Thursday, November 21, 2024
Hindi Midnight Stories

मां बेटे का संवाद

आ गया बेटे? आज जल्दी आ गया.”

“हां मां, महने भर से रोज देर हो जाती है, आज बॉस से बहाना बनाकर भाग आया”

“तो ऐसा क्या हो गया आज, आता रोज की तरह रात के दस बजे”

“तू नाराज है अम्मा, जानता हूं, इसीलिये तो आ गया आज”

“चल, आ गया तो आ गया, पर करेगा क्या जल्दी आके? वैसे भी सुबह रात मां से मिनिट दो मिनिट तो मिल ही लेता है ना”

“अब मां ज्यादती ना कर, रात को लेट आता हूं फिर भी कम से कम एक घंटी तेरी सेवा करता हूं.”

“बड़ा एहसान करता है रे, मां की सेवा करके”

“अब नाराजी छोड़ मां, सच्ची तेरे साथ को तरस गया हूं, सोचा आज मन भर के अपनी प्यारी पूजनीय मां की पूजा करूंगा.”

“बड़ा नटखट है रे, बड़ा आया मां की पूजा करने वाला. तेरी पूता और सेवा मैं खूब जानती हूं. एक नंबर का बदमाश छोरा है तू, बचपन में तेरे को जरा डांटकर रखती तो ऐसे न बिगड़ता”

“हाय अम्मा … झूट मूट भी नाराज होती हो तो क्या लगती हो! पर ये तो बता के अगर तू मुझे सीदा सादा बेटा बना कर रखती तो आज तेरी ऐसी सेवा कौन करता? बता ना मां. तुझे अपने बेटे की सेवा अच्छा नहीं लगती क्या, कुछ कमी रह जाती है क्या अम्मा? अरे मुंह क्यों छुपाती है … बता ना!”

“अब ज्यादा नाटक न कर, बातों में कोई तुझे हरा सकता है क्या! चल खाना तैयार है, तू मुंह धो कर आ, मैं भी आती हूं. जरा कपड़े बदल लूं”

“अब कपड़े बदलने की क्या जरूरत है अम्मा? अच्छे तो हैं. वैसे भी कोई भी कपड़े हों क्या फरक पड़ता है? कुछ देर में तो निकालने ही हैं ना.”

“कैसी बातें करता है रे, कोई सुन लेगा तो? ऐसे सबके सामने छिछोरपना न दिखाया कर”

“अब यहां और कौन है अम्मा सुनने को? और मैंने गलत क्या कहा? तू ही कुछ का कुछ मतलब निकालती है तो मैं क्या करूं? अब सोते वक्त कपड़े तो बदलते ही हैं ना? और बदलना हो कपड़े तो निकालने पड़ते ही हैं, उसमें ऐसा क्या कह दिया मैंने?”

“हां हां समझ गयी, बड़ा सीधा बन रहा है अब. तू नहा के आ, मैं कपड़े बदल के खाना परोसती हूं”

“मस्त पुलाव बना है अम्मा. आज खास मेहरबान है मुझपे लगता है”

“चल, ऐसा क्या कहता है. अब अपने बेटे के लिये कौन मां मन लगाकर खाना नहीं बनायेगी. और ले ना. और ऐसा क्या घूर रहा है मेरी ओर?”

“ये साड़ी बड़ी अच्छी है मां. और ये ब्लाउज़ भी नया लगता है, बहुत फब रहा है तेरे पे. तभी कह रही थी लड़िया के कि कपड़े बदल के आती हूं”

“अच्छा है ना?”

“हां मां. आज स्लीवलेस ब्लाउज़ पहन ही लिया तूने. मैं कब से कह रहा था कि एक बार तो ट्राइ कर”

“वो तू कब से जिद कर रहा था इसलिये बनवा लिया और तुझे पहन के दिखाया. तुझे मालूम है बेटे कि मैं स्लीवलेस पहनती नहीं हूं, ये मेरी मोटी मोटी बाहें हैं, मुझे शरम लगती है.”

“पर कैसी गोरी गोरी मुलायम हैं. हैं ना मां? फ़िर? मेरी बात माना कर”

“जो भी हो, मैं बाहर ये नहीं पहनूंगी. घर में तेरे सामने ठीक है, तुझे अच्छा लगता है ना”

“वैसे मां, सिर्फ़ ब्लाउज़ और साड़ी ही नहीं, मुझे और भी चीजें नयीं लग रही हैं”

“चल बेशरम …. “

“अरे शरमाती क्यों हो मां? मेरे लिये पहनती भी हो और शरमाती भी हो”

“चल तुझे नहीं समझेगी मां के दिल की बात. वैसे तुझे कैसे पता चला?”

“क्या मां?”

यही याने … कैसा है रे … खुद कहता है और भूल जाता है”

“अरे बोल ना मां, क्या कह रही है?”

“वो जो तू बोला कि सिर्फ़ साड़ी और ब्लाउज़ ही नहीं … और भी चीजें नयी हैं”

“अरे मां, ये साड़ी शिफ़ॉन की है … और ब्लाउज़ भी अच्छा पतला है, अंदर का काफ़ी कुछ दिखता है”

“हाय राम … मुझे लगा ही … ऐसे बेहयाई के कपड़े मैंने …”

“सच में बहुत अच्छी लग रही हो मां … देखो गाल कैसे लाल हो गये हैं नयी नवेली दुल्हन जैसे … तू तो ऐसे शरमा रही है जैसे पहली बार है तेरी”

“तू चल नालायक …. मैं अभी आती हूं सब साफ़ सफ़ाई करके …. फ़िर तुझे दिखाती हूं … आज मार खायेगा मेरे हाथ की तू बेहया कहीं का”

“मां … सिर्फ़ मार खिलाओगी … और कुछ नहीं चखाओगी …”

“तू तो …अब इस चिमटे से मारूंगी. और ये पुलाव और ले, तू कुछ खा नहीं रहा है, इतने प्यार से मैंने बनाया है”

“मैं नहीं खाता … तुमसे कट्टी”

“अरे खा ले मेरे राजा … इतनी मेहनत करता है … घर में और बाहर … चल ले ले और … फ़िर रात को बदाम का दूध पिलाऊंगी”

“एक शर्त पे खाऊंगा मां”

“कैसी शर्त बेटा?”

“तू ये साड़ी और ब्लाउज़ निकाल और मुझे सिर्फ़ वो नयी चीजें पहने हुए परोस”

“ये क्या कह रहा है? मुझे शरम आती है बेटे”

“मां … आज ये शरम का नाटक जरा ज्यादा ही हो गया है. अब बंद कर और मैं कहता हूं वैसे कर. कर ना मां, तुझे मेरी कसम … तूने तो कैसे कैसे रूप में मुझे खाना खिलाया है … है ना?”

“चल तू कहता है तो … और नाटक ही सही पर तुझे भी अच्छा लगता है ना जब मैं ऐसे शरमाती हूं?”

“जरा पास आओ मां तो दिखाऊं कि कितना अच्छा लगता है”

“बाद में मेरे लाल. तू ये खीर ले, मैं अंदर साड़ी ब्लाउज़ रख के आती हूं”

कुछ देर के बाद ….

वाह अम्मा, क्या मस्त ब्रा और पैंटी हैं. नये हैं ना? मुझे पहले ही पता चल गया था, तेरे ब्लाउज़ के कपड़े में से इस ब्रा का हर हिस्सा दिख रहा था.”

“हां बेटे आज ही लायी हूं. उस दिन तू वो मेगेज़ीन देखकर बोल रहा था ना कि अम्मा ये तुझ पर खूब फ़बेंगी तो आज ले ही आयी. तू कहता था ना कि वो हाफ़ कप ब्रा और यू शेप के स्ट्रैप की ब्रा ला. और ये पैंटी, वो तंग वाली, ऐसी ही चाहिये थी ना तुझे?”

“तू गयी थी मॉल पे अम्मा?”

