Thursday, November 21, 2024
Hindi Midnight Stories

मस्त राधा रानी

हाय दोस्तो !

जब कोई मुझे मस्त राधा रानी कहता है तो मुझे बहुत अच्छा लगता है। वैसे अगर देखा जाए तो मैं हूँ भी बहुत मस्त! दिन दुनिया से बेखबर मैं हमेशा हिरणी की तरह इधर उधर फुदकती रहती हूँ। अभी नई-नई जवानी जो चढ़ी है मुझ पर। मेरी उम्र अभी 18 साल है और मैं +2 स्टेंडर्ड में पढ़ती हूँ।

मेरे जीवन में अभी कुछ महीने पहले एक खूबसूरत हादसा हुआ। जो मैं अपने दोस्तों के साथ बांटना चाहती थी। पर इतने दिलचस्प हादसे को शब्दों में बयान करना मेरे बस का नहीं था तो मैंने सोचा कि क्यूँ ना किसी ऐसे दोस्त की मदद ले ली जाए जो इस किस्से को सही ढंग से आप लोगों के बीच में ले आये। मुझे हिंदी में लिखना नहीं आता इसलिए मेरी यह कहानी मेरे एक मित्र राज शर्मा ने संपादित और संशोधित की है :

दिसम्बर महीने की वो रात आज भी मुझे याद आती है तो मेरी फुदकन गिलहरी मस्ती में उछल पड़ती है।

मेरे मामा के लड़के की शादी थी और मैं गांव में गई हुई थी शादी के मज़े लेने के लिए। आप यह मत कहना कि मैं अपने मुँह मिया मिटठू बन रही हू पर यह शत प्रतिशत सच है कि शादी में आई सभी लड़कियों में मैं सबसे ज्यादा खूबसूरत और देखने में सेक्सी थी। मेरे उरोज हिमालय की पहाड़ियों का एहसास देते हैं, कूल्हे (गाण्ड) तो इतनी मस्त है कि जैसे दो मुलायम गद्दे जोड़ दिए हों। लोग मेरे चेहरे की तुलना दिव्या भारती नाम की एक पुरानी फिल्म हिरोइन से करते हैं।

शादी की मस्ती जारी थी, नाच गाना हँसी-मज़ाक चल रहा था। मैं तीन दिन पहले ही आ गई थी इसलिए सबसे घुलमिल गई थी। मामा का लड़का मोहित जिसकी शादी थी वो तो हर बात में मेरी सलाह ले रहा था। इसका एक कारण तो यह था कि मैं शहर से आई तो और कुछ हद तक मॉडर्न थी। मेरी पसंद भी बेहद अच्छी है।

पर शादी में एक शख्स ऐसा भी था जिसकी तरफ मेरा ध्यान नहीं था पर वो मुझे हर वक्त ताकता रहता था। अपनी आँखों से मेरी चढ़ती जवानी को निहार-निहार कर आपनी आँखों की प्यास बुझाता रहता था, या यूँ कहें कि प्यास बढ़ा रहा था।

आखिर शादी हो गई और अब बारी थी सुहागरात की। शादी में मेरी दोस्ती शादी में आई एक लड़की रेशमा से हो गई थी। मैंने रेशमा से पूछा- यह सुहागरात में क्या होता है?

तो उसने आपने आँखें नचाते हुए कहा,”मेरी जान राधा रानी ! सुहागरात मतलब सारी रात ढेर सारी मस्ती !”

“मस्ती?” मैंने उत्सुकतावश पूछा।

“हाँ मस्ती ! सुहागरात पर दूल्हा दुल्हन की सील तोड़ता है फिर दोनों के जिस्म एक दूसरे से मिल जाते हैं और फिर शुरू होती है मस्ती !”

रेशमा ने अपने शब्दों में मेरे सवाल का जवाब दिया। पर इस जवाब ने मेरे दिल में एक अजीब सी बेचैनी बढ़ा दी कि आखिर दूल्हा शील कैसे तोड़ता है ? मेरा दिल बेचैन हो गया। जैसे-जैसे रात नजदीक आ रही थी, मेरे दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी। फूल वाला आया और मोहित का कमरा फूलों से सजा कर चला गया। तभी मेरी आँखों में फिल्मो का सुहागरात वाला सीन घूम गया। मेरा दिल अब करने लगा कि देखना चाहिए आखिर यह सुहागरात होती कैसी है? कैसे इसे मनाते हैं?

मामा के घर के हर कोने से अब तक मैं वाकिफ हो चुकी थी। जो कमरा मोहित को दिया गया था उसकी एक खिड़की बाहर खुलती थी पर उस खिड़की से सुहागरात देखना खतरे से खाली नहीं था, कोई भी आ सकता था। मैं बेचैन सी कोई सुराख दूंढ रही थी जिसमें से सुहागरात देखी जा सके पर कोई रास्ता नहीं मिला।

रात को करीब दस बजे दुल्हन को मोहित के कमरे में छोड़ने मोहित की भाभियाँ गई तो दिल की बेचैनी और बढ़ गई क्योंकि अभी तक कोई सुराख नहीं मिला था। एक बार तो दिल किया कि जाकर मोहित के कमरे में छुप जाती हूँ पर यह भी मुमकिन नहीं था।

आखिर दुल्हन को कमरे में भेज कर भाभियाँ हँसती हुई वापिस आ गई। आते ही बड़ी भाभी बोली,”मोहित का बहुत मोटा है, आज तो दुल्हन की चूत का बाजा बज जायेगा।”

तो छोटी बोली,”तुमने कब देखा?”

