Thursday, November 21, 2024
Hindi Midnight Stories

नौकर से चुदाई

मेरा नाम सीमा गुप्ता है. मैं अभी 35 साल की हूं। माई देखने में ठीक ठाक सुंदर हूं। गोरा रामग. बारा बदन. आकर्षण चेहरा. बड़े-बड़े तने हुए उरूज. ममसल जंघे. उभरे हुए ठंडे। यानि की मर्द को प्रिय लगने वाली हर चीज मेरे पास हे। लेकिन मैं विधवा हूं। मेरे पास मर्द ही नहीं है. मेरे पति का देहांत हुए सात साल हुए हेम। मेरे एक लड़का है।उसके जन्म के समय ही मेरे पति चल बसे थे।अब मुन्ने की उमर सात साल की है। पिछले सात साल से मैं विधवा का जीवन गुजार रही हूं। मेरे घर का बड़ा सा मकान हे. उसे मेरे अलावा किरायेदार भी रहते हेम। मैं स्कूल में शिक्षक हूं..ये मेरे जीवन की सच्ची कहानी है। आप से कुछ नहीं छुपाओगी। असल में सेक्स को लेकर मेरी हालत खराब थी। मैने पति के गुज़रने के बाद किसी मर्द से सम्भोग नहीं किया। सात साल हो गए. दिन तो गुजर जाता है पर रात को बड़ी बेचैनी रहती है। माई ठीक से सो भी नहीं पति हु मन भटकता रहता है। रात को अपनी जामघोम के बीच तकिया लगा कर रगड़ती हूं। कई बार कल्पना में किसी मर्द को बसा कर उसे संभोग कराती हूं…और तकिया रगड़ती हूं। यार मैं हमेशा यहीं होता रहता हूं कि कोई मर्द मुझे अपनी बांहों में ले कर पीस डाले.मुझे चूमे…मुझे सहलाएं.मुझे दबाए.मेरे साथ नाना प्रकार की क्रियाएं करें। पर ऐसा कोई मोका नहीं है। मेरे विधवा होने की वजह से पति का प्यार मेरी किस्मत में नहीं है..यू तो मोहल्ले के बहुत से मर्द मेरे पीछे पड़े रहते हैं पर मेरा आदमी किसी पर नहीं आता। मैं डरती हूं. एक तो समाज से कि दूसरे को मालूम पड़ेगा तो लोग क्या कहेंगे? पास पड़ोस है…रिश्तेदार है..स्कूल है..दूसरे खुद से कि अगर कहीं बच्चा ठहर गया तो क्या करुंगी? इसलिये माई खुद ही ताड़पति रहती हम। मुझसे तो शर्म भी बहुत आती है कि अब किसी से क्या कहो कि मेरे पास मर्द नहीं है आओ मुझे चोदो…आप से आदमी की बात कही है। मेरे दिन इन्हीं परिस्थितियों में निकल रहे थे..इन्ही मनोदशा के बीच एक दिन मेरे संबंध मेरे नौकर से बन गए..हरिया, मेरा नौकर.उमरा, 30-35 की है। गाव का है. पहाड़ी ताकतवार कसारती देह फूलदी बदन थोडा काला रामग बड़ी बड़ी मुमचे यम रहता साफ सुथारा है। पिछले दो साल से मेरे पास नौकर है। मैंने अपने ही घर में एक कमरा दे रखा है। इस प्रकार वो हमारे साथ ही रहता है। उसकी बीबी गामव में रहती है। बच्चे है-पामच! साल में एक दो बार छुट्टी लेकर गमव जाता है…बाकी समय हमारे साथ ही रहता है।माई स्कूल जाती हम अताह उसके रहने से मुझे बड़ी सहुलियत रहती है। वाह बीड़ी बहुत पीता है. एक तरह से वह हमारे घर का सदस्‍य ही है..एक औरत की दृष्टि से देखम तो वाह पूरा मर्द है और उसमें वो सब खूबियाम है जो एक मर्द में होना चाहिए…बस जरा काला है और बीड़ी बहुत पीता है..याह कहानी हरिया और मेरे संबंध की है..उस दिन। शाम का समय था. मुन्ना घर से बाहर खेलने गया था। माई और हरिया घर में अकेले थे। माई गिर पड़ी…गिरी तो जोर से चीखी…घबरा गई। हरिया दौड़ कर आया..और मुझे भगवान ने उठाया कर दिया..बीबीजी..कहा लगी.डॉक्टर को बुलाओ?नहीं..नहीं.डॉक्टर की क्या जरुरत है..वेसे ही ठीक हो जाउगी.टैब.आयोडेकसा लगा दम .