“और क्या? वो मेगेज़ीन से मेक लिख के ले गयी थी, दो मिनिट में ली और वापस आ गयी”

“क्या दिखते हैं तेरे मम्मे अम्मा इन में, लगता है बाहर आ जायेंगे. पैंटी भी मस्त है, तेरी झांटों का ऊपर का भाग भी दिखता है. सच अम्मा, तू ऐसी ब्रा और पैंटी में अधनंगी खाना परोसती है तो लगता है जैसे मेनका या उर्वशी प्रसाद दे रही हों. लगता है कि यहीं तुझे पटक कर … “

“बस बस … नाटक ना कर … वैसे बेटा ऐसे सिर्फ़ ब्रा और पैंटी में मैं ज्यादा मोटी लगती हूं ना? देख ना कैसा थुलथुला बदन हो गया है मेरा … तेरी कसी जवानी के आगे मेरा ये मोठा बदन … मुझे अच्छा नहीं लगता बेटे”

“मां … मेरी ओर देख … मेरी आंखों में देख … तेरा रूप देख कर मेरा क्या हाल होता है देख रही ऐ ना? तू ऐसी ही मुझे बहुत अच्छी लगती है मां … नरम नरम मुलायम बदन … हाथ में लेकर दबाने की इतनी जगहें हैं …. मुंह मारने की इतनी जगहें हैं …. तेरे इस खाये पिये बदन में जो सुंदरता है वो किसी मॉडल के बदन में कभी नहीं मिलेगी मां … जरा आना मेरे पास … ये देख … कैसा हो गया है. आ ना अम्मा, मेरे पास आ.”

“अभी नहीं बेटा नहीं तो तू ठीक से खाना भी नहीं खायेगा और शुरू हो जायेगा. चल खा जल्दी से.”

“मां तू भी खा ले ना, नहीं तो फ़िर बाद में खाने बैठेगी और मुझे उतना इंतजार करवायेगी”

“मैं तो खा चुकी पहले ही शाम को बेटे. मेरा उपवास था ना.”

“उपवास सिर्फ़ खाने का है ना मां? और कुछ तो नहीं? मेरे साथ तो उपवास नहीं करेगी ना मां? या मुझसे तो नहीं करायेगी उपवास?”

“नहीं मेरे लाल, तेरा तो मैं भोग लगाऊंगी. तुझे पकवान चखाऊंगी”

“ले मां, हो गया मेरा खाना”

“अरे और ले ना खीर, पूरा बर्तन भर के बनाई है तेरे लिये”

“अब नहीं मां, अब तो बस तू देगी वो प्रसाद लूंगा. खाना बहुत हो गया, अब तो मुझे पुलाव नहीं, वो फ़ूली फ़ूली डबल रोटी चाहिये जो तेरी टांगों के बीच है. चल जल्दी आ, मैं इन्तजार कर रहा हूं बेडरूम में”

“आज इतना उतावला हो गया, रोज रात मैं इन्तजार करती हूं तब …?”

“आज वसूल लेना अम्मा, रोज लेट आने का और तुझे तड़पाने का आज पूरा हिसाब चुकता कर देता हूं अम्मा, तू आ तो सही”

“ठीक है चल, मैं पांच मिनिट में आयी”

….. कुछ देर के बाद ….

आज खाना कैसा था बेटे? तूने बताया ही नहीं, बस मेरी ओर टुकुर टुकुर देख रहा था पूरे खाने के वक्त”

“बहुत अच्छा था अम्मा, ये भी पूछने की बात है? तेरी हर चीज अच्छी है, चल अब जल्दी से ये ब्रा और पैंटी भी उतार दे, इनमें तू बहुत मस्त लगती है, मजा आता है इन्हें मसलने में पर अभी मेरे को टाइम नहीं है, बहुत जोर से खड़ा है अम्मा.”

“सच उतार दूं?”

“नहीं अम्मा, मैं भूल गया कि आज अपने पास टाइम ही टाइम है, आज मैं जल्दी घर आ गया हूं, नौ ही तो बजे हैं, रोज तो ग्यारा बारा बज जाते हैं. मत उतार अम्मा, पर मेरे पास आ”

“अरे ये क्या … चल छोड़”

“गोद में ही तो लिया है अम्मा, कुछ बुरा तो नहीं किया है, ऐसे क्या बिचकती है. अब ये दिखा जरा ब्रा. क्या दिखती है अम्मा, साटिन की है लगता है, इतनी चिकनी मुलायम”

“अरे कैसे दबा रहा है रे ब्रा के ऊपर से ही, रोज तो ब्रा निकाल के दबाता है”

“आज बात और है मां, इस ब्रा ने सच में तेरी चूंचियों को निखार दिया है, लगता है कि इन गोलों में मीठा मुलायम खोवा भरा है खोवा जिसे मैं गपागप खा जाऊं. और खाने के पहले देखूं कि कितना मुलायम खोवा है … और ये डबल रोटी देख … इतनी फूली फूली डबल रोठी और इस पर ये रेशमी जाल …”

“बेटा, ये क्या कर रहा है, पैंटी के अंदर हाथ डाल रहा है बेशरम”

“तो ले, पैंटी निकाल दी, अब तो बेशरम नहीं कहेगी!”

“कैसा हे रे तू … और मुझे ऐसा क्यों लगता है कि मैं साइकिल के डंडे पर बैठी हूं”

“डंडा तो है मां पर तेरे बेटे की जवानी का डंडा है जो अपनी मां के जोबन को देखकर खुशी से उछल रहा है … ये देख … ये देख”

“अरे … ये तो मेरे वजन को भी उठा लेता है मेरे लाल … कितना जोर है रे इसमें … जादू सा लगता है”

“ये जादू है मां तेरे बदन का, तेरे हसीन नरम नरम शरीर का, चल मां …. अब सहन नहीं होता, निकाल ना ये ब्रा, इसका बकल कैसा है अजीब सा, मेरे से नहीं निकलता”

“तू पोंगा पंडित है, इतने दिन हो गये अपनी मां की पूजा करते करते और ब्रा का बकल भी नहीं खुलता तुझसे! ये ले … और ये उंगली क्यों रगड़ रहा है रे …कैसा तो भी होता है मेरे लाल”

“मां … कितनी गीली है ये तेरी … बुर अम्मा … तेरी चूत मां … डंडे को खाने का इरादा है इसका? डंडा तैयार है अम्मा, चल जल्दी”

“ले, मुझे क्या पता था कि तू इतना उतावला होगा! रोज तो ऐसे ही ब्रा और पैंटी में मुझे लेकर लिपटता है. ले निकाल दी दोनों, अब क्या करूं? सीधे चोदेगा क्या? देख कैसा झंडे जैसा खड़ा है, लगता है अपनी अम्मा को सलाम कर रहा है”

“हां अम्मा, ये तेरे रूप को सलाम कर रहा है. आज तो हचक हचक के चोदूंगा पर बाद में, पहले जरा अपने खजाने का रस पिलवा. कब से इस अमरित के स्वाद को याद कर करके मरा जा रहा हूं”

“अरे इतना उतावला क्यों हो रहा है, रोज तो स्वाद लेता है”

“पर अम्मा, पिछले कुछ दिन से इतनी देर हो जाती है रात को, बस जरा सा चख पाता हूं. आज मुझे ये अमरित घंटे भर स्वाद के लेकर पीना है”

“हां बेटे, पी ले, जितना मन है उतना पी, तेरे लिये ही तो संजो कर रखा है ये खजाना, जो चाहता है कर. आ जा, दे दे इसमें मुंह. बिस्तर पर लेटूं क्या? कि तेरे पास खड़ी हो जाऊं?”

“नहीं अम्मा, आज इस कुरसी में बैठ जा और टांगें खोल दे. मन लगाकर पलथी मारकर बैठूंगा अपनी अम्मा के सामने और उसकी बुर का रस चखूंगा.”

“ले बैठ गयी. और फ़ैलाऊं क्या? चूत खुल गयी कि नहीं तेरे लायक?”

“अम्मा, खुली तो है पर मुंह नहीं दिख रहा है ठीक से, झांटों में ढकी है. तेरी खुली चूत क्या दिखती है अम्मा, लाल लाल गुलाबी गुलाबी मिठाई जैसी. अभी बस झलक दिख रही है काले काले बालों में से, जरा उंगली से झांटें बाजू में करके चूत खोल कर रख ना, तेरी झांटें मुंह में आती हैं.”

“काट लूं क्या? मैं तो कब से काटने को कह रही हूं, तू ही तो कहता था कि अच्छी लगती हैं तुझे!!”

“हां अम्मा पर अब बहुत लंबी हो गयी हैं, जीभ पे बाल आते हैं, चाटने में तकलीफ़ होती है”

“तो पूरी साफ़ कर दूं क्या रेज़र से? दो महने पहले की थीं ना, तूने ही शेव कर दिया था.”