बड़ी ने जवाब दिया,”अरी कितनी बार तो देख चुकी हूँ उसे पेशाब करते और एक बार तो वो करते भी देखा है !”

छोटी ने उत्सुकता से पूछा,”किसके साथ?”

बड़ी हंस पड़ी और बोली,”वो है ना अपने नौकर शम्भू की बेटी माया ! उसी को चोद रहा था एक दिन पिछले जानवरों वाले कमरे में !”

फिर तो उनके बीच लण्ड चूत की बातें शुरू हो गई जिसके कारण मेरी भी चूत पानी-पानी हो उठी।

सब बातों में लगे हुए थे। मैंने मौका देखा कर सुराख ढूँढने का एक और प्रयास करने का सोचा और बाहर आकर कर खिड़की की तरफ चल पड़ी। बाहर कोई नहीं था। मैं खिड़की के पास पहुँची और मैंने खिड़की को खोलने की हल्की सी कोशिश की तो मेरे भाग्य ने मेरा साथ दिया और खिड़की खुल गई। शायद मोहित उसे बंद करना भूल गया था।

अंदर का नज़ारा देखते ही मेरा दिमाग सन्न रह गया।

मोहित अपने कपड़े उतार रहा था और दुल्हन जिसका नाम नीलम था बिलकुल नंगी बेड पर अपनी आँखें बंद किये पड़ी थी। जब मोहित ने आपने सारे कपड़े उतार दिए और बेड की तरफ बढ़ा तो मेरी नज़र उसके हथियार यानि लण्ड देवता पर पड़ी। इतना बड़ा और मोटा लंड मैं अपनी जिन्दगी में पहले बार देख रही थी। मोहित का कम से कम 8 इंच लंबा तो जरुर होगा और मोटा भी बहुत था। वो काला नाग बिलकुल तन कर खड़ा था।

सुहागरात शुरू हो चुकी थी। मोहित अब नीलम के बराबर में लेटा हुआ था और नीलम के उरोजों को सहला रहा था। नीलम की चूचियाँ भी बड़ी-बड़ी थी और देखने में बहुत सुन्दर लग रही थी। नीलम का एक हाथ अब मोहित के मोटे लण्ड को सहला रहा था। चूमा-चाटी के बाद मोहित ने नीलम की टाँगें ऊपर की तो मुझे नीलम की चूत नज़र आई। नीलम की चूत पर एक भी बाल नहीं था। मेरा हाथ अपने आप मेरी चूत पर चला गया क्योंकि मेरी चूत पर तो बाल थे। मोहित ने नीलम की टाँगे अपने कंधों पर रखी और अपना मोटा लण्ड नीलम की चूत पर सटा दिया।

मैं यह सब देखने में मस्त थी कि तभी मुझे मेरे कंधो पर किसी का हाथ महसूस हुआ जो मेरे कंधे सहला रहा था।
सुहागरात शुरू हो चुकी थी। मोहित अब नीलम के बराबर में लेटा हुआ था और नीलम के उरोजों को सहला रहा था। नीलम की चूचियाँ भी बड़ी-बड़ी थी और देखने में बहुत सुन्दर लग रही थी। नीलम का एक हाथ अब मोहित के मोटे लण्ड को सहला रहा था। चूमा-चाटी के बाद मोहित ने नीलम की टाँगें ऊपर की तो मुझे नीलम की चूत नज़र आई। नीलम की चूत पर एक भी बाल नहीं था। मेरा हाथ अपने आप मेरी चूत पर चला गया क्योंकि मेरी चूत पर तो बाल थे। मोहित ने नीलम की टाँगे अपने कंधों पर रखी और अपना मोटा लण्ड नीलम की चूत पर सटा दिया।

मैं यह सब देखने में मस्त थी कि तभी मुझे मेरे कंधों पर किसी का हाथ महसूस हुआ जो मेरे कंधे सहला रहा था।

मैं चौंक गई। मैंने मुड़ कर देखा तो अँधेरे में वो पहचान में नहीं आया। पर वो था कोई बलिष्ट शरीर का मालिक। उसके हाथ के स्पर्श में मर्दानगी स्पष्ट नज़र आ रही थी। मैंने उसका हाथ हटा कर वहाँ से भागने की कोशिश की तो उसने मुझे कमर से पकड़ लिया और मेरी एक चूची को पकड़ कर मसल दिया। मैं दर्द के मारे कसमसाई पर डर के मारे मेरी आवाज नहीं निकल रही थी क्योंकि आवाज निकलने का मतलब था कि मेरी चोरी पकड़ी जाती। मैं पुरजोर उससे छूटने का प्रयास करती रही। पर जितना मैं छूटने का प्रयास करती उतना ही उसके हाथ मेरे शरीर के अंदरूनी अंगों की तरफ बढ़ते जा रहे थे।

