बात उन दिनों की है जब मैं नई नई जवान हुई… थी यानी मैं सिर्फ 16 साल की थी, और तभी मैंने ये जाना कि पुरुष के हाथों का स्पर्श कितना प्यारा और आनंद दायी हो सकता है… हां वही स्पर्श जो मेरे पापा के हाथ कभी मेरी गांड, कभी मेरी कागजी नींबू जैसी चुचियों को सहला कर मुझे बेखबर जान कर मेसोस कराते थे… मेरी सहेलियां मुझे अक्सर मेरे सामने औरत और मर्द के रिश्ते की बात करती थी, मैं फिर भी बेखबर थी, जानती ही नहीं थी कि मैं ऐसा क्यों महसूस करती हूँ?? क्या कारण है कि मैं सब लड़कियों की चुचियों को, और सब लड़कों के पैंट के हमें उभरे हिससे को मैं इतने लालच से, इतनी गौर से देखती हूँ……. उस दिन जब पापा बनारस से आए और मुझे पुकारा.. मैं भागी-भागी उनके पास गई और बोली..हांजी पापा!! पापा बोले.. अरे बेटा इतनी दूर क्यों खड़ी है यहाँ आ देख मैं तेरे लिए क्या लाया हूँ?? मैं पास आकर पापा की कुर्सी के पास खड़ी हो गई… पापा ने मुझे एक पैकेट दिया जिसमें दो बहुत सुंदर बनारसी सादिया थी.. फिर एक और पैकेट दिया जिसका शायद साज शिंगार का सामान था… मैं तो जैसे खुशी से झूम उठी… कैसा लगा ???? ये कह कर पापा ने मेरे गोल-गोल चूतड़ पर हाथ रख दिए और उन्हें सहलाते हुए बोले… अपनी मां से मत कहना नहीं तो अभी जल मरेगी!!!… मैंने चुपचाप अपनी गर्दन हां करते हुए हिलाए लेकिन ध्यान तो हमें प्यार से सहलाते हुए हाथ पर ही था… तभी मां की आवाज आई और पिताजी ने एकदुम से हाथ खींच लिया… मैं भी पैकेट ले कर वहां से भाग खड़ी हुई… कमरे में आकर भी मेरे बदन पर वो प्यारा सा स्पर्श मुझे महसूस हो रहा था…और ठीक उसी रात एक बहुत प्यारा सा हादसा हुआ जब हम सब चैट पर सो रहे थे…दरअसल हम लोग एक मिडिल क्लास फैमिली से हैं… घर भी ज्यादा बड़ा नहीं है….इसलिये अक्सर गर्मी के कारण हम अक्सर ऊपर चैट पर सो जाया करते थे….जुलाई का महीना था, सब लोग खाना खा कर सो गये थे लेकिन पता नहीं क्यों मेरी आँखों से तो जैसे नींद गायब थी..मेरे दिमाग में तो रह-रह कर वो अजीब सी गुदगुदी थी जो मुझे पिता जी के सहलाने से हुई थी गूंज रही थी… तभी माँ जो कि मेरी बराबर मैं लेती थी धीरे से फुसफुसायी.. ….कोमल बेटा!!!! मैंने सोचा जरूर पानी मांगेगी मम्मी मैं तो चुप चाप ही लेती रहूंगी… मां ने एक आवाज और लगाई और उठ के बैठ गई.. मैं फिर भी चुप चाप लेती रही.. तभी मां उठ कर पिताजी के बिस्तर की तरफ चली गई.. मैंने सोचा मां वहां क्यों गई है?? लेकिन माँ तो पापा के पास पहुँचते ही उन्हें किसी ने भूखा रखा कि तरह लिपट गई… ये देखते ही मेरा अंग अंग झंझना उठा….तभी पापा की आवाज आई इतनी देर क्यों लगा दी… माँ बोली तुम तो कुछ भी नहीं समझती घर में जवान बेटी है और एक तुम्हारी भूख है कि बढ़ती ही जा रही है!!! पापा बिना कुछ बोले माँ की बड़ी बड़ी चुचियों को दबाने लगे… मैं चुप चाप हदबदाई सी पड़े हुए उन्हें देखने लगी….चांदनी रात मैं तो उन्हें साफ देख पा रही थी लेकिन मुझे नहीं पता के उन्हें मेरी खुली हुई आंखे दिख रही थी या नहीं???