नहीं अम्मा, एक दो दिन अलग लगता है, फ़िर रोज शेव करनी पड़ेगी नहीं तो वे जरा जरा से कांटे और चुभते हैं. मैं काट दूंगा कल कैंची से, वैसे तेरी झांटें हैं बहुत शानदार, रेशमी और मुलायम, मजा आता है उनमें मुंह डाल के, बस थोड़ी छोटी हों. अब जरा खोल ना चूत, वो झांटें भी बाजू में कर, देख कितना रस बह रहा है, इतनी मस्त महक आ रही है, जरा चाटने तो दे ठीक से”

“ले मेरे लाल, चाट. अब ठीक है ना? आह ऽ बेटे, बहुत अच्छा लगता है रे, कैसा चाटता है रे ऽ जादू कर देता है अपनी मां पर. ओह ऽ ओह ऽ हां मेरे लाल अं ऽ अं ऽ और चाट मेरे बच्चे … मेरे राजा … कैसा लग रहा है रे … बोल ना!!”

“अम्मा जरा सुकून से चाटने दे ना ….. बात करूंगा तो चाटूंगा कैसे … हां अब ठीक है, कितनी चू रही है अम्मा, बस टपकने को है. वैसे क्या बात है अम्मा आज तो बिलकुल घी निकल रहा है तेरे छेद से …. स्वाद आ रहा है मस्त, सौंधा सौंधा!”

“अरे सुबह से नहीं झड़ी हूं … तू रोज की तरह सुबह जल्दी भाग गया ऑफ़िस को, बिना अपनी अम्मा को चोदे या चूसे. आज कल लेट आता है और थक कर देर तक सोता है. आज मुठ्ठ भी नहीं मार पायी, वो पड़ोस वाली दादी आ बैठी दिन भर मेरा दिमाग चाटा, तेरी याद आती थी तो मन मार कर रह जाती थी, बीच में लगा कि बाथरूम जाकर मुठ्ठ मार लूं पर मुझे ऐसे जल्दबाजी में मुठ्ठ मारने में मजा नहीं आता बेटे. जरा आराम से लेट कर तेरे को याद करके … दिन भर ये बुर रानी बस मन मारे बैठी है”

“तभी मैं कहूं आज इतनी गाढ़ी क्यों है तेरी रज …. अम्मा तेरी रज याने पकवान है पकवान अम्मा …… अब जरा और खोल ना चूत … जीभ अंदर डालनी है.”

ले बेटे पूरी खोल देती हूं… अब ठीक है? …. हाय ऽ रे ऽ जीभ अंदर डालता है तो मजा आता है बेटे … और अंदर डाल ना … ओह ऽ ओह ऽ उई ऽ मां ऽ … गुदगुदी होती है ना!”

“अम्मा, तू बार बार अपनी चूत छोड़ कर मेरा सिर पकड़ लेती है, चूत पर दबा लेती है, ऐसे में मैं कैसे चाटूंगा ऽ मेरी मां की बुर का अमरित?”

“अरे तो चूस ले ना … चाटना बाद में … हाय तुझे नहीं पता कि बेटा तेरे को बुर से दबा कर कैसा लगता है … लगता है तेरे को पूरा फ़िर से अपने अंदर घुसेड़ लूं”

“जादू सीख ले अम्मा, मेरे को बित्ते भर का गुड्डा बनाकर अपनी चूत में घुसेड़ कर रख, दिन भर वहीं रहा करूंगा. पर अब चल चाटने दे जरा, देख कैसी बह रही है”

“बेटा … हाथ बार बार हिल जाता है … इसलिये खोल कर नहीं रख पाती बुर तेरे लिये”

“तो अम्मा … ऐसा कर, अपनी टांगें उठा और कुरसी के हथ्थे पर रख ले.”

“दुखता है बेटे … मैं अब जवान कहां रही पहले सी … टांगें इतनी फ़ैलायेगा तो कमर टूट जायेगी मेरी … चल अब सिर नहीं पकड़ूंगी तेरा पर मेरे लाल तू इतना अच्छा चाटता है रे ऽ सच में लगता है कि तू इत्ता सा होता तो तेरे को पूरा अंदर घुसेड़ कर तेरे बदन से ही मुठ्ठ मारती”

“अम्मा नखरे मत कर, रख टांगें ऊपर, ले मैं मदद करता हूं.”

“ओह … आह ऽ …. आह ऽ…. ओह ऽ … ले हो गया तेरे मन जैसा? रख लीं टांगें ऊपर मैंने.”

“अब देख अम्मा, कैसे मस्त खुल गयी है तेरी बुर … अब सही भोसड़ा लग रहा है गुफ़ा जैसा …. अब आयेगा मजा चाटने का … अब तो जीभ क्या … मेरा पूरा मुंह ठुड्डी समेत चला जायेगा अंदर”

“आह ऽ ओह ऽ … हां बेटे ऐसा ऽ आ ऽ ह ऽ ओह ऽ ओह ऽ हा ऽ य ऽ रे …. अं ऽ अं ऽ … अरे ऽ उई ऽ मां ऽ ऽ ऽ ………”

“हां अम्मा … बस ऐसे ही … और पानी छोड़ अपना … ये बात हुई …. मजा आ गया अम्मा … अब लगाई है तूने रस की फुहार … नहीं तो बूंद बूंद चाट कर मन नहीं भरता अम्मा ऽ अब जरा मुंह लगाना पड़ेगा नहीं तो …. बह जायेगा ये अमरित … अम्मा … ओ ऽ अम्मा …. लगता है कि मुंह में भर लूं तेरी … बुर और चबा चबा कर खा … जाऊं … देख ऐसे …”

“ओह … ओह … अरे …. ओह … कैसा करता है रे … उई मां ऽ … आह … ओह … ओह …. हा ऽ य … मैं मरी …ओह … ओह ….उईईई ऽ उईई ऽ आह …. आह …. आह …. बस …. आह”

“अब झड़ी ना मस्त? … अब जरा दो चार घूंट रस मिला है मेरे को …. और कितना गाढ़ा है अम्मा …. शहद जैसा …. चिपचिपा …”

“कैसा आम जैसा चूसता है रे …. निहाल कर दिया मेरे बच्चे … अब जरा शांति मिली दिन भर की प्यास के बाद …. कितना अच्छा झड़ाता है तू बेटे ….. बहुत अच्छा लग रहा है मेरे लाल… अरे अब नहीं कर … थोड़ा आराम तो करने दे … अभी अभी झड़ी हूं … मेरे दाने को अब न छेड़ बेटे …. सहन नहीं होता रे मेरे ला ऽ ल …”

“अम्मा नखरा मत कर, पूरा पानी निकाल तो लूं पहले तेरी चूत से. कल बोल रही थी ना कि बेटे, निचोड़ ले मेरी चूत, सब पानी निकाल ले और पी जा. तो आज निचोड़ता हूं तुझे. अभी तो एक बार झड़ाया है, आज तो घंटा भर चूसूंगा.”

“चूस ना … मैं कहां मना करती हूं … बस दम तो लेने दे मेरे राजा … तुझे बुर का पानी पिला कर मेरा मन खिल जाता है बेटे, तेरे लिये ही तो बहती है मेरी चूत … हा ऽ य बेटे मत कर इतनी जोर से… ओह … अच्छा भी लगता है मेरे लाल और सहन भी नहीं होता रे …. मैं तो मर ही जाऊंगी एक घंटे में … उ ऽ ई ऽ उ ऽ ई ऽ कैसे करता है रे? मेरे दाने को ऐसा बेहरमी से रगड़ता है जैसे मार डालना चाहता है मुझे …. उई ऽ मां … ओह ऽ … ओह ऽऽऽ.

बस बेटे छोड़ दे अब … बहुत हो गया रे … जान ही नहीं है अब मेरे बदन में …. तुझे मेरी कसम मेरे राजा …. लगता है तीन चार घंटे हो गये तुझे मेरी बुर से मुंह लगाकर …. सब रस खतम हो गया … अब तो छोड़ ना मेरे लाल! दस बार तो झड़ा चुका रे …. अब दुखता है रे … दाना सनसनाता है…. कैसा तो भी होता है”

“कहां अम्मा, एक घंटा भी नहीं हुआ होगा …. इतने में थक गयी? खैर चल, छोड़ता हूं तुझे पर अम्मा, बता तो … मजा आया?”

“हां ऽ आं ऽ बेटे …. कितनी मीठी गुदगुदी होती है रे मेरी बुर में जब तू उसे प्यार करता है ऐसे …कितना सुख देता है रे अपनी अम्मा को …. मार डालेगा किसी दिन मुझे …..”