अब तो उसके हाथ का स्पर्श मेरे शरीर में एक आग सी लगाता महसूस हो रहा था। ना जाने क्यों अब मुझे भी उसके हाथ का स्पर्श अच्छा लगने लगा था। मेरा प्रतिरोध पहले से बहुत कम हो गया था। अब उसके हाथ बहुत सहूलियत के साथ मेरे शरीर के अंगों को सहला रहे थे।

अचानक उसने मुझे अपनी ओर घुमाया और अपने होंठ मेरे कोमल गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होंठो पर रख दिए। उसकी बड़ी बड़ी मूछें थी। पर वो बहुत अछे तरीके से मेरे होंठों की चुसाई कर रहा था।

अब वो मुझे खींच कर खिड़की की तरफ ले गया और मेरा मुँह खिड़की की तरफ करके पीछे से मेरी चूचियाँ मसलने लगा साथ साथ उसका एक हाथ मेरी जाँघों को भी सहला रहा था। मेरी चूत पानी छोड़ने लगी थी। पहली बार मेरा दिल कुछ ऐसा कर रहा था कि मैं कोई चीज़ अपनी प्यारी चूत में घुसेड़ लूँ। मेरी आँखे बंद हो गई थी कि तभी कमरे में उठी सीत्कार ने मेरी आँखे खोली तो देखा कि मोहित का वो मोटा लण्ड अब नीलम की नाजुक और छोटी सी दिखने वाली चूत में जड़ तक घुसा हुआ था और अब मोहित उसे आराम आराम से अंदर-बाहर कर रहा था और नीलम तकिये को मजबूती से अपने हाथों में पकड़े और अपने होंठ दबाये उसके लण्ड का अपनी चूत में स्वागत कर रही थी।

धीरे धीरे मोहित के धक्के जोर पकड़ने लगे और नीलम और जोर जोर से सीत्कार करने लगी। बाहर उस आदमी का हाथ अब मेरी चूत तक पहुँच चुका था और उसकी एक अंगुली अब मेरी चूत के दाने को सहला रही थी जिस कारण मेरी चूत के अंदर एक ज्वार-भाटा सा उठने लगा था। उसने अपनी अंगुली मेरी चूत में अंदर करने की कोशिश भी की पर मेरी चूत अब तक बिलकुल कोरी थी क्योंकि अभी तक तो मैंने भी कभी अपनी चूत में अंगुली डालने की कोशिश तक नहीं की थी। उसकी अंगुली से मुझे दर्द सा हुआ तो मैंने उसका हाथ पकड़ लिया तो उसने भी अंगुली अंदर डालने का इरादा छोड़ दिया और वो ऐसे ही चूत के दाने को सहलाता रहा। अंदर की चुदाई देख कर और अंगुली की मस्ती ने अपना रंग दिखाया और मेरा बदन अब अकड़ने लगा। इससे पहले कि मैं कुछ समझती मेरी चूत में झनझनाहट सी हुई और फिर मेरी चूत से कुछ निकलता हुआ सा महसूस हुआ। मेरा हाथ नीचे गया तो मेरी चूत बिलकुल गीली थी और उसमें से अब भी पानी निकल रहा था।

मेरी चूत अपने जीवन का पहला परम-आनन्द महसूस कर चुकी थी। पर वो किसी लण्ड से नहीं बल्कि एक अजनबी की अंगुली से हुआ था। मेरा शरीर अब ढीला पड़ चुका था और मुझ से अब खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था।

तभी दरवाज़ा खुलने की आवाज आई और उसकी पकड़ थोड़ी ढीली हुई तो मैं एकदम उसकी पकड़ से आज़ाद हो कर जल्दी से अंदर की तरफ भागी। भागते हुए मेरी शॉल जो मैंने ठण्ड से बचने के लिये ओढ़ रखी थी, वो बाहर ही गिर गई। मैं जल्दी से जाकर अपनी रजाई में घुस गई। कमरे में सब सो चुके थे। तभी मुझे अपनी शॉल याद आई। पहले तो सोचा कि सुबह ले लूंगी पर फिर सोचा अगर मेरी शॉल किसी ने मोहित के कमरे की खिड़की के नीचे देख ली तो भांडा फूटने का डर था।

मैं उठी और बाहर जाने के लिये दरवाज़ा खोला तो देखा वो अब भी मोहित की खिड़की के पास खड़ा था। मैंने उस चेहरे को पहचानने की कोशिश की पर पहचान नहीं पा रही थी क्योंकि उसने कम्बल ओढ़ रखा था। वो अब मोहित की खिड़की के थोड़ा और नजदीक आया तो कमरे से आती नाईट बल्ब की रोशनी में मुझे उसका चेहरा दिखाई दिया। मैं सन्न रह गई। ये तो मेरे मामा यानि मोहित के पापा रोशन लाल थे। तो क्या वो मेरे मामा थे जो कुछ देर पहले मेरे जवान जिस्म के साथ खेल रहे थे। सोचते ही मेरे अंदर एक अजीब सा रोमांच भर गया।

मेरी शॉल लेने जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी पर वो लेनी भी जरुरी था। डर भी लग रहा था कि कहीं वो दुबारा ना मुझे पकड़ कर मसल दे। फिर सोचा अगर मसल भी देंगे तो क्या हुआ, मज़ा भी तो आयेगा।

मैं हिम्मत करके वहाँ गई और अपनी शाल उठा कर जैसे ही मुड़ी तो मामा ने मुझे हलके से पुकारा,”राधा !”