पापा मां के गोल गोल चूचियों को जोर जोर से दबा रहे थे…मां के चेहरे जैसा बदल सा गया था..मां पापा के पजामे ऊपर से ही पापा के लिंग को सहला रही थी…मुझे तो जैसे सब कुछ बर्दाश्त के बाहर लग रहा था …पता नहीं क्यों मेरा हाथ मेरे सलवार के अंदर सरक गया..और मैं अपनी चूत को धीरे-धीरे मसलने लगी…हायी….क्या मस्त फीलिंग्स आ रही थी…उधर पापा ने माँ का ब्लाउज खोल कर अलग कर दिया था..माँ भी पापा का लिंग पजामे का नाड़ा खोल कर बाहर निकल चुकी थी….अचानक माँ झुकी और पापा के लिंग को मुंह में लेकर किसी लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी…उधार मेरे हाथ की रगड़न मेरी चूत पर बढ़ती ही जा रही थी…अचानक पापा बोले…जरा नीचे आजू मां चुप चाप नीचे लेट गई और पापा ऊपर आ गए… पापा ने माँ के होठों पर एक जबरदस्त चुम्बन लिया और .. उसके ऊपर लेट गए ..तभी पापा ने माँ की सदी को उनके पेट तक सरका दिया और अपना लंड सेट किया और माँ की चूत को सरका दिया…। मेरी तो जैसे सीत्कार सी निकल गई… माँ भी कहने सी लगी… फिर पापा धीरे-धीरे झटके मारने लगी… मैं तो जैसी पागल सी हो गई थी…
पापा जो कि पेला धीरे-धीरे झटके मार रहे थे तभी जोर जोर से धक्के मारने लगे… माँ ने अपनी टांगों को पिताजी के बदन से लपेट लिया…तभी माँ ने उन्हें जोर से भींच लिया और धीरे-धीरे जैसे उनका शरीर जैसा ठंडा सा पड़ने लगा और वो बिल्कुल बेजान सी हो कर लेट गई…लेकिन पापा अभी भी उसमें जोश से लगे रंग द…. तभी माँ बोली..बोस करो! अब क्या जान ही निकालोगे… पापा बोले… तू तो बुद्धि हो गई है अगर मेरे सामने कोई सोलह साल की जवान लड़की भी आ जाए तो मैं उसको भी नानी याद करा दूं… मेरे दिमाग में सीतियां सी बजने लगी.. मैं भी तो सोलह साल की ही हूं.. और एक बात जब पापा ये बात बोल रहे थे तो मुझे लगा कि शायद पापा मेरी ही और देख रहे थे.. मैं तो गंगा उठी मेरे हाथ की उंगली मेरी चूत मैं सरक चुकी थी..मैं तो पगलो की तरह अपने मस्त हुए पापा की तरफ देख कर जोर जोर से अपनी उंगली को अंदर बाहर करने लगी…तब पापा जी बोले.. बस कोमल की मां, थोड़ी देर और बर्दाश्त करले मैं भी झड़ने ही वाला हूं.. ये सुनकर तो मैं और जोर-जोर से हाथ चलाने लगी… तभी पापा जी जैसे मुश्किल से गए और अनहोने मां को जोर से बहुतों ने भींच लिया…उधर मुझे भी ऐसा लगा कि जैसे मेरा पिशाब निकल जाएगा…मैं अपनी उंगली को चाह कर भी ना रोक पाई और अचानक मैंने देखा कि पापा के मुंह से एक जोर की सिसारी निकली है…उतार मैं भी पानी छोड़ चुकी थी मैं और पापा एक साथ ही झड़े ये सोच कर मैं तो जैसे गंगा उठी… पापा ने मम्मी को फिर एक बार जोर से चूमा और अलग हो कर लेट गए….मैंने भी अपना हाथ अपनी सलवार से निकाला और चुपचप आंखे बंद कर ली…। मैंने फिर मां के उठने की आवाज सुनी जैसे वो पापा की चारपाई से उठ कर फिर से मेरे पास ही लेट गई हो… उस रात तो ऐसी नींद आई कि मुझे अपनी भी होश नहीं आ रही… सुबह मां ने मुझे जोर जोर से हिला कर उठाया… .