“नहीं अम्मा तुझे तो बहुत दिन जिंदा रखूंगा, बुढ़िया हो जायेगी तो कुछ कर भी नहीं पायेगी मेरे को … और जोर से बिना रोक टोक चोदा करूंगा. अब चल बिस्तर पर, चोद डालता हूं तुझे …. ये देख मेरा लौड़ा? मरा जा रहा है तेरी चूत के लिये”

“अरे ये मुस्टंडा मुझे खतम कर देगा … मुझसे नहीं सहा जायेगा बेटे … चूत ऐसी कर दी है तूने चूस चूस कर कि लगता है कि रेती से रगड़ी हो …. अब उसपे ये जुलम न कर … उई ऽ मां ऽ देखा राजा मुझसे तो चला भी नहीं जा रहा है”

“तो उठा कर ले चलता हूं अम्मा”

“अरे क्यों उठाता है रे, मेरा वजन कोई कम नहीं है … अच्छी खासी मोटी हूं”

“कहां अम्मा, मुझे तो फ़ूल सी लगती है तू, तेरा यह गुदाज गोरा गोरा बदन किसी दुल्हन से कम थोड़े है! …. और रोज तो उठाता हूं तुझे, आज क्या नयी बात है? चल आ जा … ऐसे … मेरी गरदन में बांहें डाल दे दुल्हन जैसे ….. बस हो गया …. आ गया बिस्तर …. ले अब लेट जा और टांगें फ़ैला दे”

“मत चोद राजा … सुन अपनी अम्मा की बात … आ चूस देती हूं इसे … तेरे इस सिर उठाकर खड़े सोंटे की मलाई खाने दे मुझे”

“आज नहीं अम्मा, कल तूने बस चूसा ही चूसा था मुझे, एक बार भी अपने बुर में नहीं लिया इसे, आज तो चोदूंगा तुझे और ऐसा चोदूंगा कि देख लेना तू ही”

“मत चोद रे … छोड़ दे मेरे बच्चे … आज मेरी चूत बहुत थक गयी है रे, छूने से भी दुखती है, चुदवाऊंगी तो मर ही जाऊंगी!”

“अब किरकिर करेगी तो गांड मार लूंगा अम्मा, फ़िर न कहना”

“नहीं नहीं बेटे …. गांड मत मार …. दुखता है रे … तेरा यह मूसल तो फ़ाड़ देता है मेरी … तू गांड खोलता है मेरी तो दिल धक धक करने लगता है रे बेटा डर के मारे …”

“क्या अम्मा तुम भी … कितना नखरा कर रही है आज … इतने दिन से गांड मरा रही है और फ़िर भी कहती है कि दुखता है… सच बोल हफ़्ते में दो तीन बार नहीं मरवाती तू?”

“सच में दुखता है रे … तू नहीं समझेगा …. मैं कहां मरवाती हूं, तू ही मार लेता है जिद करके …. गांड मत मार राजा … ले मैंने चूत खोल दी तेरे लिये … चोद ही ले पर गांड मत मार!”

“ये बात हुई ना, अब आई रास्ते पर. जरा और फ़ैला टांगें, रखने दे लंड तेरी चूत के दरवाजे पर …. ये ऽ ये घुसा अंदर ऽ … अम्मा तू फ़ालतू में किरकिर कर रही है पर तेरी चूत कितनी पसीज रही है देख … एक झटके में अंदर चला गया मेरा लौड़ा देख!”

“हां बेटे मैं क्या करूं … तू आगोश में होता है तो पागल हो जाती है ये … रस छोड़ती रहती है … आह ऽ … धीरे धीरे बेटे … हौले हौले चोद ना …. चुम्मा दे ना बेटे … चुम्मा ले लेकर चोद … जरा प्यार से चोद ना अपनी मां को … ऐसे रंडी के माफ़िक ना चोद”

ठीक है मां … धीरे धीरे चोदता हूं पर वायदा नहीं करता … मेरा लंड बहुत मस्ती में है तेरी चूत का भूसा बनाना चाहता है … असल में मां तू किसी रंडी से कम नहीं … तेरे को देखते ही लंड खड़े हो जाते हैं लोगों के … मेरे को मालूम है … ले … ऐसे ठीक है” … चुम्मा दे … तेरा चुम्मा बहुत मीठा है अम्मा …. जरा जीभ दे न चूसने को”

“ऊं ऽ अंम ऽ म ऽ चुम्म ऽ अं ऽ अं ऽ मं ऽ चप ऽ अरे जीभ क्यों चबाता है मेरी, खा जायेगा क्या ऽ ?”

“हां अम्मा चमचम है चमचम रसीली मीठी, चूसने दे जरा सप ऽ सुर्र ऽ अं ऽ ….. अम्मा तेरे मम्मे क्या नरम नरम हैं, रबर के बंपर जैसे लगते हैं छाती पर, भोंपू हैं भोंपू ऽ.”

“हां राजा तभी तू ये भोंपू बजाता रहता है ना? ले और बजा, दबा ना और ऽ … बहुत अच्छा लगता है रे …. हां ऐसे ही …. ओह ऽ कितना अच्छा चूसता है रे … चूस मेरे लाल …. चूस …. चूस ले मेरे निपल मेरे राजा … पी जा मां का दूध …. हाय ऽ ओह ऽ अरे काट मत … कैसा करता है? … हां ऐसे ही चूस … और … और जोर से …. हाय चोद ना अब”

“अम्मा, अब देख कैसे चूतड़ उछाल उछाल कर चुदवा रही है …. अभी कह रही थी कि धीरे धीरे बेटे …. रंडी जैसे ना चोद … अब खुद रंडी जैसी चूतड़ उछाल कर मेरा लौड़ा खा रही है”

“अरे तू नहीं समझेगा मेरे लाल एक मां के दिल की हालत जब उसका जवान बेटा उसकी चूंचियां चूसता हुआ उसे चोद रहा हो … चोद बेटे चोद … और जोर से चोद … तोड़ दे मेरी कमर … मैं कुछ न बोलूंगी … चोद चोद कर अधमरी कर दे मुझे … चोद मेरे लाल …. और जोर से चोद … जोर से धक्का लगा ना …. पेल दे मेरे लाल लाल … पूरा पेल दे अंदर … ओह ऽ ओह ऽ … हाय ऽ … ऐसे ही मेरे बेटे …. और जोर से मार …. लगा जोर से … घुस जा अपनी मां की बुर में ऽ … उई ऽ मां ऽ आह आह उई मां ऽ ऽ ऽ ऽ चोद चोद कर मार डाल मेरे बेटे … खतम कर दे रे मुझे ऽ ऽ इस रंडी से पैसा वसूल कर ले रे चोद चोद के … मैं सच में तेरी रंडी हूं मेरे राजा बेटा …”

“ले अम्मा ऽ … ले … चोद डालता हूं तुझे आज … ले … और जोर से मारूं ऽ ? .. ये ले … और ये ले … तेरी चूत का आज भुजिया ऽ बना ऽ दे ऽ ता ऽ हूं ऽ ये ले ऽ आया मजा? ऽ नहीं आया ? ऽ तो ये ले …. ओह ऽ ओह ऽ आह ऽ आह ऽ ओह अम्मा ऽ ऽ ओह ऽ आह ऽ आह आ ऽ आ ऽ आ ऽ आह ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ”

….. कुछ देर के बाद ….

“मेरे राजा ऽ मेरे लाल ऽ थक गया ना? बहुत मेहनत की है तूने रे बेटे आज …. अपनी मां को पूरा सुखी कर दिया बेटे … भगवान तुझे लंबी उमर दे … ले चूस मेरी चूंची जैसा बचपन में करता था और सो जा अब … रात बहुत हो गयी है.”

“अम्मा ऽ बहुत मजा आया अम्मा … तू कितनी मस्त है … रूप की खान है … अम्मा …. तेरा दूध पीने का मन करता है अम्मा.”

“अब दूध कहां से आयेगा मेरे लाल … मेरी उमर हो गयी है … जवान होती तो कहती कि बेटे चोद चोद कर मेरे से बच्चा पैदा कर दे और पी मेरा दूध. अच्छा ऐसा कर बहू ले आ … शादी कर ले … फ़िर बहू का दूध पीना.”

“मुझे नहीं करनी शादी अम्मा … तेरे से ज्यादा रूपवती कौन होगी … तेरे ये मोटे मोटे पपीते से मम्मे … ये रसीली लाल लाल चूत …. ये मतवाली पहाड़ सी गांड … ये मोटे मोटे चिकने पैर … ये गोरी फ़ूली रान …. तेरा ये गोरा गोरा थुलथुला बदन …. माल है अम्मा …. असल माल है …. खोवा है खोवा … मावा… मुझे शादी की क्या जरूरत है?”