मेरी तो जैसे साँस ही रुक गई। मेरे कदम एकदम से रुक गए। मामा मेरे नजदीक आए और मेरे कंधे पकड़ कर मुझे अपनी तरफ घुमाया। मेरी कंपकंपी छूट गई। एक तो सर्दी और फिर डर दोनों मिल कर मुझे कंपकंपा रहे थे। मामा ने मेरे चेहरे को अपने बड़े बड़े हाथों में लिया और एक बार फिर मेरे होंठ चूम लिए।

फिर बोले,”राधा ! तू बहुत खूबसूरत हैं, तूने तो अपने मामा का दिल लूट लिया है मेरी रानी !”

“मुझे छोड़ दो मामा ! कोई आ जाएगा तो बहुत बदनामी होगी आपकी भी और मेरी भी !”

मामा ने मुझे एक बार और चूमा और फिर छोड़ दिया। मैं बिना कुछ बोले अपनी शॉल ले कर कमरे में भाग आई। उस सारी रात मैं सो नहीं पाई। मामा की अंगुली का एहसास मुझे बार बार अपनी चूत पर महसूस हो रहा तो और रोमांच भर में चूत पानी छोड़ देती थी। बार बार मन में आ रहा था कि अगर मामा भी वैसे ही अपना लण्ड मेरी चूत में घुसाते जैसे मोहित ने नीलम की चूत में घुसाया हुआ था तो कैसा महसूस होता।

सुबह सुबह की खुमारी में जब मैं अपने बिस्तर से उठ कर बाहर आई तो सामने मामा जी कुछ लोगों के साथ बैठे थे। मुझे देखते ही उनके चेहरे पर एक मुस्कान सी तैर गई।

तभी मेरी मम्मी भी आ गई और वो भी मामा के पास बैठ गई। माँ और मामा आपस में बात करने लगे और मम्मी ने मामा से जाने की इजाजत माँगी तो मामा ने मम्मी को कहा,”राधा को तो कुछ और दिन रहने दो।”

मम्मी ने मेरी ओर देखा शायद पूछना चाहती थी कि क्या मैं रुकना चाहती हूँ। अगर दिल की बात कहूँ तो मेरा वापिस जाने का मन नहीं था पर मुझे स्कूल भी तो जाना था। बस इसी लिए मैंने मम्मी को बोला,”नहीं मम्मी मुझे स्कूल भी तो जाना हैं, आगे जब छुट्टियाँ होंगी तो रहने आ जाउंगी।”

मामा ने एक भरपूर नज़र मुझे देखा। तभी मम्मी को किसी ने आवाज़ दी और मम्मी उठ कर चली गई। अब मामा के पास सिर्फ मैं रह गई। मैं भी उठकर जाने लगी तो मामा बोले,”राधा रानी, नाराज़ तो नहीं हो अपने मामा से ?”

मेरे से जवाब देते नहीं बन रहा था। पर मेरी गर्दन अपने आप ही ना में हिल गई और जुबान ने भी गर्दन का साथ दिया,”नहीं… नहीं तो मामा जी !” मैंने ‘मामा जी’ शब्द पर थोड़ा ज्यादा जोर दिया था।

“तो रुक जाओ ना !” मामा ने थोड़ा मिन्नत सी करते हुए कहा।

“नहीं मामा, मुझे स्कूल भी जाना होता है और रुकने से पढाई का बहुत हर्ज होगा। मैं बाद में छुट्टियों में आ जाउंगी।”

“चल जैसी तेरी मर्ज़ी, पर अगर रूकती तो मुझे बहुत अच्छा लगता !”

अब हम दोनों रात की बात को लेकर बिलकुल निश्चिन्त थे। ना तो मामा ने और ना ही मैंने रात की बात का जिक्र किया था। पर हम दोनों की ही आँखें रात की मस्ती की खुमारी बाकी थी जो दिल की धड़कन बढ़ा रही थी।

खैर मम्मी और मैं शाम की गाड़ी से वापिस आ गए।

घर पहुँच कर मेरा बिल्कुल भी दिल नहीं लग रहा था। पर फिर जब स्कूल आना जाना शुरू हो गया तो सहेलियों के साथ पढ़ने घूमने और गप्पें मारने में मैं वो बात दिन में तो भूल जाती थी पर रात को अपने बिस्तर पर लेटते ही मुझे मामा की याद फिर से सताने लगती।

कुछ दिन के बाद मामा का फोन आया। संयोग ही था कि उस समय मैं घर पर अकेली ही थी। मम्मी पड़ोस में गई हुई थी और पापा ऑफिस। मामा की आवाज़ सुनते ही मेरी चूत गीली हो गई। मामा पहले तो ठीक बात करते रहे पर जब उन्हें पता चला कि मैं घर पर अकेली हूँ तो मामा ने बात करने का टॉपिक बदल दिया।

“कैसी हो राधा रानी?” राधा बेटी से मामा सीधे राधा रानी पर आ गए।

“ठीक हूँ मामा जी।”

“मामा की याद आती है राधा रानी?”