वाह दौड़ कर गया और आयोडेक्स की शीशी ले आया..कहा लगी है बताओ..बीबीजी। उसका व्यवहार देख मैं कह दी.यहाँ..पीछे लगी हे..पोम्ड पर..वाह मुझे उल्टा कर के रख दिया। और मेरे पोम्ड पर अपने हाथ लगा कर देखने लगा। सच्चा कहम तो उसकी हरकतें मुझे अच्छी लग रही थी। आज दो साल से वो मेरे साथ हैकाभी उसने मेरे साथ कोई गलत हरकत नहीं की है। आज इस तरह उसका मुझे पहले भगवान में उठाना फिर भी उलट कर पोमद सहलाना..वो तो मेरी चोमट देखने के बहाने मेरे पोमद को सहलाने ही लग गया था। लेकिन उसका हाथ, उसका स्पर्श मुझे अच्छा ही लग रहा था। इसलिए मैं चुप पड़ी रही। वाह पहले तो बैठा कर मेरी सदी पर से पोमद सहारा-फिर कमर पर मलहम लगाया। मल्हम लगाते-लगाते बोलबीबिजी तनिक सादी ढीली कर लो..नीचे तक लगा देता हम.सादी खराब हो जाएगी.मुझे तो दर्द हो रहा था और उसका स्पर्श अच्छा भी लग रहा था, थथ मेने थुनकटे हुए हाथ नीचे ले जा कर पेटीकोट का नाडा खींच दिया। .और सादी पेटीकोट ढीला कर दिया..माई तो उल्टी पड़ी तिहरिया ने जब कांपते हाथ से मेरे कपड़े नीचे कराके मेरे पोम्ड पहली बार देखे तो जनाब की सीटी निकल गई…मुंह से निकला.बीबीजी..आप तो बहुत गोरी हैं। आप के जैसा तो हमारे गांव में एक भी नहीं है। अपनी तारीफ सुन मैं शरमा गई। वो तो अच्छा था कि मैं औमधि पड़ी थी..अकेले बामद कामरे में जवान मालकिन के साथ हमारे की भी हालत खराब थी.करीब छह महीने से वह अपनी बीबी के पास नहीं गया था। मायरे गोर गोर पोमड देख कर उसकी धड़कने बढ़ गयी, हाथ कम्पाने लगा। पर मर्द हो कर इतना अच्छा मौका कैसे छोड़ देता?.मेरे गोरे गोरे ममसल नितांब दवाई लगाने के बहाने सहलाने लगा। दावा कम लगैहाथ ज्यादा फेरा..जब सहारा लेते थोड़ी देर हो गई और उसने देखा कि मैं विरोध नहीं कर रही हम तो आगे बढ़ गए।खुलेपन से मेरे डोनो कुलहोम पर हाथ चलाने लगा। पहले एक..फिर दूसरा..जहाँ चोट नहीं लगी थी वहम भी..फिर दोनों कुलहोम के बीच की गहरी घाटी भी..जब वो मेरे दोनों कुलहोम को हाथ से चोदा कराके बीच की जगह देखा तो मैं तो सैम्स लेना ही भूल गई . वाह चोदा कर के मेरा गुदा द्वार और पीछे की ओर से मेरी चूत तक देख लिया था। अब आपको क्या बताऊ हमारे हाथ के स्पर्श से ही मैं कामुक हो उठी थी। और मेरी चूत की जगह गीली गीली हो चली थी। मेरी चूत पर काफी बड़े बड़े बाल थे..मेने अपनी झमतेम काई महेनोम से नहीं बनाई थी। मुझ विधवा का था भी कौन..जिसके लिए मैं अपनी चूत को सजा सवाम्र कर रखती हूं? कमरे में शाम का धुमधलाका तो पर अभी अँधेरा नहीं हुआ था। माई एक अनोखे दौर से गुजर रही थी..मेरा नौकर सहला रहा था और मैं पड़ी पड़ी सहलावा रही थी। मेरा नौकर मेरे गुप्ताम को पीछे से देख रहा था और मैं पड़ी पड़ी दिख रही थी। यहां तक तो ठीकपर जब उसने जानबुझ कर या अंजाने मेम मेरे गुदा द्वार को अपनी उमंग से त्च किया तो माई उचक पड़ी। शरीर में जैसे करेंट लगा हो..एक बांध से उसका हाथ पकड़ के हटा दी और कह उठिहाय..क्या..कराटे..हो..साथ ही हाथ झटका कर उठा बैठी। मैं घबरा गई थी और मुझसे ज्यादा वो घबराया हुआ था। माई उसका इरादा नेक ना समझा कर पलमग से उतरा पड़ी। परंतु मेरा वो उठ कर खड़े होना गजब हो गया। क्योंकि मेरी सदी तो खुली हुई थी। खादी हुई तो सादी और पेटीकोट डोनो धलाकर पावोम में जा गिरे…