“पगला है रे तू पगला ! …. बिलकुल मां का दीवाना है. अच्छा चल सो जा.”

दूसरे दिन ….

“आ गया बेटे, आज फ़िर से देर हो गयी आफ़िस में?”

“हां अम्मा, क्या करूं बहुत काम था, चल मैं आता हूं नहा कर, बहुत भूख लगी है”

“मैं हूं ना मेरे लाल तेरी भूख मिटाने को. चल आ जा जल्दी”

“जानता हूं अम्मा, सिर्फ़ तू ही है जो मेरी भूख मिटाती है. अभी आता हूं”

“ठीक है, वैसे पराठे बना रही हूं आज, तेरी ही राह देख रही थी.”

….. कुछ देर के बाद ….

आ गया मेरा राजा बेटा! अरे ये क्या कर रहा है? कैसा चिकना लग रहा है नहा धो के!”

“चिकनी अम्मा का चिकना बेटा, है ना अम्मा? जरा ऐसे सरक … बस ठीक है”

“अरे ये क्या कर रहा है मेरे पीछे बैठ कर … और साड़ी क्यों उठा रहा है रे नालायक?”

“चुप कर अम्मा. और तू भी इसी की राह देख रही थी ना? तभी अंदर चड्डी नहीं पहनी, तुझे मालूम है मेरी चाहत”

“अरे … अरे भूख लगी है ना? … मुझे पराठे बनाने तो दे”

“तू बेल ना अम्मा, तेरे हाथ थोड़े पकड़ रहा हूं. मुझे तो बस मन कर रहा है इन गोरे गोरे तरबूजों में मुंह मारने का … अं … अं … हं ..”

“छोड़ ना, हमेशा करता है ऐसा, मैं यहां रसोई में रोटी बनाती हूं तो पीछे से मेरी साड़ी उठा कर मेरी गांड चूसने लगता है … अरे छोड़ … उई ऽ जीभ क्यों डालता है रे अंदर … गुदगुदी होती है ना”

“चूसने दे अम्मा, मजा आता है … स्वाद भी मस्त है … सौंधा सौंधा मेरे लंड को भी भाता है … आज उसे भी चखाऊंगा”

“हाय ऽ गांड मारेगा मेरी? परसों ही तो मारी थी रे … आज मत मार ना ऽ.”

“मेरा बस चले तो रोज मारूं अम्मा. पर तू कहां मारने देती है! अब नखरा मत कर. मुझे जरा वो घी का डिब्बा दे, तेरी गांड में चुपड़ दूं.”

“अरे … रुक ना … मत मार मेरे लाल …. पिछले हफ़्ते मैं रोटी बना रही थी तब कैसा चिपक गया था मेरे से … तेरे धक्कों से एक रोटी नहीं बनी मेरी आधे घंटे, एक दो बनाई वो सब टूट गई … देख … तेरे को ही खाने में देर लगेगी …”

“अभी नहीं मारूंगा अम्मा … वैसे तेरी कसम, अगर जोर की भूख नहीं लगी होती तो यहीं रसोई में मार लेता तेरी इस प्लटफ़ॉर्म पे दबा के … अभी बस घी लगा देता हूं … बाद में फाल्तू टाइम बरबाद होगा”

“तू मानेगा नहीं….. आज घी से चिकनी कर रहा है मेरे भाग … नहीं तो तू है बड़ा बेरहम, पिछली बार सूखी ही मार ली थी …. कितना दुखा था मुझे!

“कुछ दुखा वुखा नहीं था अम्मा, सब तेरा नखरा है, कैसे कमर हिला हिला कर मरवा रही थी परसों कि मार बेटे और जोर से मार.”

“वो तो बेटा तू मेरे बदन से कहीं भी लगता है तो मुझसे रहा नहीं जाता … पर दुखता है सच … आह तेरी उंगली जाती है तो गुदगुदी होती है बेटे …. हां ऐसे ही … और अंदर तक लगा ना … ओह … अरे ऽ दुखता है ना …. दो उंगलियां क्यों डालता है रे दुष्ट?”

“अम्मा दो ही तो हैं … मेरा लंड कैसे ले लेती है? … वो तो चार उंगली के बराबर है … हां जरा अपनी साड़ी उठा कर पकड़, बीच में आती है और फ़ालतू पकर पकर मत कर, लगाने दे अंदर तक. चल हो गया”

“अरे ये उंगली क्या चाटता है … गंदा कहीं का … गांड में उंगली की था ना … अब उसी को … छी छी”

“घी लगा है अम्मा, उसे क्यों बरबाद करूं? और मां, तू जानती है कि तेरी कोई बात, तेरा कोई अंग मुझे गंदा नहीं लगता … मेरा बस चले तो तेरी गांड में मिठाई भर दूं और फ़िर वहीं से खाऊं”

“छी छी … दिमाग खराब हो गया है तेरा …”

“छी छी कर रही है और अपनी जांघें घिस रही है … मजा आ रहा है ना अम्मा मेरे को तेरी गांड का स्वाद लेता हुआ देख कर?”

चल बदमाश … अब खाना बनाने देगा या नहीं?”

“बना ना अम्मा, सच अब नहीं रहा जाता, फटाफट पराठे बना ले और फ़िर तू भी मेरे साथ बैठ जा खाने पे, नहीं तो फ़िर बाद में खायेगी, साफ़ सफ़ाई में आधा घंटा बरबाद करेगी और ये तेरा गुलाम, तेरे रूप का मतवाला बेटा लंड पकड़कर बैठा रह जायेगा”

“चल हो गया बेटा, आ जा और खा ले”

“मां … तेरे मुंह से खाऊंगा आज”

“अरे ये क्या हो गया है तेरे को? भूख लगी है ना? तो खा ना हाथ से, वैसे देरी हो जायेगी बेटा”

“मैं खा रहा हूं अम्मा पर बीच बीच में एक एक निवाला दे ना तेरे मुंह से, तेरे मुंह के स्वाद से खाने का जायका दूना हो जाता है अम्मा”

“ठीक है मेरे लाल … अं… अं …. ये ऽ ले ऽ “

“और चबा अम्मा, जरा मुंह का स्वाद लगने दे …”

“अं … क्यां … नॉलॉ..यंक … लं … ड़का है … अं अं .. ले”

“मजा आगया मां, बस हर दो मिनिट में एक निवाला देती जा …. आज मस्त पिक्चर लाया हूं … बेडरूम चल और मेरी बाहों में आ, फ़िर दिखाता हूं, तुझे मजा आ जायेगा”

“सच बेटे? पिछले हफ़्ते वाली भी बहुत अच्छी थी ….वैसी ही है क्या?”

“थोड़ी अलग है अम्मा पर मजा आयेगा तुझे. पिछले वाले में लंड ही लंड थे, आज बस चूतें ही चूतें हैं.”

“अं … अं …. ले बें … टा … तें …रा … निवॉला … फ़िर तेरी ज्यादा पसंद की है, मुझे क्यों दिखाना चाहता है?

“अम्मा नाटक मत कर, उस दिन जिस औरत को वो चार चार मर्द चोद रहे थे, उस औरत की गोरी गोरी चूत देख कर कैसे बोल रही थी कि बेटा कितनी प्यारी चूत है … चूसने को मन करता है मेरा भी …, और पिछले महने वाली पिक्चर देखते वक्त बोल रही थी कि वो औरत कैसे मस्त चूत चाट रही थी उस लड़की की, काश कोई औरत मेरी भी ऐसी चाटती”

“नालायक … अम्मा की बात पकड़ कर रखता है तू … अब मस्ती में तो कुछ भी मुंह से निकल जाता है रे …”

“नहीं अम्मा, मस्ती में मन की बात होंठों पर आ जाती है. वैसे इसीलिये आज बस चूतें और बुरें दिखलाऊंगा तेरे को, तेरी हर खुशी में मेरी खुशी है. अच्छा ये बता मां, तेरा मन होता है और किसी से चुदवाने को? याने तू इतनी गरम है, मैं थक जाता हूं पर तेरी भूख नहीं मिटती, बोल तो इंतजाम करूं कूछ, तेरी जैसी मतवाली माल औरत को चोदने को तो कोई भी तैयार हो जायेगा खुशी से … लाऊं आपने यार दोस्तों को? या नौकर रख लूं एकाध, दिन भर तुझे चोदा करेगा.”

