हुए शरीर एक दूसरे से चिपके हुए थे और हम उस समय उतेजित कामवासना की चरम-सीमा पर मिलने वाली संतुष्टि का आनन्द उठा रहे थे।
उसके तुरंत बाद हम पसीने से भीगे शरीर लिए और हाँफते हुए निढाल हो कर अगले पांच मिनट के लिए मैं नीचे तथा ससुरजी मेरे ऊपर लेट रहे।
फिर ससुर जी मेरे ऊपर से हटे और अपने सिकुड़े हुए लिंग को मेरी योनि में से बाहर निकाल कर मेरे स्तनों को अपने हाथों में पकड़ कर मेरी बगल में मुझ से लिपट कर सो गए।
कुछ देर के बाद मुझे भी नींद आ गई और सुबह पांच बजे जैसे ही ससुरजी उठ कर जाने लगे तभी मेरी भी नींद खुल गई।
मुझे जागे हुए देख कर ससुरजी ने झुक कर मेरे होंठों को चूमा और मुस्कराते हुए पूछा- कामना, तुम्हारी गर्मी का इलाज़ हो गया या फिर अभी भी गर्मी लग रही है?
मैंने मुस्कराते हुए उन्हें चूमा और उत्तर दिया- पापाजी, किसी भी स्त्री की इस गर्मी का कोइ स्थायी उपचार नहीं होता है। हाँ आपने कुछ समय के लिए मेरी इस गर्मी का अस्थायी इलाज़ तो कर दिया है लेकिन देखते हैं कि इसका असर कितनी देर तक रहता है। कहीं ऐसा ना हो कि दिन में भी यह गर्मी मुझे फिर सताने लगे और इसके इलाज़ के लिए मुझे आपको ऑफिस से बुलाना पड़े।
मेरी बात सुन कर ससुरजी हंस पड़े और मेरे स्तनों को मसलते हुए मुझे एक बार फिर चूमा और मेरी योनि पर हाथ हुए बोले- कामना, अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हे अभी एक बार फिर से वही आनन्द और संतुष्टि देने को तैयार हूँ क्योंकि मैं नहीं चाहता कि दिन भर तुम्हें इस गर्मी के कारण कोई परेशानी हो।
ससुरजी की बात सुन कर और उनके तने हुए लिंग को देख कर मैंने उन्हें उत्तर दिया- पापाजी, मुझे दिखाई दे रहा है कि आपकी कामवासना जागृत हो चुकी है और आप एक बार फिर से रात जैसा आनन्द लेना चाहते है। इस बारे में आपको पूछने की ज़रूरत नहीं है। जब तक मैं अमेरिका नहीं चली जाती तब तक आप को जब भी यह आनन्द उठाना हो आप बिना झिझक आनन्द उठा सकते हैं।
मेरी बात सुन कर ससुरजी बोले- कामना, सच कहूँ तो तुमने मेरी सोई हुई कामवासना जगा दी है। तुमने जितना आनन्द मुझे रात को दिया था उतना ही आनन्द तुम्हारी स्वर्गीय सास भी मुझे दिया करती थी। तुमने बिल्कुल ठीक कहा है कि मेरी बहुत इच्छा कर रही है कि हम दोनों अभी इसी समय एक बार फिर से उसी आनन्द और संतुष्टि को प्राप्त करें।
उनकी बात सुन कर मेरी भी कामवासना जाग उठी इसलिए मैंने कहा- पापाजी, मैं भी आप को बताना चाहूँगी कि रात को मुझे भी उतना ही आनन्द और संतुष्टि प्राप्त हुई है जितनी आपका बेटा अजय मुझे देता है। मैं तो उस समय भी यही समझ रही थी कि अजय ही मेरी कामवासना को शांत कर रहा है।
फिर मैंने अपनी टाँगे चौड़ी करते हुए उन्हें कहा- पापाजी, नेकी और पूछ पूछ किस लिए? लीजिये मैं आप की कामवासना को शांत करने और आप को पूर्ण आनन्द देने के लिए तैयार हूँ। आइये जल्दी से आ जाइए, क्योंकि छह बजे कामवाली आ जाएगी।
मेरी बात सुन कर ससुरजी ने झुक कर मुझे होंठों पर चूमना शुरू कर दिया और एक हाथ से मेरे स्तनों एवं चुचूकों को मसलना तथा अपने दूसरे हाथ की बड़ी उंगली को मेरी योनि में डाल कर घुमाने लगे।
पांच मिनट के बाद ससुरजी ने मेरे होंठों को छोड़ दिया और मेरे स्तनों को मसलने एवं चूसने लगे तथा मेरी योनि के अंदर मेरे जी-स्पॉट को अपनी उंगली से रगड़ने लगे।
उनकी इस हरकत के कारण मैं शीघ्र ही उत्तेजित हो उठी और अपने चूतड़ उठा कर उनका साथ देने लगी तथा मुँह से ऊँचे स्वर में सिसकारियाँ भरने लगी।