कोमल उठ घर का काम नहीं करना है क्या… भांग खा के सोयी थी क्या???? मैं उठ कर जब बाथरूम गई तो अपनी सलवार की तरफ देखा वहां पर एक बड़ा सा निशान बन चूका था… मेरे अंदर तो एक गुदगुदी सी दौड़ गई.. मैंने चुप चाप नए कपड़े निकले और उन्हें लेकर नहाने के लिए चली गई..लेकिन रात की बात मुझे जैसी कचोट रही थी…जब मैं नहा कर निकली तो पापा बाहर ही खड़े थे मैं तो जैसी सकपका गई.. पापा मेरे पास आये और बोले… अरे!बेटा आज तो बड़ी जल्दी नहीं ली?? मैंने जवाब दिया… पापा आज गर्मी बहुत है… पापा बोले… बेटा जवानी में गर्मी कुछ ज्यादा ही लगती है!! ये कह कर उन्हें एक हाथ मेरी गाल पर रख दिया..और एक हाथ को बेखबरी के साथ मेरी चुचियों पर टीका कर सहलाने लगे…मैं तो जैसी मस्त सी हो गई..तभी जैसे कुछ आहत सी हुई..पापा मुझसे अलग हो गए..मैं भी अपने कमरे की तरफ चल दी…तब्ही मां किचन से बाहर आ गई… और मुझे देखते हुए बोली… शाबाश बेटा.. रोज जल्दी नहा ले तो तू अच्छी बची ना बन जाएगी… मैं चुप चाप कमरे में चली गई…। उस समय मुझे मेरी मां मेरी सबसे बड़ी दुश्मन लग रही थी… मेरे दिमाग तो जैसे हर समय पापा के पास जाने को ही मचलता रहता था..
और फिर वो दिन भी आया जिसका मुझे इंतज़ार था…. करीब दस दिन के बाद संदेसा आया कि एक हफ़्ते बाद मेरे सबसे छोटे मामाजी की शादी थी… माँ तो बहुत खुश थी… मुझसे बोली बेटा मैं तो कल ही चली जाऊँगी तू पापा के साथ शादी से दो दिन पहले जाना.. मैं तुझे भी साथ ले चलती लेकिन यहां तेरे पापा का खाना कौन बनाएगा… मां ने उसी रात सारी पैकिंग की… सुबह ही मां की ट्रेन थी.. अगले दिन सुबह ही मां ने मुझे जगाया बोली… बेटा मैं जा रही हूं अपना और अपने पापा का ख्याल रखना… और मम्मी ने मुझे कुछ रुपये भी दिये.. हां कह कर माँ पापा के साथ निकल गयी… मैं घर पर अकेली हूं ये सोच कर तो जैसे मेरे सारे बदन में आग सी लगी हुई थी… मैंने सोच लिया कि आज तो कुछ करके ही मानूंगी…
मैं उठी और नहा कर तैयार हो गई… तभी पापा का फोन आया… बेटा कोमल मैं इधर से ही काम पर जा रहा हूँ शाम को जल्दी आ जाऊँगा.. तू घर का ख्याल रखना!!!! मुझे इतना गुस्सा आया…मैं तो जैसे जल भुन सी गई… सारा दिन मैंने कैसे गुजारा मुझे ही पता है.. मैंने इतने प्यार से पापा की लाई हुई सादी पहनती थी.. गुस्से में आ कर मैंने वो साडी उतार केर फेंक दी… और पेटीकोट ब्लाउज मैं आ गई.. दिमाग तो जैसा खराब हो चूका था…मैं जा कर अपने बिस्तर पर लेट गई…पता नहीं कब नींद आ गई…रात को दरवाजे की घंटी की आवाज से मेरी नींद खुली….देखा 8 बज चुके थे मैं उठी और जा कर दरवाजा खोला..देखा पापा आ गए थे ..पापा ने मेरी और प्यार से देखा..और बोले..क्या बात है सादी नहीं पहचानी…मुझे होश आया..और मैं अंदर की और चुप हो गयी..पापा बोले..