“बेटा … क्यों अपनी अम्मा को ऐसे शब्द कह रहा है … मुझसे नाराज है क्या … बोल ना … तेरे सिवा मैंने किसी की ओर आंख उठा कर भी नहीं देखा मेरे बच्चे और तू …. हं …”

“अरे बुरा मत मान मां, मैं नाराज होकर नहीं कह रहा, सच कह रहा हूं, तुझे मैं हर खुशी देना चाहता हूं … मैं जानता हूं कि तेरी तबियत कितनी गरम है … अगर तेरे मन में और लंडों से चुदवाने का खयाल आता हो तो ये तेरा अधिकार है अम्मा …. अपने मन को मत मार”

ये क्या कहता है बेटे … तेरे सिवा किसी से चुदाने की मैं सोच भी नहीं सकती … तू इतना प्यारा है … मेरा लाड़ला बेटा है … मेरी ही चूत से निकला है, खूबसूरत जवान है…. तुझसे चुदाने में जो मजा है वो और कहां मेरे लाल?”

वो तो ठीक है अम्मा पर तू है बड़ी गरम, एक आदमी से तेरी ये गरमी ठंडी नहीं होगी. मेरे को मालूम है कि दिन में मैं नहीं होता तब तू तड़पती रहती है बदन की इस गरमी से, मेरा बस चलता तो दिन भर घर रहता पर मां … नौकरी करना है … और वैसे भी लंड आखिर कितनी बार खड़ा होगा … मुझे कभी कभी लगता है मां के तेरे को कम से कम एक और लंड चाहिये”

“चल अब इस विषय की बात मत कर … मैं देख लूंगी … अरे मैं लाती हूं ना केले और ककड़ी … तुझे तो मालूम ही है … भले ही उनमें वो बात न हो जो … और तू चूसता भी तो है मेरे लाल … इतना अच्छा लगता है मुझे बुर चुसवा कर … मेरी बुर पूरी खुश हो जाती है … चल खाना हो गया ना, अब ले चल मुझे. साफ़ सफ़ाई सुबह उठ कर कर लूंगी”

“वा अम्मा अभी अभी नखरे कर रही थी और अब खुद ही बेताब है. …. क्या बात है … चूत वाली पिक्चर के नाम से मजा आ रहा है लगता है.”

“तू कुछ भी समझ पर चल ना अब.”

“चल अम्मा, नंगी होकर आजा मेरे कमरे में, मैं तब तक पिक्चर लगाता हूं. आज ब्रा और पैंटी भी निकाल दे, पूरी नंगी हो जा, ब्रा पैंटी में तेरे से मुहब्बत करने का टाइम नहीं है, पिक्चर भी लंबी है.”

….. कुछ देर के बाद ….

“अरे ये कुरसी में क्यों बैठा है, लेटे लेटे नहीं देखेगा पिछली दफ़ा जैसे?”

“वो उसमें ठीक से नाहीं दिखता अम्मा, गर्दन दुखती है”

“अरे पिछली बार तो मजे से देखी थी, याने मैं नीचे पट लेटी थी और तू मेरे ऊपर चढ़ कर … बस हिल बहुत रहा था तू … बार बार बस धक्के लगा रहा था.”

“अब लंड तेरी गांड में हो तो धक्के लगाने का मन तो होगा ही मां, इसीलिये आज तुझे गोद में बिठा कर दिखाऊंगा, चल जल्दी आ, ऐसे खड़े हो जा मेरे सामने… अरे ऐसे नहीं, मेरी ओर पीठ करके … पिक्चर नहीं देखनी है क्या? चल लंड ले मेरा अपनी गांड में और बैठ गोद में”

“पिक्चर देखनी है बेटे पर तू ऐसे बैठता है तो तेरे ऊपर बैठ कर चोदने में बड़ा मजा आता है मेरे लाल. चोद लेने दे ना एक बार, तेरी कसम. एक बार लंड तूने पीछे डाला कि आगे की मेरी इस सौतन की तुझे सुध ही नहीं रहती “

“मां, अब उतावली न हो, तेरी इस जालिम सौतन की … चूत के लिये भी इंतजाम किया है मां, ये देख”

“हाय, ये केले कहां से लाया रे? बहुत बड़े हैं, पिछले हफ़्ते तो छोटे वाले लाया था. पर बेटे, वो टूट जाते हैं बार बार. मजा नहीं आता, और बिना छिले तू डालता नहीं है”

“और क्या मां, बिना छिले डाले तो तेरी चूत का रस कैसे लगेगा उसमें. फ़िकर मत कर, ये आधे कच्चे हैं, टूटेंगे नहीं. वो आज आते आते ये केले दिख गये, मद्रासी केले, एक एक फ़ुट के, ये हैं तेरी चूत के लायक – नहीं तो वो छोटे वाले तो तेरी चूत ऐसे खा जाती है जैसे ….. अब बक बक मत कर और आ जा …. हां ऐसे …. लौड़ा तेरी गांड पर रखता हूं .. अरे चूतड़ पकड़कर खींच ना, जरा छेद खोल … हां ऐसे … अब बैठ जा मेरे लंड पर

“ओह … उई मां … दुखता है बेटे”

मां अभी तो बस सुपाड़ा अंदर गया है … पूरी नीचे बैठ जा मेरी गोद में …. ये … अब देख कैसे सप्प से अंदर गया …. आ जा चुम्मा दे मुझे … तेरे मम्मे दबाने में मजा आता है अम्मा ऐसे गोद में बिठा कर गांड मारते वक्त. ले पिक्चर शुरू करता हूं”

जोर से दबा ना मम्मे ऽ हाऽ य ऽ कैसा खड़ा है रे तेरा …. दुखता है … इतना मोटा है …. लगता है जैसे मेरे पेट में घुस गया है …. कैसा मेरी गांड के पीछे पड़ा रहता है रे नालायक, ओह ….”

“मां मैं तो तेरे पूरे बदन के पीछे दीवाना हूं और खास कर तेरी गांड का …. सच अम्मा, किसी बेटे को अपनी मां की गांड मारने में क्या आनंद आता है तू नहीं जानती … लगता है कि कोई बड़ा बुरा गंदा सा … हरामीपन का काम किया जा रहा है … अब चपर चपर बंद कर और पिक्चर देख. देख उस जवान लड़की को, तू चपर चपर कर रही थी तब तक वो नंगी भी हो गयी देख”

“कितनी अच्छी लड़की है बेटे… बहुत खूबसूरत है .. देख कैसे मुठ्ठ मार रही है … अकेली ही है … तू कहता था कि और भी औरतें हैं इस पिक्चर में …. ये लड़की छोटी लगती है ना? लगता है स्कूल में है”

“छोटी वोटी कुछ नहीं अम्मा, बीस बाईस की होगी … ये पिक्चर वाले बनी देते हैं उन्हें ऐसा … स्कूल की लड़की जैसी चोटी बांध देते हैं … अब देख उसकी मौसी आई … देख कैसे भांजी को प्यार कर रही है …. अब देख पूरा पिक्चर … अब कुछ देर में लड़की की मां भी आयेगी.”

….. कुछ देर के बाद ….

बेटे … बेटे … जोर से कर ना …. मन नहीं मानता रे … झड़ा दे ना मुझको …. वो देख वो छिनाल औरत कैसे अपनी बेटी से जबरदस्ती चूत चुसवा रही है … वो देख … कैसे उसके बाल पकड़कर अपनी बुर पर उसका मुंह रगड़ रही है और वो दूसरी औरत …. उसकी मौसी ….हाय देख ना बेटे … कैसे उस बच्ची की चूत पर पिल पड़ी है …. बेटे …. जोर से चोद ना मुझे केले से …. कितना जुल्मी है रे …. बस तरसाता जाता है …. मां की परवा नहीं है तुझे? ओह ऽ ओह ऽ”

….

….