और माई कमर के नीचे नामगी हो गई। इस प्रकार अपने नौकर के आगे नामगे होने पर मेरे शरम का सहारा ना था। मेरी तो सांस ही अटक गई. माई घबराहट मेम वही ज़मीन पर बैठ गई.. तब वह मुझे एक बार फिर भगवान में उठा कर पलमग पर डाल दिया। और अगले पल जो हमने किया तो मैंने कल्पना तक नहीं कहा कि आज मेरे साथ ऐसा भी होगा। उसने मुझे पलमग पर पटाखा और खुद मेरे ऊपर चढ़ता चला गया। एक पल को मैं नीचे थी वो ऊपर..दूसरे पल मेरी तामगे उठी हुई थी..तीसरे पल वो मेरी तमगोम के बीच था..छोटे पल उसने अपनी धोती के एक और से अपना लंड बहार कर लिया था..पामचावे पल उसने हाथ मैंने पकड़ कर अपना लंड मेरी चूत से अदा दिया था..और…छठे पल…तो एक मोटी सी..गरम सी..कड़क सी.चीज मेरे अंदर थी। और…बस.फिर क्या था.कामरे मेम शाम के समय नौकरमालाकिन…औरत और मर्द बन गए थे। मेरी तो सांस खराब हो गई थी. शरीर ऐठ गया था. धड़कने रुक गई थी. आमखे पथरा गई थी. जीभ सुख गई थी. मैं अपने होश में नहीं था कि मेरे साथ क्या हो रहा है। जो कर रहा था वो वाह कर रहा था। मैं तो बस चुप पड़ी थी. ना मैंने कोई सहयोग दिया.ना मैंने कोई विरोध किया. बस…जो उसने किया वो करवा लिया। सात साल बाद..घर के नौकर से…पता नहीं क्या हुआ मैं तो कोई विरोध ही ना कर सकी। बस.उसने घुसेड़ा…और चोद दिया…मेरे मुँह से उफ भी ना निकली। माई पड़ी रही तमगोम को उठायेउरोवो धक्के पे धक्के मारता गया…पता नहीं कितनी देर..उसका मोटा सा लंड मेरी चूत को चोद रहा है। रागदता रहा माई बेहोश सी पड़ी करवाती रही.फिर…अंत आया..वो मेरे अंदर ढेर सा पानी छोड़ दिया…माई अपने नौकर के वीर्य से परेशान हो उठी..जब वह अलग हुआ तो माई कम्पटी हुई उठी और नामगी हाय बाथरुम चली गई. मेरे आदमी में यह बोध था कि मैंने क्या कर डाला..एक विधवा हो कर चुडवा ली..वो भी एक नौकर से.अपने नौकर से..हाय याह क्या हो गया.हां गलत है…हां नहीं होना चाहिए था . अब क्या होगा ???????.मैं बातारुम गई। वहाँ बैठा कर मूति. मुझे बड़ी जोर की शिकायत लगी थी। मेने झुक कर देखा..मेरी झटेम उसके वीर्य से चिपचिपा रही थी। मैने सब पानी से साफ किया। इताने मैं और पिशाब आ गई। और मूति. फिर तावेल लपेट कर बाहर निकली तो सामने हरिया खड़ा था.मुझ से तो नज़र भी ना मिलायी गई.और माई बगल से निकल के अपने कमरे में चली गई..(दूसरी बार) .उस शाम माई बाथरूम से निकल कर बिस्तर पर जा गिरी . लेते ही मुझे खुमारी की गहरी नींद आ गई। करीब सात साल बाद मैंने किसी मर्द का लंड लिया था। चुदाई अंजाने मेम हुई थी। बेमन से हुई थी, फिर भी चुदाई तो चुदाई थी। मैं तो ऐसी पड़ी कि मुन्ना ने ही कर जगाया.. रात खाने की मेज पर माई हरिया से अखे नहीं मिल पा रही थी। बड़ी मुश्किल से मैंने खाना खाया…बार-बार दिल मेम यहीं ख्याल आता की मेमने याह क्या कर डाला-अपने नौकर से छुड़ा ली..विधवा होकर..कैसा पाप कर डाला..रात माई खाने के बाद भी हरिया से कुछ ना बोले.बस चुपचाप मुन्ना के साथ जा कर अपने कमरे में सो गए। तो तो गई…पर मेरी अखोम मेम निंद ना थी.माई दो भागोम मेम बट गई थी-दिल और दिमाग। दिल आज की घाटे को अच्छा कह रहा था.और दिमाग बुरा. मेरा दिल कहता था मैं विधवा का जीवन जी रही थी.अगर भगवान ने मेरी सुनाकर एक ज़मीन का इंतज़ाम कर दिया तो क्या ख़राबी है.पर मेरा दिमाग़ इसे पाप मान रहा था..क्या करुम..क्या ना करुम…सोचते सोचते मैं मुन्ना के साथ लेती थी। मुन्नाबोधको मेरी मनोदशा का ज्ञान नहीं था। वाह आराम से इतना गया था..मैं जाग रही थी। की दरवाजावाजे की कुंडी बाजी. कौन हो सकता है.? घर मेम हरिया के अलावा कोई नहीं था. वही होगा. क्योम आया है अब? मैं चुप रही तो कुंडी फिर बजेगी। तब मैं उठ कर गई और दरवाजा खोला। वही था. यूज़ देख माई झेंप सी गई..क्योम आए हो याहा? बीबीजींदर ए जाउम?नहींतुम जाओयाहा से और मेने दरवाजा बंद कर लिया..मेरी सास तेज हो गई। मा री.याह तो अंदर ही आना चाह रहा था. क्या करता अंदर एक कर? ऑफ.क्या फिर से..