“आती तो है ! क्यूँ ???”

“मुझे तो बहुत याद आती है तुम्हारी…. मेरी जान !”

“मामा, अपनी भांजी को ‘जान’ कह रहे हो ! इरादे तो नेक हैं ना तुम्हारे ?”

मामा थोड़ा झेंप गया।

“अरी नहीं…. बस उस रात को याद कर कर के दिल में दर्द सा होने लगता है राधा रानी !”

मामा तुम भी ना !”

“क्या तुम भी ना?”

“मैं नहीं बोलती आप से। आप बहुत बेशर्म हैं।”

“अच्छा ऐसा मैंने क्या किया ?”

मैंने बात का टॉपिक फिर से बदलते हुए पूछा,”शहर कब आओगे मामा ?”

“जब मेरी राधा रानी बुलाएगी तो चले आयेंगे।”

“तो आ जाओ, तुम्हें पूरा शहर घुमा कर लाऊंगी।”

“चल ठीक है, मैं एक दो दिन में आने का कार्यक्रम बनाता हूँ, पर तू अपना वादा मत भूलना, पूरा शहर घुमाना पड़ेगा।”

“ठीक है ….ये लो मम्मी आ गई मम्मी से बात करो।”

मम्मी आ गई थी तो मैंने फोन मम्मी को दिया और बाथरूम में चली गई।

बाथरूम में जाने का एक कारण तो ये था कि मामा से बात करते करते मेरी पेंटी पूरी गीली हो गई थी और चूत भी चुनमुनाने लगी थी। मैं बाथरूम में गई और चूत को सहलाने लगी और तब तक सहलाती रही जब तक उसने पानी नहीं छोड़ दिया।

अब तो मुझे मामा के आने का इंतज़ार सा हो गया।
अब तो मुझे मामा के आने का इंतज़ार सा हो गया।

मामा चार दिन के बाद आये। आने से पहले उन्होंने पापा को फोन कर दिया था पर मुझे इस बात का पता नहीं था। मेरे लिए तो यह एक सरप्राइज से कम नहीं था। जैसे ही मैं स्कूल से वापिस आई तो घर में घुसते ही सामने मामा बैठे थे। मैं अवाक सी उन्हें देखती रही। तभी मामा ने आगे आकर मुझे गले से लगा लिया और इसी दौरान मेरे कूल्हे को भी स्कर्ट के ऊपर से ही दबा दिया।

“मामा पहले बताना तो चाहिए था ना !” मैंने ऊपरी मन से नाराज़ होने का नाटक सा किया।

“बस अपनी बेटी से मिलने का दिल किया और और दौड़ते हुए आ गए मिलने के लिए !” मामा ने मुझे आपनी बाहों में अच्छे से जकड़ते हुए कहा।

मम्मी मामा का और मेरा प्यार देख कर हँस रही थी। उसे अंदर की खिचड़ी का पता थोड़े ही था। मैंने महसूस किया की मामा के स्पर्श मात्र से मेरी चूत गीली हो गई थी। मैं भाग कर बाथरूम में गई और चूत को सहला दिया।

कपड़े बदल कर मैं फिर से मामा के पास आकर बैठ गई। तभी मम्मी को बुलाने पड़ोस की एक औरत आई और मम्मी उससे बात करने के लिए बाहर चली गई। मैं भी उठकर जाने लगी तो मामा ने मेरी बाहँ पकड़ कर अपनी और खींचा तो मैं सीधे मामा की गोद में जाकर गिरी। मुझे अपनी गाण्ड के नीचे कुछ चुभता हुआ सा महसूस हुआ तो मेरा दिमाग एक दम से ठनका कि कहीं यह वही तो नहीं ?? मोटा सा, लंबा सा, मोहित के जैसा। सोचते ही मैं फिर से झनझना गई। वो मुझे बहुत कठोर महसूस हो रहा था। मामा ने मेरा मुँह पकड़ा और मेरे नाजुक होंठों पर अपने होंठ रख दिए और मस्त हो चूसने लगे।

“मामा तुम्हारी मूछें बहुत गुदगुदी करती हैं।”

मेरी बात सुन कर मामा हँस पड़े। मैं अपने को छुड़वाते हुए मामा से अलग हुई तो मामा के पायजामे में तम्बू बना हुआ था। उस तम्बू से उस के अंदर छुपे काले नाग का एहसास मुझे हो गया था। इसे महसूस करके मेरा मन थोड़ा डर भी गया था कि अगर मामा इसे मेरी चूत में घुसाने लगा तो मेरी तो फट ही जायेगी। जिस चूत में अंगुली भी नहीं जाती उसमे इतना मोटा लण्ड कैसे जाएगा भला ???

मैं इसी उधेड़बुन में थी कि मामा खड़े होकर मेरे पीछे आ गया और पीछे से मेरी चूचियों को पकड़ कर सहलाने लगे। मामा का लण्ड अब मुझे अपने कूल्हों पर महसूस होने लगा था।

तभी मम्मी आ गई और मामा मुझ से दूर होकर सोफे पर बैठ गए।

अभी दोपहर के तीन बजे थे, मौसम बहुत सुहाना हो रहा था, मामा बोले “राधा बेटा ! तुम तो कह रही थी कि जब मैं शहर आऊंगा तो तुम मुझे शहर घुमाओगी, अब क्या हुआ ??”