“परवा कैसे नहीं है मां, तभी तो ये पिक्चर लाया हूं आज, मुझे पता था तुझे अच्छी लगेगी. अब ये केला अंदर बाहर तो कर रहा हूं, तू झड़ती नहीं है तो मेरा क्या कुसूर है, ये भी टूट जायेगा अगर ज्यादा जोर से किया तो, दो केले तो तोड़ चुकी है अब तक, देख कैसे यहां प्लेट पर पड़े हैं …. मां देखा ये केले कैसे लगते हैं … जैसे घी और शहद में डुबोए हों … मैं बाद में खाऊंगा मां मस्ती ले लेकर ….. ओह ऽ …. गांड सिकोड़ती है तो मजा आता है अम्मा…. और कर ना … लगता है कि अभी तेरी कस के मार लूं, सच अम्मा …. तेरी गांड बहुत गरमा गरम है … ले नीचे से ही तेरी मारता हूं … ले …. ले …. ले ऽ”

ओह बेटे … उई मां … झड़ गयी रे मैं मेरे लाल … ओह ऽ ओह ऽ कितना अच्छा लगता है रे … ओह … हाय … पिक्चर खतम हो गयी रे … उस लड़की पे क्या क्या करम किया उन दोनों छिनालों ने … मैं होती तो और करती बेटे … और लगा ना …. और पिक्चर नहीं है? … ये वाला ही लगा दे ना फ़िर से …. वो देखा कैसे वो मौसी उस लड़की के मुंह में मूत भी रही थी … और वो मुंहजली भी मजे लेकर पी रही थी जैसे शरबत हो … तभी तूने झड़ा दिया … ठीक से देख भी नहीं पाई … लगा ना पिक्चर फ़िर से …

“अब कल लगाऊंगा मां … मेरे से सहन नहीं होता … इन पिक्चरों में तो कुछ भी दिखाते हैं … और गंदे गंदे करम होते हैं … मैं और ले आऊंगा पर ओह ओह ऽ अब नीचे लिटा कर कायदे से तेरी मारता हूं …. मां कसम क्या गरम है तेरी गांड मां …. ले .. ये ले … और जोर से पेलूं … तेरी गां ऽ ड का ऽ … कचू ऽ …मर … बना ऽ देता ऽ हूं आज …ये ले … ओह … ओह …. ओह … आह …. आह ऽ ऽ आह ऽ ऽ ऽ”

…. कुछ देर के बाद ….

“बेटे एक बात कहूं?”

“हां बोलो मां, हुकुम करो. आज तो मजा आ गया मां तेरी मारने में … और वो केले भी क्या जायकेदार थे …. तेरी चूत का रस तो अमरित है मां अमरित. बोल क्या कह रही थी? और पिक्चर ले आऊं ऐसा ही? क्या बात है मां? चूतें भी भा गयीं आखिर तुझे.”

“हां बेटे, कितनी खूबसूरत थी वो दोनो औरतें और वो लड़की तो सच में बहुत सुंदर थी. मुझे कमला की याद आ गयी बेटे.”

“कौन कमला मां?”

“अरे वो मेरी चचेरी ननद की भांजी, बेचारी का कोई नहीं है, मां बाप बचपन में ही गुजर गये ना, वो उसकी मौसी ने ही पालपोसकर बड़ा किया है, वहीं रहती है, अब शादी की उमर हो गयी है करीब करीब.”

“हां तो अम्मा? चाची शादी रचा रही है उसकी?”

“हां बेटे … बोली नहीं पर लगता है मन में है उसके”

“चलो अच्छा है मां, लड़का देख तू भी उसके लिये”

“बेटे … तू कर ले ना उससे शादी.”

“मैं शादी वादी नहीं करने वाला अम्मा”

अरे बहुत सुंदर लड़की है, जरा छोटी है, अभी उन्नीस की हुई होगी पर तू हां कहेगा तो मैं मना लूंगी सब को, आखिर मेरा बेटा भी तो जवान है, इतना कमाता है. वो लोग तो उछल पड़ेंगे, उनको भी कहां तुझसे अच्छा लड़का मिलेगा”

“अब मां, मैंने पहले ही कहा था कि शादी ब्याह की जरूरत नहीं है मुझे, तू जो है मेरी हर जरूरत पूरी करने को. और मैंने तेरे को वो मंगलसूत्र नहीं पहनाया था उस दिन?”

अरे वो तो ऐसे ही … बदमाश कहीं का … मेरे को तेरा मंगलसूत्र पहना देख कर तेरा लंड ऐसा हो गया था जैसे लोहे की सलाख … वो बात अलग है बेटा … वो तो मेरे तेरे बीच की बात है”

“पर मां, मेरे लिये तो तू ही मां है, तू ही मेरी बीवी, लुगाई, सब कुछ. अब उस लड़की से शादी करके मैं क्या करूंगा?”

“अरे कर ले ना. सच में बड़ी रूपवती है. तुझे बहुत पसंद आयेगी. बहू घर में आये तो मुझे भी कुछ आराम मिलेगा.”

“तो क्या मैं तुझे इतना रगड़ता हूं कि तेरे को मेरे से आराम चाहिये?”

“हंस रहा है ना, हंस, और हंस, तेरे को मालूम है कि तू मुझे चौबीस घंटे रगड़ेगा फ़िर भी मैं तेरे को आशिर्वाद ही दूंगे मेरे राजा. अरे घर का भी काम होता है, अब मेरी उमर हो चली है, घर के काम को तो जवान बहू चाहिये ना?”

“ऐसा बोल. पर अम्मा, घर में कमला हो ना हो, चोदूंगा तो मैं बस तुझे ही. अब वो बालिका घर में रहेगी तो उसे पता चल ही जायेगा कि ये बेटा अपनी मां के पीछे दीवाना है. तब वह हाय तोबा नहीं मचायेगी?”

“अरे मैं सब संभाल लूंगी. उसे बता भी दूंगी.”

अच्छा अम्मा? वो शादी को तैयार हो जायेगी अगर उसे पता चलेगा कि हमारे यहां तो मां बेटे का इश्क चलता है?

“शादी के बाद बताऊंगी. तब बच के कहां जायेगी? उसकी सुनता कौन है बाद में? शादी के बाद तो ऐसे जाल में फ़ंसा दूंगी कि पर मारेगी तो भी उड़ नहीं पायेगी.

“अच्छी डांट डपट के रखेगी? उससे काम करवायेगी अम्मा?”

“हां बेटे, घर का काम भी करवाऊंगी और … जरा अपनी भी सेवा करवाऊंगी.”

“अच्छा … अब समझा. अम्मा तू बड़ी चालू चीज है. बहू से सेवा करवायेगी, वो पिक्चर वाली सेवा? ओह अम्मा, क्या दिमाग पाया है तूने.”

“अरे तो क्या हुआ? तू ही कह रहा था ना आज कि अम्मा किसी को ले आऊं क्या चोदने को अगर तेरा मन नहीं भरता. तो अब बहू ही ले आ, मैं उसी से मन बहला लूंगी.”

“पर वो तो मैं किसी मर्द की बात कर रहा था, किसी तगड़े लंड वाले मर्द की. तेरी हवस क्या वो जरा सी छोकरी पूरी कर पायेगी? तेरे को चाहिये मस्त मूसल जैसा लौड़ा जो कभी ना झड़े”

“तेरा लंड क्या कम है? चूत में घुसता है तो स्वर्ग ले जाता है बेटे और गांड में … उई मां ऽ … हालत खराब कर देता है मेरी, तू नहीं जानता कि जब एक मां अपने बेटे का लंड पा लेती है तो उसे और कोई लंड नहीं भाता. तेरे बिना मैं किसी से नहीं चुदाऊंगी. हां कोई प्यारी सी लड़की मिल जाये तो बात और है. बहुत सुकून मिलेगा बेटे मुझे. तू नहीं जानता, तूने जो ये आग लगायी है मेरे बदन को वो बुझती नहीं है मेरे लाल. जब तू होता है तो अपनी अम्मा से चिपटा रहता है पर दोपहर को जब मैं अकेली होती हूं तो परेशान हो जाती हूं बेटे, मुठ्ठ मार कर भी आराम नहीं मिलता. वो केले, ककड़ी, गाजर – सब नाकारा हो जाते हैं. और जब तू काम से शहर के बाहर जाता है तो …. मैं पागल सी हो जाती हूं बेटे. ये जो पिक्चर तू लाता है ना, उन्हें देख देख कर अब मेरा भी मन होता है किसी औरत के बदन से बदन लगाने का. अगर बहू ले आये तो दोनों काम हो जायेंगे.”

चलो, मेरी अम्मा को और कोई तो मिला प्यास बुझाने को पर क्या हुआ अम्मा, एकदम से कमला कैसे खयाल में आ गयी तेरे? ऐसी क्या खास बात है उसमें? या तेरी बुर कुलबुलाती है उसकी कमसिन जवानी देख कर,अब मेरे को पता चला है कि तेरा कोई भरोसा नहीं मां”

“खास बात है ना उसमें. हमारे यहां बहू लानी हो तो जरा देख भाल कर चुननी पड़ेगी बेटे. और कमला में वो सब बातें हैं. वो सुंदर तो है ही, जरा चालू चीज भी है. मार खा चुकी है अपनी मौसी से कई बार. असल में एक दो बार पकड़ी गयी थी वहां की नौकरानी चंपा के साथ कुछ कर रही थी.”