अरे!! शर्मा क्यों रही है मैं तेरा बाप हूं तुझे तब से देखता हूं जब तू नंगी सारे घर में घूमती थी.. मैं धीरे से बोली.. खाना लगा दूं???? पापा बोले…नहीं मैं तो खा के आया हूं.. तू बिस्तार लगा दे मैं आराम करना चाहता हूं.. मैं बोली… अच्छा !!! और खिड़की के पास जा कर खड़ी हो गई.. पापा बोले.. क्या हुआ? और मेरे पास आकार खड़े हो गए.. मैंने खिड़की की तरफ मुंह कर लिया और झुक कर बाहर झटके हुए उनसे बोली..पापा! बहार तो बादलों से हो रही है.. लगता है बारिश होगी.. पापा मेरे करीब आ गए और उनको मेरी गांड पर हाथ रख दिया.. और बोले.. हां लगता है आज जाम कर बारिश होगी! इतना कह कर पापा मेरी गांड को धीरे-धीरे दबाने लगे… मैं तो जैसे सारे दिन का गुस्सा भूल कर मदमस्त हो गई.. तभी पापा ने मेरी गांड के बीच में हाथ रख दिए अपनी उंगली ठीक मेरी गांड के छेद पर दबाई… मेरे तो सारे बदन में एक आग सी दौड़ गई.. पापा मेरी गांड पर हाथ फेरते हुए बोले… बेटा तेरी मां कहती है कि तू जवान हो गई है.. तेरे लिए लड़का देख लूं.. आज मैं भी देखूंगा कि तू कितनी जवान हो गई है… ये कह कर उन्हें मेरे ब्लाउज के ऊपर की खुली हुई पीठ पर धीरे से एक पप्पी ले ली… और मुझे चोद कर दूसरे कमरे की तरफ बढ़ गई… मैं भी आकार बिस्तार को लगा ने लगी, मैं दूसरा बिस्तार लगा ही रही थी कि पापा आ गये और बोले..अरे..ये दूसरा बिस्तर किसलिए ?? तू जब छोटी थी तो मेरे ही पास सोती थी… आज अनपे पापा के साथ सोने में डर लगता है क्या??? मैंने भी चुप चाप अपने बिस्तार को समेट कर रख दिया… पापाबोले…बेटा तू लेट जा मैं अभी जरा फ्रेश हा के आता हूँ ??? मैं अकेली ही बिस्तर पर लेट गई मैंने सोचा..आज तो जरूर कुछ करना है.. ये सोच कर मैंने अपने ब्लाउज ऊपर के दोनों बटन खोल लिए…और अपना पेटीकोट भी घुटनो तक चढ़ा कर लेट गई.. तभी पापा कमरे में आए। .मुझे देख कर वो मुस्कुराये..मैं उनकी आँखों में चमक साफ देख सकती थी..
वो मेरे पास आकर बैठ गए..और बोले.. कोमल बेटा!जरा ऊपर को सरको.. मैं जानबूझ कर अपनी जोड़ी को मोड़ कर उठी.. पेटीकोट ऊपर था इसलिए शायद पापा को मेरी मदमस्त चूत की एक झलक तो मिल ही गई हो गी… तबी पापा ने अपना हाथ मेरी टैंगो पर रख दिया… और बोले..कोमल तू तो सच मैं काफी बड़ी हो गई है मैंने शर्म से आंखें बंद कर ली.. पापा ने धीरे-धीरे मेरी झांगे सहलानी शुरू कर दी। मैं तो जैसे मस्त सी हो गई। सहलते पापा ने अपना हाथ मेरी चूत की तरफ बढ़ा दिया। ,मुझे जोर से करंट सा लगा…पापा मेरी चूत को धीरे-धीरे सहलाने लगे..मैंने अपनी आंखें बंद कर ली…तभी पापा ने मेरे पेटीकोट का नाडा खोल दिया..और मेरी पेटीकोट को नीचे से सरका कर अलग कर दिया..अब मैं नीचे से बिल्कुल नंगी अपने पापा के सामने थे..पापा बोले..कोमल आँखे खोल!!! मैने आँखे खोली और पापा की तरफ देखा..पापा ने झुक कर मेरे होठों को चूम लिया…फिर पापा ने मेरे चेहरे को खोलना शुरू किया…उसे भी उतारने के बाद तो जैसे वो पागल से हो गए और मुझे पागलो की तरह चूमने लगे ..फिर उन्हें मेरी चुचियों को अपने हाथों में भर लिया..