मैं मामा के शहर घूमने का मतलब अच्छे से समझ रही थी। मैंने भी हँसते हुए बोला,”आप पापा के साथ घूम आना।”

“पर बेटा वादा तो तुमने किया था !”

“ठीक है, माँ से पूछ लो अगर वो बोलेगी तो घुमा लाऊंगी।”

मम्मी जो वहीं बैठी थी बोली,”अरी बेटी, घुमा लाओ ! इसमें पूछने वाली क्या बात है? तुम्हारे मामा हैं !”

बस फिर देर किस बात की थी। मैं झट से तैयार हो गई। मैंने टॉप स्कर्ट और ठण्ड से बचने के लिए जैकेट पहन लिया। मैंने मामा को अपनी एक्टिवा पर बैठाया और निकल पड़े घूमने।

शहर में इधर-उधर घूमते-घूमते मैं मामा को मॉल दिखाने ले गई। वहाँ मूवी भी लगी हुई थी। मामा का मन पसंद एक्टर अभिषेक बच्चन है और वहाँ उसकी फिल्म ‘रावण” लगी हुई थी। मैं मूवी देख चुकी थी और मुझे पता था कि बिल्कुल डिब्बा फिल्म है पर मामा बोले कि उन्हें वही फिल्म देखनी है।

सो हम टिकेट लेकर अंदर चले गए। हॉल में एक दो लोग ही बैठे थे बाकि सारा हॉल बिल्कुल खाली था। हम दोनों कोने की एक सीट पर बैठ गए। मुझे मालूम था कि अब क्या होने वाला है।

मैंने मम्मी को फ़ोन करके बोल दिया कि मैं मामा के साथ सहारा मॉल में मूवी देख रही हूँ। मम्मी को बताने के बाद मैं निश्चिन्त हो गई। फिल्म शुरू होते ही मामा का हाथ मेरे बदन पर घुमने लगा। आज मैंने ब्रा जानबूझ कर नहीं पहनी थी। जब मामा का हाथ मेरे टॉप पर गया तो मेरी चूचियाँ एकदम से तन गई, चुचूक कड़े हो गए, आँखें बंद हो गई।

तभी मामा ने मेरा हाथ पकड़ा और अपनी तरफ खींचा। मुझे कुछ अंदाजा नहीं था कि एकदम से मुझे कुछ गर्म-गर्म सा महसूस हुआ। आँख खोल कर देखा तो वो मामा का मूसल था- आठ इंच लंबा और करीब तीन इंच मोटा लण्ड लोहे की तरह सख्त, सर तान कर खड़ा हुआ। उसे देखते ही मेरी चूत चुनमुना गई। मैंने मामा का लण्ड हाथ में पकड़ लिया और धीरे धीरे सहलाने लगी। मामा का हाथ भी मेरी पेंटी के अंदर घुस कर मेरी चूत का दाना सहला रहा था। मुझे इस बात का एहसास था कि मैं कहाँ हूँ तभी मैंने अपनी आहें अंदर ही दबा ली अगर कहीं और होती तो सीत्कार निकल ही जाती । आसपास कोई नहीं था।

मामा बोले “राधा कभी चुदवाया है किसी से?”

चुदवाया शब्द सुनते ही दिल धक-धक करने लगा, मुँह से आवाज नहीं निकल रही थी, बस मैंने ना में गर्दन हिला दी।

यानि अभी तक कोरी हो?”

“हाँ !”

“लण्ड का मज़ा लोगी ?”

अब मैं क्या कहती कि नहीं लूँगी। अगर लण्ड का मज़ा नहीं लेना होता तो क्या मैं ऐसे उसका लण्ड सहला रही होती और उसे अपनी चूत सहलाने दे रही होती। ये गांव के लोग भी ना बहुत भोले होते है पर इनका लण्ड सच में कमाल होता है।

“यहाँ पर नहीं, घर पर चलते हैं ना !”

“पर घर पर तो सभी होंगे ?”

“आप चिंता ना करें, रात को जब सब सो जायेंगे तो मैं आपके कमरे में आ जाउंगी !”

“सच?”

“हुं ”

“चलो ठीक है !” कहते हुए मामा ने मुझे एक बार फिर चूम लिया ।

तय कार्यक्रम के मुताबिक़ मैं रात को 11 बजे उनके कमरे में पहुँच गई।

कमरे में पहुँचते ही मामा ने दरवाज़ा बंद किया और मुझे गोद में उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया। मामा ने अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए। मैं बेड पर लेटी हुई मामा को देख रही थी। जब मामा ने अपना कुरता उतारा तो मामा की बालों से भरी मर्दाना छाती देख कर ही मस्त हो उठी। मेरे दिल में अब गुदगुदी होने लगी थी यह सोच कर कि कुछ देर के बाद मेरी चूत भी लण्ड का मज़ा लेने वाली है।