चुदाई.?????? माँ..मुन्ना है यहाँ..दोबारा? ना बाबा ना..तो क्या हो गया इस मेम.सब तो कराते हैं..एक बार तो करवा ली अब या क्या है? अगर दोबारा भी करवा लेगी तो क्या बिगड़ जाएगा? भगवान ने एक मोका दिया है तो उसका मजा ले। बार-बार ऐसे मोके कहा मिलाते हैं। सात साल से तरस रही हम..माई पड़ी रही..सोचती रही। मोका मिला है तो रुकमा हमसे का फायदा उठा.जवानी यम ही तो निकल गई है.बाकी भी निकल जाएगी.अच्छा भला आया था बेचारा..भागा दिया। तो कोई दूसरी मिल जाएगी.उसकी तो औरत भी है.तेरा कौन है.तुझे कौन मिलेगा? पाप हे..पाप हे..मैं ही सारी जिंदगी निकल गई..थोड़ी देर हो गई तो मुझे पछतावा होने लगा कि बेकार एक मजा लेने का चास खो दिया। तब मैं उठी और जा कर कुंडी खोली.दरावाजे के बाहर निकल कर देखी..ओ मा..हरिया तो वही दीवार से बैठा था.और बीड़ी पी रहा था.मुझे आया देखकर वह बीड़ी फेंककर उठा खड़ा हुआ. मेरे पास आया.माई झिझकती सी हाथ मेम साड़ी का पल्लू लपेटती हुई बोली…गए नहीं अब तक..वाह मेरा हाथ पकड़ कर अपने हाथ में ले लिया.आपाना नरम नरम नाजुक सा हाथ उसके मर्दाना हाथ मेम जाते ही मुझपर नशा सा चा गया..मुझे विश्वास था कि आप जरूर आओगे। कह कर वह मुझे अपनी तरफ खींची तो मैं निर्विरोध उसकी तरफ खिंची चली गई। माई यूएस के सीन मेम अपना चेहरा छुपा बोल पड़े..हरिया मुझे डर लगता है…-डर कैसा बीबीजी। वाह मेरी पीठ पर बाहोम का बंधन मजबूत कर दिया..माई कसमसाई..एक मर्दाने बदन में बमधाना बड़ा ही सुखद लग रहा था..कोई देख लेगा ना..क्रमाशाह..

गतांक से आगे……. यहां घर के घर में कोन देखने आएगा बीवी.वह अपनी बाहों का बामधन सशक्त किया..मैं शरमाते हुए उसकी छोड़ी चाटी मेम मुंह छुपा ली..मुन्ना तो है ना..-अरे वो तो अभी छोटा है..वो क्या जानता है अभी..माई उसकी बाहोम के घरे मेम कसमसाई..और जो कुछ रह गया तो.माई विधवा क्या करुमगी?क्या? वाह कुछ समझ नहीं.याही.माई झिझाकी..कह ना पाई.रूकी.सास ली. काहे..अरारे राम.कही माई पेट से रह गई तो…हरिया के द्वार गर्भावती होने की बात से ही मुझे झुरझुरी आ गई.जिसने उसे साफ महसुस किया..मेरे जवान जिस्म को जन्म में जकड़ा और पीठ पर हाथ फिरता हुआ बोला..बीबीजी अगर ऐसा हो जाए कि बच्चा ना होय तो। माई यूएस की गरमी महसूस कराती हुई बुदाबुदाई.क्या ऐसा हो सकता है?समझो कि ऐसा हो चुका है..माई नज़र उठाई..उसे देखी। वाह मुमचो मेम मुस्कुरा दिया..अभी पिचाली बार छह महीने पहले जब मैं गाव गया था ना तो मैंने अपरेशन करवा लिया था..माई यूएस की चाटी मेम नाक रगड़े..कैसा अपरेशन? याही..बच्चे बहुत खराब होने का। था कि.मुझे हमसी आ गई. मुझे हंसता पा उसने मुझे ऐसा जोर से भीचा कि मेरे उरोज उसके सीने से दब उठे..और फिर वह आतुरता से मेरे पिचवाड़े पर हाथ लगाया तो माई चिहुमक कर कह उठे..हरिया..यहाँ नहीं.. मेरा इशारा समझ हरिया मेरा हाथ पकड़ खीचता हुआ मुझे अपने कमरे में ले गया। और मैं उसके साथ बिना ना नुकुर किये चली गयी। हरिया का कमरा…मेरे ही घर का एक कमरा था। हमें मेम एक खटिया बोली थी. एक कोने में मोरी बनी थी. और दूसरे कोने में एक आलिया था जिसे भगवान बिराजे थे। कमरे में पहुमचकर तो मेरे पाव जैसे जाम से गए। मैं एक ही जगह खड़ी रह गई। टैब वाह वही मुझे अपनी बालिश्ता बुझाओ मेम बढ़ा लिया। मैं चुपचाप उस के सीने से लग गई। मैं खड़ी कुछ देर तो उसकी सलाहावत का आनंद लेती रही। मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। सात साल बाद किसी मर्द का स्पर्श मिला था। फिर मैं कुनामुना के बोलिए..हरिया दरवाजा लगा दो..-अरे बीबीजी यहां कौन आएगा…-उहम.तुम तो लगा दो..वाह जा कर दरवाजा लगा आया। आके मेरे को पकड़ा। बस पीछे हाथ चलता रहा. माई थोडी देर बाद फिर कुनामुनाए..लाइत बामद करो ना। तब वह बेमन से लाईट बंद किया। कमरे में अंधेरा हो गया. अँधेरे बंद कमरे में मैं अभी थोड़ी सी चेन की सास भी ना ली थी कि वह मुझे पकड़ कर खटिया पर पटक दिया.और खुद मेरे साथ आ गया..मेरा दिल ज़ोर से धड़क रहा था। अब फिर से चुदने की घड़ी आ गई। वाह मेरे साथ गुत्थम गुथा हो गया।