“अच्छा! अब समझा. तो कल जैसी पिक्चर में हीरोइन बनने लायक है?”

और क्या? पिछली बार जब मेरी ननद ने पकड़ा तो छत पर के कमरे में चंपा की टांगों के बीच मुंह दे कर बैठी थी बदमाश. तेरी चाची तो हाथ पैर ही तोड़ देती उसके, मैंने ही मना लिया कि शुकर करो किसी लड़के या मर्द के साथ मुंह काला नहीं किया. तब छोड़ा उसे. फ़िर भी कस के दो चार जड़ ही दिये थे उसको. रो रही थी तब मैंने ननद को नीचे भेजा और कमला को मना कर चुप किया. मुझे लिपट कर सहम कर बैठी ती बेचारी. मैंने तब हौले हौले उसकी छाती भी टटोल ली बेटे, छोटे छोटे हैं मम्मे पर एकदम अमरूद जैसे सख्त हैं, दबाने में मजा आयेगा”

“तेरे को या मेरे को?”

“दोनों को मेरे लाल. मैंने बात करके ये भी जान लिया कि उसको औरतें बहुत पसंद हैं, खास कर उमर में बड़े औरतें. तभी तो उस अधेड़ चंपा को दिल दे बैठी. अब वो घर आयेगी तो उसे मनाने में कोई मुश्किल नहीं होगी बेटे. मेरी सेवा करने को आसानी से मान जायेगी वो छोकरी. और उसे भी तो मैं सुख दूंगी.”

“हां अम्मा, तू इतनी खूबसूरत है, किसी का भी मन डोल जायेगा.”

अरे यही चिंता है मेरे को कि कमला को मैं कैसी लगूंगी. मोटी हो गयी हूं, थुलथुला बदन हो गया है मेरा.”

“तो वो चंपा कहां विश्व सुंदरी है! मैंने देखा था पिछले साल जब गांव गया था. गिट्टी सी है, ये बड़े बड़े मम्मे हैं उसके और खाया पिया बदन है. वही तो राज है अम्मा तेरे रूप का, क्या माल भरा है तेरे बदन में, ये मोटे मोटे मम्मे, लटकते हुए, ये गोरी गोरी मोटी टांगें, वो कमला तो निछावर हो जायेगी तुझ पर अम्मा.”

“सच कहता है बेटे? फ़िर बात चलाऊं?”

“जैसा तू ठीक समझे मां. पर वो छोकरी क्या सिर्फ़ तुझसे इश्क करेगी? मेरी मतलब है अम्मा कि वैसे मुझे तेरे सिवा और किसी की जरूरत नहीं है पर अगर खूबसूरत माल घर में ही आ जाये और वो भी हक का तो … फ़िर मुंह मारने का मन तो होगा ना. वो लड़की कमला अपने सैंया को, एक मरद को – मुझे – मुंह मारने का मौका देगी या नहीं?”

“क्या बात करता है बेटे. आखिर तू उसका पति होगा. तुझे कैसे मना करेगी? और आखिर तू भी तो इतना सजीला नौजवान है. वो लड़की इस तरह की है मेरा मतलब है औरतों वाली फ़िर भी उसको इतनी तो समझ होगी कि पति की सेज तो उसे सजाना ही है. मैं भी समझा दूंगी. फ़िर बेटे, हम दोनों मिलकर उसे चोदा करेंगे. ये ध्यान रख कि वो अकेली है और हम दो हैं, जैसा चाहेंगे उस लड़की को करना पड़ेगा, ना करके जायेगी किधर? और एक बात बेटे ….”

“क्या अम्मा?”

“तेरे को गांड मारने का शौक है ना? मुझे हमेशा कहता है ना कि मैं रोज नहीं मरवाती! तू उसकी गांड मार लिया कर, चाहे तो सुबह शाम. मुझे थोड़ी राहत मिलेगी उस मुस्टंडे लंड से … मेरे को सच में दुखता है बेटे”

“तेरी तो मैं जरूर मारूंगा मां, भले हफ़्ते में एक बार, ऐसी मोटी डनलोपिलो की गांड थोड़े होगी उसकी, बाकी मेरी कमला रानी को मेरा शौक सहना पड़ेगा. पर अम्मा, वो तैयार हो जायेगी? नखरा भी कर सकती है, आखिर औरत औरत वाले इश्क में तो गांड का तो कोई रोल ही नहीं है ना”

“उससे तुझे क्या करना, मैं तैयार करूंगी उसे. बेटे ऐसी लड़कियां … मेरा मतलब है औरतों पर मरने वाली लड़कियां … चुदाने में नखरा करती हैं अक्सर … बुर चुसवाने में ज्यादा मजा आता है उन्हें … इसलिये मैं कह दूंगी कि अगर चुदाई से बचना है तो गांड मरवा लिया कर. अगर नहीं मानेगी तो हाथ पैर मुंह बांध कर तेरे सामने डाल दूंगी, मारना उसकी जोर से … थोड़ा रोयेगी धोयेगी शुरू में फ़िर मान जायेगी …. अखिर अपने पसंद की ऐसी ससुराल उसे कहां मिलेगी जो उसके असले इश्क का खयाल रखती हो?”

और अपने पसंद की ऐसी मस्त सास उसे और कहां मिलेगी, है ना अम्मा? … सच, मजा आ जायेगा अम्मा …. पर तेरी गांड भी मैं मारूंगा अम्मा… उसे नहीं छोड़ सकता.”

“कहा ना, कभी कभी मार लिया कर, पर ज्यादा उसकी मारा कर जब मन चाहे.”

“अम्मा, तेरा ये बेटा और बहू मिलकर तेरी सेवा किया करेंगे. जरा कल्पना कर कि मैं तुझे चोद रहा हूं और वो तुझे अपनी बुर का पानी पिला रही है. या तेरा बेटा तेरी गांड मार रहा है – अच्छा अच्छा नाराज मत हो तूने अभी कहा था कि तेरी ज्यादा न मारा करूं … समझ ले मैं तेरी चूंचियां दबा कर तेरे मुंह में लंड देकर चुसवा रहा हूं और तेरी बहू तेरे सामने लेटकर अपनी जीभ से सास की बुर से पानी निकाल रही है. या जब मैं उसकी गांड मारा करूं, तू अपनी बुर से उसका मुंह बंद कर दिया कर ….”

“कैसा करता है रे … गंदी गंदी बातें सुनाकर फ़िर से मुझे पानी छूटने लगा.”

“तो क्या हुआ अम्मा, आ जा बैठ जा मेरे मुंह पर. और देख ले, तेरा पानी पी कर फ़िर से तेरी गांड मारूंगा आज. मरवा और अपनी बहू के बारे में सोच. चल आ जा अम्मा ………”

“आती हूं मेरे लाल, आज तो मैं बहुत खुश हूं, ऐसे मौके पर तो मुंह मीठा करना चाहिये, वो बर्फ़ी ले आऊं?”

“बर्फ़ी वर्फ़ी कुछ नहीं अम्मा, देना हो तो तेरा दूध दे दे”

“अरे बार बार वही कहता है, अब दूध कैसे पिलाऊं तेरे को, और बहू आ रही है ना! दूध पिला देगी एक साल बाद!”

“उसकी तो फ़िर सोचूंगा, पर मां, सच में, मन नहीं मानता, तेरा दूध, तेरे बदन का ये रस पीने को इतना दिल करता है … लंड साला पागल कर देता है”

“बेटा …. वो तू … मेरा दूध पीने की बात करता है ना हरदम ? बुर का रस काफ़ी नहीं पड़ता तेरे को?”

“कहां अम्मा … दूध पीने को मैं इसलिये बेताब हूं कि – बहुत मन होता है कि पेट भर के पियूं तेरे बदन का रस …. तेरी बुर का रस लाजवाब है पर बस दो तीन चम्मच ही मिलता है अम्मा. बस इसलिये बार बार दूध पिलाने को कहता हूं अम्मा “

हां सोचूंगी मेरे लाल सोचूंगी, तू तो पागल है, पर अब चल ना, जल्दी चल बाथरूम में”

“चल अम्मा, उठा के ले चलता हूं.”

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