मामा ने अपने सारे कपड़े उतार दिए, अब सिर्फ एक कच्छा ही मामा के शरीर पर रह गया था। मामा मेरे पास आये और एक एक करके मेरे कपड़े उतारने लगे। और मात्र एक मिनट में ही मैं मामा के सामने सिर्फ पेंटी में पड़ी थी। और मामा मेरे चुचूक पकड़ कर मसल रहे थे और अपने होंठों में दबा-दबा कर चूस रहे थे। मामा की इस हरकत से मेरे बदन में आग सी लगती जा रही थी। मामा ने अब मेरी पेंटी भी उतार दी और मेरी रेशमी बालों से भरी चूत पर हाथ फेरने लगे और फिर अचानक अपने होंठ मेरी चूत पर रख दिए। मैं एक दम से चिंहुक उठी। होंठों की गर्मी और चूत की गर्मी का मिलन इतना अच्छा था कि उसका वर्णन शब्दों में बताना मेरे बस में नहीं है।

“आह्हह्ह” मेरी सीत्कारें अब खुल कर निकल रही थी और मैं मस्ती में मामा का सर अपनी चूत पर अपनी जाँघों के बीच दबा रही थी, मन कर रहा था कि मामा अपना पूरा सर मेरी चूत में घुसेड़ दें।

“खा जा बहन के लौड़े मेरी चूत को….. अह्ह्ह मामा…….” ना जाने कैसे मेरे मुँह से अपने आप गाली निकल गई।

मामा तो मेरी कुंवारी चूत को चाटने में मस्त था। वो अपनी खुरदरी जीभ मेरी चूत में अंदर तक घुसाने की कोशिश कर रहा था। जीभ का खुरदरा एहसास हाय कैसे बयान करूँ, मैं तो जन्नत में थी उस समय।

कुछ देर बाद मामा ने दशा बदली और अब उसका मोटा मूसल अब मेरे मुँह के सामने था। मैंने देखा तो नहीं था पर सुना था कि कुछ लडकियां और औरतें लंड को मुँह में लेकर चूसती भी हैं। बस मैंने भी अपना मुँह खोला और मामा का वो काला भुजंग मैंने अपने नाजुक होंठों में दबा लिया। मामा का लण्ड मेरे मुँह के लिए भी मोटा था पता नहीं चूत में कैसे जाएगा। अभी मैं यह सोच ही रही थी कि मामा अब सीधे हुए और मेरी टाँगें पकड़ कर मेरी जांघे चौड़ी की। मामा ने अपना मस्त कलंदर मेरी मुनिया से भिड़ा दिया। एक बार तो ऐसा लगा जैसे कोई गर्म लोहे की राड भिड़ा दी हो। मेरी अब सीत्कारें निकल रही थी और मामा मेरी कुंवारी चूत में अपना लण्ड घुसाने के लिए मरा जा रहे थे और मैं भी आने वाले दर्द से अनजान मामा के लण्ड का इंतज़ार कर रही थी कि कब घुसेगा यह मूसल मेरी चूत में ??

मामा ने काफी सारा थूक मेरी चूत पर लगाया। मामा के लण्ड पर तो पहले से ही मेरा थूक लगा हुआ था। थूक लगा कर मामा ने अपना काला नाग मेरी सुरंग में घुसाने के हलकी सी कोशिश करी तो मुझे पहली बार कुछ दर्द का एहसास हुआ पर मस्ती पूरे जोर पर थी तो मैंने उस दर्द की तरफ ध्यान नहीं दिया। तभी मामा ने अपना लण्ड सही से सेट करके एक जोरदार धक्का लगाया तो मामा का मोटा सुपारा मेरी चूत में उतर गया और मैं हलाल होते बकरे की तरह मिमिया उठी। दर्द की एक तीखी लहर मेरे पूरे बदन में दौड़ गई। ऐसा लगा जैसे चाकू से मेरी चूत को कोई चीर रहा हो।

अभी मैं कुछ सोच पाती कि मामा ने एक और जोर दार धक्का मारा और मामा का दो इंच मोटा लण्ड करीब 4 इंच तक मेरी कोरी चूत में उतर गया। मेरी आँखों से गंगा-जमुना बह निकली। दर्द के मारे मैं अब बिलबिला रही थी। मामा ने मेरे होंठ आपने होंठों में दबा रखे थे इस कारण मैं चिल्ला नहीं पा रही थी वरना मेरी चीख से तो पूरा घर हिल जाता।

मामा मेरी कोमल चूत में अपने लण्ड पूरा घुसाने में पूरी मशक्कत कर रहे थे। मामा ने पूरा जोर लगते हुए दो तीन धक्के एक साथ बिना रुके लगा दिए और लण्ड मेरी सील तोड़ता हुआ चूत में जड़ तक समा गया। चूत में कुछ गीला गीला सा महसूस हुआ। तब पता नहीं था कि मेरी ही चूत का खून हुआ है अभी अभी। लण्ड पूरा घुसाने के बाद मामा कुछ देर के लिए मेरे ऊपर ही लेट सा गया और मेरी चूचियों को सहलाने और मसलने लगे।

जैसे ही मामा ने मेरे होंठ छोड़े, मैं गिड़गिड़ा उठी,”मामा, प्लीज़ निकाल लो इसे, बाहर वर्ना मैं मर जाउंगी। निकाल लो मामा, मेरी फट गई है प्लीज़ !!! मुझे बहुत दर्द हो रहा है, मामा मैं मर जाउंगी।”