हमारे हाथ मेरी पीठ और कुल्होम पर घुमने लगे। माई यूएस से और वो मुझसे चिपकाने लगा। मेरे स्टैन बार बार हमें के सीने से दबाए। हमारी भी सास तेज थी और मेरी भी। मुझे शर्म भी बहुत आ रही थी. मेरा उसके साथ यह दूसरा मोका था। अथ माई ज्यदा एक्टिव पार्ट न ली। बस चुपचाप पड़ी रही जो उसने किया और क्या किया? अरे भईवाही किया जो आप मर्द लोग हम औरतें के साथ करते हैं। पहले सदी उतारे फिर पेटीकोट का नाडा धुमधा..खीचा..दोनो चीज टैगो से बाहर…माई तो कहती ही रह गई..अरे क्या कराटे हो..-अरे क्या कराटे हो..वो तो सब खीच खच के निकल दिया . फिर बारी आई ब्लौज की.वो खुला..माई तो अस का हाथ पकड़ ली..नहीं…याह नहीं..पर वाह क्या सुने?.उल्टे पकाडा पकड़ी मेम उसका हाथ काई बार मेरे मम्मों से टकराया। अभी तक वाह मेरे मम्मों को नहीं पकड़ा था। ब्लाउज़ उतारने के चक्कर में उसका हाथ बार-बार मेरे मम्मों से छुआ तो बड़ा ही अच्छा लगा। और फिर जब उसने मेरी बड़ी खोली तो मेरी दशा बहुत खराब थी। सास बहुत जोर से चल रही थी। गाल गुलाबी हो रहे थे. दिल धड़ धड़ कराके बज रहा था। शरीर का सारा रक्त बह कर नीचे गुप्ताग की तरफ ही बह रहा था। उसने मेरे सारे कपडे खोल डाले। माई रात के अँधेरे में नौकर की खटिया पर नामगी पड़ी थी..और फिर अँधेरे में मुझे सरसराहट से लगा कि वह भी कपड़े उतार रहा है। फिर दो मर्दाने हाथो ने मेरी तागे उठा दी.घूटानो से मोड़ दी. चोदा दे. कुछ गरम सा-कड़क समरदाना अमग मेरे गुप्ताग से एक टीका। और जोर लगा कर अपना रास्ता मेरे अंदर बनाने लगा। दर्द की एक तीखी लहर सी मेरे अंदर दौड़ गई। माई अपने होथोम को जोर से भींच कर अपनी गाल को बाहर न निकलने दें। शरीर ऐठ गया..माई बिस्तर की चादर को मुठ्ठी मेम जकड़ ली। वाह घुसता गया और मैं अपने अंदर समाति हो गया। शीघरा ही वाह मेरे अंदर पूरा लंड घुसा कर धक्के लगाने लगा। मर्द था. ताक़तवर था. पहाड़ी था. गाव का था..और सबसे बड़ी बात.पिछले चाह माहीं से अपनी बीबी से नहीं मिला था। शहर की पढ़ाई लिखी खुबसूरत मालकिन मिल गई तो मस्त हो उठा। जो इकसाथ बसाथा करी तो मेरे लिए तो संभलना काथिन हो गया। बहुत जोर जोर से पेला कम्बख्त ने..मेरे पासा और कोई चारा भी ना था। पड़ी रही पेलवाती रही. हरिया का लंड दसरी बार मेरी चूत में समा गया। बहुत मोटा सा.कड़ा कड़ा..गरम गरम..रोज मैं कल्पना करती थी कि मेरा मर्द मुझे ऐसे चोदेगा वैसे चोदेगा। आज मैं सच्चा चुडवा रही हूँ। वास्तव में..सच्ची की चुदाई..मर्द के लंड की चुदाई..ना तो वाह मेरे मम्मों को हाथ लगाया। ना हमारे बीच कोई चूमा चाटी हुई।

बस एक मोटे लंड लंड ने एक विधवा चूत को चोद डाला..और फिर जब खुशी के पल ख़त्म हुए तो वाह अलग हुआ। अपना धीरे सा वीर्य वाह मेरे अमदार चोदा था। पता नहीं क्या होगा मेरा।सोचती माई उठ बैठी।और नामगी ही दौड़ कर कमरे से बाहर निकल गई। बातारूम तो माई जा कर मेने अपने कामरे में की। बहुत सा वीर्य मेरे जगो और झटोम पर लग गया था। सब मेने पानी से धो कर साफ किया… (अगले दिन)। सुबह जब मैं उठी तो बदन बुरी तरह टूट रहा था। बीते कल मेने अपने नौकर हरिया के साथ सुहागरात जो मनायी थी। माई रोज की तरह स्कूल गई। खाना खाया..