और उन्हें जोर जोर से दबाने लगे मुझे दर्द भी हो रहा था और मजा भी आ रहा था….तभी पापा नीचे की और उन्होंने मेरी चूत पर अपना हाथ रख दिया…पहले तो धीरे धीरे फिर तेज तेज वो मेरी चूत को चूसें लगे..मैंने भी धीरे से अपनी तांगे चौड़ी कर ली और मस्ती के मारे अपनी आंखें बंद कर ली…तब पापा उठे और बोले..कोमल जरा उठ जा..मैं उठ कर बैठ गई..पापा बोले ले जरा इसे सहला दे। मैंने अपने हाथों से पापा का लंड शुरू कर दिया…फिर पापा ने अपना नाडा। खोल दिया और अपने अंडरवियर के साथ ही उसको उतार दिया.. मेरे सामने कम से कम 7 इंच का तन हुआ लंड था.. मुख्य सोचने लगी क्या मां की तरह मैं भी इसे अंदर ले पाऊंगी। तभी पापा बोले.. बेटा कोमल!इसे थोड़ा सा चूस दे…। मैं तो चाहती ही यही थी मैंने अपने प्यारे से लंड को अपना मुंह मैं भर लिया…और धीरे-धीरे टॉफी की तरह चूसने लगी.. पापा के मुंह से सिस्कारियां निकल रही थी…तब पापा बोले बेटा जोर जोर से चूस..इसे पूरा अंदर लेले… मैं कोशिश करने के बाद भी सिर्फ 4-5 इंच ही अंदर ले पाई.. फिर मेरा मुंह डुहने लगा… मैं पापा की तरफ देखा..पापा बोले…चल अब तू लेट जा बेटा… मैं लेट गई..फिर वो भी मेरी बगल में बनियान उतार कर लेट गए…उनके नंगा बदन जैसे ही मेरे नंगे बदन से टकराया मैं तो जैसे कानप सी उठी… फिर पापा ने मेरी चुचियों को बारी बारी से चूसा.. और मेरे होठों को चूसने लगे….अचानक हाय पापा मेरे ऊपर आ कर लेट गये…. और अपने लंड का एंगल मेरी चूत पर बैठने लगे… मैं डर गई और बोली…पापा ये तो काफी बड़ा है…। पापा बोले ……हैं! मेरा बच्चा..तू रुक बेटा मैं अभी आया…ये कह कर पापा उठ कर बराबर वाले कमरे में चले गए…और जब आए तो उनके हाथ में एक तेल की शीशा थे…फिर तेल को पहले मेरी चूत पर लगा कर मसलने लगे और अपनी एक उंगली भी अंदर सरका दी…पहले एक, फिर दो उंगलियों को वो मेरी चूत में अंदर बाहर करने लगे मैं तो जैसी पागल सी हो गई थी… तभी पापा ने मेरा हाथ पकड़ कर अपने लंड पर रख लिया न बोले.. कोमल बेटा ले इसपर भी तेल लगा दे.. मैं भी उनके रॉड जैसे मजबूत लंड पर तेल लगाने लगी… फिर करीब 10 मिनट बाद पापा फिर से मेरे ऊपर आ गए और अपने लंड के एंगल मेरी चूत से लगाया.. फिर धीरे से उन्हें मेरी चूत ने अपना लंड सरका दिया.. मैं तो हेयरन थी इतना बड़ा लंड इतने प्यार से मेरी चूत में घूसा जा रहा है…. फिर पापा ने धक्के मारने शुरू किये…पहले धीरे…फिर तेज…मेरी तो जैसी जान ही निकल गई थी…पापा ने धक्का दिया कि स्पीड बढ़ा दी मैं…। मैं भी मस्त हो कर पापा से चिपक गई.. करीब 1/2 घंटे के बाद मैं और पापा एक साथ झड़े,…पापा के गरम गरम वीर्य ने मेरी चूत को भर कर रख दिया… मैं तो जैसे बेहोश सी हो गई थी… झड़ते समय ऐसा लग रहा था जैसे चूत से पानी नहीं मेरी जान निकल रही थी……
उस रात पापा ने मुझे पता नहीं कितने एंगल से चोदा… और मैंने भी भरपूर सहयोग दिया… करीब 5 बार हमने चुदाई का प्यारा सा गेम खेला….अगले दिन पापा ने छुट्टी ले ली..और फिर से मेरी जम कर चुदाई की….मम्मी के आने तक तो लगभग रोज ये सिलसिला चला…फिर मम्मी आ गई तो भी मौका मिलते ही हम एक दूसरे को पूरा-पूरा सुख देते रहे……आज भी मैं अपने पापा की दूसरी बीवी पर प्रतिबंध लगा सकता हूं, उन्हें वो हर सुख देती हूं जो वो चाहते हैं…