“कुछ नहीं होगा मेरी रानी बेटी, बस थोड़ा सा सहन करो, फिर तुम ही बोलोगी कि अंदर डालो।”

“म… मामा … मुझे नहीं करवाना…. प्लीज़ निकाल लो।”

मामा ने मेरी एक ना सुनी और धीरे धीरे लण्ड को अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया। मुझे तीखा दर्द हो रहा था पर मामा अपना काम पूरा करने में लगे थे। मामा मेरे चुचूक चूसते हुए धीरे-धीरे धक्के लगा रहे थे। कुछ देर के बाद जब लण्ड आराम से अंदर-बाहर होने लगा तो मुझे भी दर्द की जगह मज़ा आने लगा। बीच-बीच में कभी-कभी हल्की टीस सी होती पर अब मज़ा आने लगा था। मेरे चूतड़ अब मामा के धक्के का जवाब देने के लिए उठने लगे थे। मामा के धक्कों की गति भी अब बढ़ गई थी। अब मुझे बहुत मज़ा आने लगा था। दर्द बिल्कुल खत्म हो चुका था।

अब तो मैं भी “और जोर जोर से करो मामा और जोर से !” बड़बड़ा रही थी। अब तो दिल कर रहा था कि मामा ऐसे ही जोर जोर से धक्के लगाते रहें। मामा को भी जैसे मेरे मन की बात पता थी, तभी तो वो बिना रुके जोर जोर से धक्के लगा रहे थे, सीत्कारें कमरे में गूँज रही थी।

“आह्हआह्ह्ह.उईईईईजोर से म….. मामाऽऽ !”

“ये ले मेरी रानी !”

मामा मस्त मर्द थे, पूरे पन्द्रह मिनट हो चुके थे मामा को चोदते हुए पर अभी भी मामा का लण्ड लोहे की तरह ही अकड़ कर खड़ा था और मेरी चूत की पूरी तरह से रगड़-रगड़ कर चुदाई कर रहा था। कुछ देर की चुदाई के बाद मेरा बदन अकड़ने लगा। ऐसा लगा जैसे मेरा सारा बदन मेरी चूत के रास्ते बाहर आने को बेताब है। आठ दस धक्कों के बाद ही मेरी चूत से झरना बह निकला। मैं तो जैसे बादलों के ऊपर उड़ रही थी। मामा अब भी लगातार धक्के पर धक्के लगा रहे थे।

थोड़ी ही देर बाद मेरा पूरा बदन फिर से मस्ती से भर गया और मैं अपनी गाण्ड उछाल उछाल कर मामा का लण्ड अपनी चूत में ले रही थी। एकाएक मामा रुक गए और मुझे अपने घुटनों के बल घोड़ीकी तरह होने को कहा। मैं मामा के कहे अनुसार हो गई तो मामा ने पीछे आकर पहले तो मेरी चूत को थोड़ा सा चाटा और फिर लण्ड का सुपारा मेरी चूत पर सटा कर लण्ड एक ही धक्के में पूरा मेरी चूत में ड़ाल दिया और फिर से जोरदार धक्के लगाने लगे। इस आसन में चुदवाने में मुझे बहुत मज़ा आया।

मामा ने पूरे पच्चीस मिनट तक मेरी चुदाई की और मैं एक बार फिर झड़ गई।

अब मामा ने मुझे सीधा लेटा कर फिर से लण्ड अंदर डाल दिया और चोदने लगे। दस पन्द्रह धक्के ही लगा पाए थे कि उनका लण्ड भी शहीद होने के कागार पर पहुँच गया।

वो लण्ड का रस मेरी चूत में नहीं निकालना चाहते थे क्योंकि उसमे खतरा था। पर इससे पहले कि वो कुछ करते उनके लण्ड से गर्म गर्म वीर्य निकल कर मेरी चूत में भरने लगा। गर्म गर्म वीर्य का एहसास मिलते ही मेरी चूत भी बुरी तरह से संकोचन करने लगी और मामा के लण्ड को अपने अंदर जकड़ने और छोड़ने लगी। मुझे मेरी चूत अब भरी भरी सी महसूस हो रही थी। मेरा पूरा शरीर फूल की तरह हल्का हो गया था और मैं तो जैसे हवा में उड़ रही थी। मैंने अपने दोनों हाथों और टांगों से मामा को जकड़ रखा था। मामा रुक-रुक कर झटके खा रहे थे और अपने वीर्य को मेरी चूत में निचोड़ रहे थे। शादी में से आने के बाद से मेरा शरीर जिस आग में धधक रहा था वो सारी आग मामा के गर्म गर्म वीर्य ने बुझा दी थी।

हम दोनों एक दूसरे से लिपटे थोड़ी देर ऐसे ही पड़े रहे। मामा एक बार और मेरी प्यारी मुनिया के साथ मूसल मस्ती करना चाहते थे। मैं भला मन क्यों करती। थोड़ी देर बाद फिर उन्होंने एक बार फिर से मेरी टाँगें उठाकर अपना मूसल मेरी चूत में जड़ तक घुसेड़ दिया और सुबह तक मेरी चूत का दो बार बजा बजा

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