शाम को पड़ोस की मिसेज वर्मा आ गई तो उनके साथ बैठी। सारा रूटीन चलाबस जो नहीं चला वो यह था कि मैंने सारा दिन हरिया से नज़र नहीं मिलाई। रात को खाने के बाद जब रसोई में गई तो वाह वही था। मेरा हाथ पकड़ कर बोला.बीबी रात को आओगी ना..मेरे तो गाल शर्म से लाल हो उठे। हाथ चूड़ा कर चली आई. रात मुन्ना के सो जाने के बाद भी मेरी आमखोम में कोई कमी नहीं थी। बस हरिया के बारे में मैं ही सोचती रही। करीब एक घंटा बीत गया।उसने इंतजार किया होगा। मैं नहीं गई तो वही आया। दरवाजाजे की कुंडी क्या बाजी मेरा दिल बज उठा। मैंने धड़कते दिल को साडी से कस कर दरवाजा खोला.वही था..बीबीजी..माई अंदर आउम?.माई ना मी गराडन हिलायी तो वाह मेरा हाथ पकड़ कल की तरह खीचता हुआ अपने कमरे की ओर ले चला। माई विधवा अपने नौकर के लैंड का मजा लेने के लिए उसके पीछे-पीछे चल दी। उस रात हरिया के कमरे में मेरी दो बार चुदाई हुई। पूरी तरह सारे कपड़े खोल कर…मैं तो ना ही करती रह गई..वाह मेरी एक ना सुना। वो भी नगमाई भी नामगी. अँधेरा कर के. नौकर की खटिया पर. वही तमगे उठे कर्कल वाले आसान से..एक बार से तो जैसे उसका पेट ही नहीं भरा। एक बार निपटने के थोड़ी देर बाद ही खड़ा कराके दोबारा घुस गया। बहुत सारा वीर्य मेरी चूत में चोदा। पर ना मेरे मम्मों को हाथ लगाया ना कोई चुम्मा चाटी किया। बस एक पहाड़ी लंड शहर की प्यासी चूत को चोदता रहा। जब चुड़ ली तो कल की तरह ही उठा कर चुपचाप अपने कमरे में आ गई उस रात जब मैं सोई तो मैंने मंथन किया..सुख कहा है। ताकिया दबा के कल्पना चुदायी में या हरिया के पहाड़ी मोटे लंड से वास्तव में चुदायी में। विधवा हुई तो क्या मुझे लंड से चुदवाने का अधिकार नहीं है? जिंदगी भर यम ही ताड़पति राहु? नहीं..माई हरिया का हाथ पकड़ लेती हूं। नौकर वह तो क्या हुआ। क्या उसका आदमी नहीं है? क्या वाह मर्द नहीं है? उसे तो ऐसा सब कुछ है जो औरत को चाहिए पड़ता है। फिर? नौकर है तो क्या हुआ? मर्द तो है. स्वभाव कितना अच्छा है. पिछले दो साल से मेरे साथ है कभी शिकायत का मौका नहीं दिया। क्या हां तो और भी अच्छा है. घर के घर में.किसी को मालूम भी ना पड़ेगा. समाज ने शादी की संस्था क्यों बनाई है? ताकीलैंड चुत का मिलन घर के घर में होता रहे। जब लंड का आदमी हो वो चूत को चोद ले और जब चूत का आदमी आये वो लंड से चोदा ले। हर वक्त दोनों एक दूसरे के लिए अवलेबल रहेम। अब मान लो मैं कोई मर्द बाहर का करती हूं तो क्या होगा वो आएगी तो पूरे मोहल्ले को खबर लग जाएगी कि सीमा के घर कोई आया है। रात भर तो वो परेशान नहीं रह पाएगा। हमें खुद की भी फ़ेमिली होगी। हमेशा एक डर सा बना रहेगा। इस से तो ये कितना अच्छा है. घर के घर में पूरा मर्द चाहो तो रात भर मजा लो..किसी को क्या पता चलता है कि तुम अपने घर में क्या कर रहे हो। फिर इस की फेमली भी गमव में है। हां तो गमव वेसे भी साल चाह महीने में जाता है। उन लोगों को भी क्या फ़र्क पड़ता है कि हरिया यहां किसके साथ मजे लूट रहा है..तो मैं क्या करुं?. ठीक है- हो गया जो हो गया..भगवान की मर्जी समझ काबुल कराती हूं..लेकिन हरिया भी क्या इसे काबुल करेगा?.उसे क्या चाहिए?.मुझे मालूम है मर्द को क्या चाहिए होता है जो उसे चाहिए वो मैं उसे दुमूंगी तो वाह क्यों मन करेगा भला?.वाह भी तो बिना औरत के यहाँ रहता है.उसका भी तो मन करता होगा। आदमी तो करता ही है तभी तो कल भी चोदा और आज फिर आ गया..यदि मेरे जैसी सुंदर औरत इस से राजी-राजी से चुदाएगी तो क्यों नहीं छोड़ेगा भला?.देखते हैं आगे क्या होता है मेरे भाग्य में मर्द का सुख है या नहीं ..