मेरी सिसकारियां सुन कर ससुरजी बहुत ही उत्तेजित हो उठे और अगले ही क्षण वह मेरे ऊपर चढ़ गए और अपने पूर्व-रस से भीगे हुए लिंग को मेरी गीली योनि में डाल कर आहिस्ता आहिस्ता अन्दर बाहर करने लगे।
उनके लिंग के मेरी योनि के अंदर जाते ही योनि में झनझनाहट होने लगी और उसने सिकुड़ कर ससुरजी के लिंग को अपने बाहुपाश में जकड़ लिया।
लगभग दस मिनट तक इस संघर्ष के बाद जब मैं और भी अधिक उत्तेजित हो उठी तब उन्होंने मेरे कहने पर तेज़ी से धक्के मारने शुरू कर दिए।
उनके तेज़ धक्कों से मेरी योनि के अंदर हलचल बढ़ गई और कुछ ही क्षणों में उसमें से योनि-रस की धारा निकल पड़ी।
मेरे रस के कारण योनि में फिसलन बढ़ गई जिसकी वजह से ससुरजी को धक्के मारने में आसानी हो गई और उन्होंने अपने धक्कों की गति को बहुत ही तीव्र कर दिया।
अब पूरे कमरे में मेरी सिसकारियों के साथ साथ मेरी योनि में से निकलने वाली ‘फच फच’ की आवाजों का संगीत गूंजने लगा।
उस मधुर संगीत के रोमांचकारी मौहौल में हम दोनों इतने उत्तेजित हो उठे की अगले पांच मिनट के बाद मेरा पूरा जिस्म अकड़ गया और मेरी योनि के अंदर अति-अधिक खिंचावट होने के कारण ससुरजी के लिंग पर बहुत तेज़ रगड़ लगी।
उस रगड़ के कारण ससुरजी का शरीर भी अकड़ गया और मुझे मेरी योनि के अंदर उनके लिंग के फूलने का एहसास होने लगा।
अगले ही क्षण दो या तीन धक्कों के बाद ससुरजी एवं मेरे मुँह से बहुत ही ज़ोरदार चिंघाड़ एवं सिसकारी निकली और उसके साथ ही दोनों के गुप्तांगों में से उनके रसों की बौछार हो गई।
हम दोनों के गुप्तांगों ने इतना अधिक रस छोड़ा कि मेरी योनि पूरी भर गई और उसमें से रस बाहर भी निकलने लगा था।
हम दोनों बुरी तरह हांफ रहे थे और दोनों के बदन पसीने से भीगे हुए थे और ससुरजी मेरे ऊपर लेटे हुए अपनी साँसों को नियंत्रण कर रहे थे।
दस मिनट तक ऐसे ही लेटे रहने के बाद ससुर जी बिस्तर से उठे और मुझे भी उठा कर बाथरूम में ले जाकर उन्होंने मेरी योनि और अपने लिंग को अच्छे से साफ़ किया और मुझे नाइटी पहना कर बिस्तर पर लिटा दिया।
फिर वह बनियान और लुंगी पहन कर नीचे झुक कर मेरा चुम्बन ले रहे थे तभी मुख्य द्वार की घंटी ने बज कर कामवाली के आने की घोषणा कर दी।
एक माह के बाद जब मेरे हाथों का प्लास्टर उतर गया तब मैं अपनी कामवासना की संतुष्टि के लिए हर रात ससुरजी के कमरे में जाती और दोनों अलग अलग आसनों में क्रिया को करते हुए आनन्द उठाते।
उसके बाद मैंने कामवाली को हटा दिया और मेरा अमेरिका का वीसा आने तक लगभग अगले साढ़े तीन माह तक ससुरजी और मैंने अपनी कामवासना के आनन्द और संतुष्टि के लिए जब भी इच्छा होती, सम्भोग करते थे।
हमने अपने घर की बैठक, बैडरूम, बाथरूम, रसोई, स्टोर, आँगन तथा हर कोने में किसी न किसी आसन में सम्भोग किया और संतुष्टि पाई।
जिस दिन मैंने अमेरिका की फ्लाइट पकड़नी थी उससे सात दिन पहले ही ससुरजी ने छुट्टियाँ ले ली थी और दिन हो या रात वह रोजाना चार चार बार मेरे साथ सम्भोग कर के मेरी और अपनी कामवासना को शांत करते थे।
मेरे अमेरिका आने के बाद ससुरजी अकेले रह गए थे और मुझे बहुत याद करते रहते थे तथा वह अकसर मेरे साथ स्काइपी पर वीडियो चैट करते समय अपना लिंग निकाल कर हस्त-मैथुन कर के दिखाते थे।
ससुरजी हर वर्ष तीन माह के लिए हमारे पास रहने के लिए अमेरिका आते हैं और उन तीन माह में मेरी कामवासना की संतुष्टि दिन के समय तो ससुरजी और रात के समय अजय करते हैं।
अगले माह ससुरजी तीन माह के लिए हमारे पास रहने आ रहे है और मुझे आशा है कि पिछले चार वर्षों की तरह इस बार भी उनके साथ कामवासना संतुष्टि का अत्यंत मनोरंजक कार्यक्रम चलेगा।