अगला दिन मेरी जिंदगी का खुबासुरात दिन था। माई फेसला ले चुकी थी। माई हरिया से संबंध कायम रखुगी। जवानी के मजे लुमगी. सुबह से मैंने अपने रोज के काम में मन लगाया..नहाते में मैंने अपनी चूत को साबुन लगा कर खूब साफ किया। बाद में अपनी झमटदार चूत को खूब पसंद किया। चूत पर हाथ लगाते हुए मुझे हरिया का ही ध्यान आया। अब तक ये चूत हरिया के लंड से दो दिन में चार बार चुद चुकी थी। अब याह चूत हरिया की चूत है..दोपहर मैं स्कूल गई। शाम को घर का दूसरा काम किया। खाने के बादमाई मुन्ना को लेकर अपने कामरे में आ गई। मुझे इंतज़ार था कि मुन्ना सो जाए तो कुछ हो। मुन्ना सो गया तो सोचा माई खुद हरिया के पास चली जाउम। फिर मन में आयादेखु तो सही आज हरिया की क्या रिक्शन रहती है।वाह इंट्रेस्टेड होगा तो अपने आप आएंगे। मेरे काम सुख का आगे का भविष्य उसे आने देगा, न आने पर ही निर्भर रहेगा। मैं इंतजार कर रही हूं… मेरा इंतजार व्यर्थ नहीं गया। भगवान मुझ पर प्रसन्न थे। थोड़ी देर बाद कुमदी खड़की..मेरा मन नाच उठा। मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था। मैं तो उठ कर सीधी देवी मां के सिंहासन के पास चली गई और उनको हाथ जोड़ कर नमस्कार किया कि वह मेरा सब काम अच्छे से करना चाहती है। मुझे किसी चीज की कमी नहीं है। घर है, नौकरी है, बच्चा है…बस मर्द नहीं, मर्द का लंड नहीं है.तो अब आपने संयोग बनाया है..इसे ठीक से निभाना देना। इतानी देर में तो कुंडी दोबारा खड़क गई। मने जा कर दरवाजा खोला.हरिया सामने था. सामने पा कर मैं ना जाने क्यों शर्मा उठी..तो गई थी बीबी जी..उसने बड़े प्यार से पूछा..मुझसे तो मुंह से बोल ही नहीं फूटा। बस ना मैं गार्डन हिला दी. तब…हरिया..मेरा नौकर..मुझे हाथ पकड़ कल की तरह ही अपने कमरे में ले गया।

उसके साथ जाते जाते मेरा दिल कल से भी ज्यादा जोर जोर से धड़क रहा था। इस घड़ी का तो मैं शाम से इंतज़ार कर रही थी। वाहाम.उसके कमरे में..जब वह मुझे पकड़ खींचने लगा तो माई चितक कर बोल उठी.दरवाजा..वाह चुपचाप जा कर दरवाजा लगा आया..तो मैं सादी का पल्लू उमगली पर लपेटे हुए कही.हर.र.रिया. .ला..आई..टी. वाह चुपचाप जा कर लाएत बुझा कमरे में अंधकार कर दिया।और पास एक कर मुझे पकड़ा तो माई खुद उसे सीने से लग गई। वाह वही खड़े खड़े मुझे सहलाने लगा..वाह मेरी पीठ पर हाथ फेरा..पीठ से कमर पर आया.और फिर नीचे तक पहुंच गया। आपसे सच कहता हूं उसके द्वारा अपने घर वापस बुलाए जाने से मेरी सांस ढोकनी की तरह चलने लगी थी। वाह खड़े बहुत देर तक मेरे पिचवाड़े पर अपना हाथ फेरता रहा। उसके इस तरह हाथ फेरने से ही मैं तो गीली हो उठी। और बुरी तरह हमें सीने में घुसाने लगी..मेरा गला सुख गया था.खड़े रहना मुश्किल हो रहा था। ऐसा लग रहा था कि मैं बेहोश हो कर ही गिर जाऊंगी। उसकी हालत में वह मेरे कपड़े उतारने लगा तो मेरी हालत और ख़राब होगी। हमें ने खड़े-खड़े ही अँधेरे बंद कमरे में मेरे सारे कपड़े खोल डाले..सादी.1.पेटीकोट…2.ब्लाउज..3.और अंत में ब्रा.4.आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि वैसे स्कूल जाते समय तो माई पेंटी पहनती हू पर घर में रहती हू तो उतार देती हू। और रात में भी मैं तो सादी ब्लौज में ही सोती हूं.मेक्सि नहीं पहनती हूं..तो.मैं एक दम नमगी हो कर बहुत शरमायी.वो तो अच्छा था की अंधेरा था. फिर पल भर वो अलग हुआ और अपने कपड़े खोल दिया। अब जो मुझे खड़े खड़े अपनी बाहों में ले लिया तो वो पल मेरे लिए बहुत अनामद दयाक था। बहुत अनोखा. एक दम अलग..नमगा वोनामगी माई.दोनो एक दूसरे से खड़े खड़े चिपक गए। वही मुझे बाहोम में भीचामाई तो बस चुपचाप उसके सीने से लग गई। मेरे तो शर्म के मारे हाथ ही ना उठे कि अपनी बाहोम में भर लूम। बहुत अच्छा लग रहा था. वाह इसी हालत में जब मेरे पिचवाड़े पर हाथ फिराया तो बस मुझे लगा, खड़े खड़े ही मूत दूंगी। चुत में अजीब तरह की सुरसुरी हो रही थी। तभी वह मुझे अँधेरे में खटिया पर लिटा दिया..और मेरे ऊपर चढ़ कर मेरी तमगोम को उठा दिया। अगले ही पल उसका मोटा लंड मेरी चूत से एक कर अदा..और दबाव के साथ अंदर होने लगा। मुझे जामघो के बीच तेज दर्द हुआ। मेरी चूत मोटे लंड के द्वार चोदी की जा रही थी। माई बिस्तर में पड़े पड़े तड़प उठी। पूरी प्रवेश क्रिया के दौरान एक बार कराह के कहा.हा..री..याआआआह…धीरे..पर हां नहीं कहा कि हरिया मत करो। आज मेरी मंहस्थिति दूसरी थी। आज तो मैं खुद चुदवाना चाहती थी। मैंने खुद अपनी पत्नी को पहले कर उसका लंड अंदर करवाया। वाह अंदर घुसा चूका तो बोला..बस बीबी जी…हो गया..लेकिन घुसा कर रुका नहीं।बस धक्के लगाने शुरू कर दिये। अब लंड अंदर जायेबाहर निकले.माई पड़ी पड़ी थुसाकति जाउम. उमहुक..उमहुक..उमहुक.अंदर- बाहर.अंदरबाहर.उमहुक..उमहुक..उमहुक.हरिया ने थोड़ी ही देर में वो मजा ला दिया जो मेरे नसीब में था ही नहीं.जिसके लिए मैं हमेशा तरसती रहती थी। वो मजा मुझे तकिया लगा कर कभी नहीं आता
था. उमहुक..उहमक.उमहुक. खटिया को हिलाता हुआ माई साफ साफ महसुस कर रही थी। उमहुक..उहमक.उमहुक. जब उसका मोटा सा लंड अंदर जाता था तो मेरे मुँह से अपने आप को निकालने की आवाज निकलती थी। इस तरह कमरे में रात के अँधेरे में दो आवाजें बड़ी देर तक गुमजती रही। खटिया की चार चार और मेरी उमहुक उम। और.फिर…अच्छे काम का मतलब तो होता ही है। मेरी चुदाई का भी फायदा हुआ. वाह झड़ा..एक दम..अचानक से.फोरसाफुल..वीर्य का फव्वारा मेरी चूत में चूत पड़ा। उस समय के लगाने वाले झटके बड़े ही अद्भुत थे। पहले मेरा ध्यान ही नहीं गया था। लंड जो कि लोहे की तरह सख्त था-मेरे अंदर ऐसी जोर जोर से तुनका की बस पूछो मत। उसका फूलनझटका लेना और फिरवीर्य चोदना महसूस कर माई ख़ुशी से पागल हो उठी। और उसी पगलापन में जानते हैं क्या हुआ?.मेरा खुद का खुलासा हो गया। गौरतालबा है कि पिचाली छुड़ायीयोम में मेरा अपना डिस्चार्ज नहीं हुआ था।याह मेरी आज की मानसिक अवस्था का परिणम था कि मेरा आज डिस्चार्ज हुआ। एक बांध बदन धूजा..कम्पकपि आई..और.मेरी चूत पानी चोद बैठी। माई तो बेहाल…उसी हालत में मुझे ना जाने क्या सूझा कि माई हरिया को पकड़ कर अपने ऊपर गिरा ली।उसके गले में बहे डाल दी।बुरी तरह लिपट गई। बेखुदी में मेरे होठ कह उठे..हा..री..या.मेरे..रा..जा. वाह झड़ चुका था. उसकी हालत में अपना लंड मेरे अंदर डाले बालों से बोल पड़ा.राजा ?? आपने मुझे राजा कहा बिजी…माई हमसे और जोर से लिपट गई और जोर जोर से सामने लेते हुए बोली..अब तो तुम ही मेरे सब कुछ हो हरियाआआआआ..इस भावना के आते ही मेरा और स्खलन हो उठा। chut me se paani chuta to mai apane upar sawar naukar se aur kas kar lipat Gai। बस यही जवानी का सुख था। वाह भी मुझे अँधेरे में जोर से पकड़ लिया। दोनो के मन में बस यही भावना थी कि हमें कोई एक दूसरे से जुदा ना करे। जल्दी तो कोई थी नहीं. डोनो घर घर के घर में। डोनो इसी अवस्था में बहुत देर तक पड़े रहे। लंड राम मेरी चूत में हाय डाले रहेताब तकजाब तक किढीले हो कर खुद ही बाहर ना निकल आये। तब जब बहुत देर हो गई और उसे मुझ पर से उतरने के लिए कोई आस न दिखे तब मैं नीचे से कुनमुनाई.उठने का इशारा दी। तब जा के वह मुझ पर से उठे। मैं भी उठ बैठी.

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